बाइचुंग भूटिया ने अंतर्राष्ट्रीय फुटबाल को कहा "अलविदा"
भूटिया ने बुधवार को अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ (एआईएफएफ) के मुख्यालय 'फुटबाल हाउस' में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा, "मैं 2008 में आयोजित एएफसी चैलेंज कप के बाद ही संन्यास लेना चाहता था लेकिन चूंकी हम टूर्नामेंट जीत गए थे और एशिया कप के लिए क्वालीफाई कर गए थे, ऐसे में मैंने सोचा कि मैं एशिया कप में खेलने के बाद अपने करियर को विराम लगाऊंगा।" "एशिया कप में मेरे लिए अच्छा अनुभव नहीं रहा। एक खिलाड़ी के तौर पर मैं मैदान में सिर्फ 15 मिनट बिता सका। इसी के बाद मेरे मन में संन्यास की बात पूरी तरह घर कर गई। इसके बाद मैंने घरेलू फुटबाल खेलने जारी रखा लेकिन जितनी बार मैदान में उतरता चोट मुझे परेशान करती।" "मैं अपनी टीम के लिए बीते सत्र में सिर्फ चार-पांच मैच खेल सका।
इसके बाद मुझे इंग्लैंड दौरे के लिए राष्ट्रीय टीम की सेवा के लिए बुलाया गया लेकिन मैं फिर चोटिल हो गया। अबकी बार मैंने ठान लिया कि मैं अपने संन्यास में देरी नहीं करुं गा। मैं हमेशा खेलते हुए संन्यास लेना चाहता था लेकिन कभी-कभी वह बात नहीं हो पाती, जो आप चाहते हैं।" भूटिया ने कहा कि हर एक खिलाड़ी की तरह उनका भी सपना देश के लिए विश्व कप में खेलना था लेकिन यह पूरा नहीं हो सका। बकौल भूटिया, "हर खिलाड़ी अपने देश के लिए विश्व कप में खेलने का सपना रखता है लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग होती है। मैं अभी भी आशा करता हूं कि भारत एक दिन विश्व कप के लिए जरूर क्वालीफाई करेगा और मैं अपने देश को खेलते हुए देख सकूंगा।" सिक्किम के छोटे से शहर नेमची से सम्बंध रखने वाले भूटिया ने 1993 में कोलकाता के क्लब ईस्ट बंगाल के लिए खेलते हुए क्लब करियर की शुरुआत की थी। इसके दो वर्ष बाद भूटिया ने 1995 में देश के लिए थाईलैंड के खिलाफ पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला था। देश के लिए 107 मैचों में 42 गोल करने वाले भूटिया ने क्लब स्तर पर कुल 228 गोल किए हैं। इस दौरान वह ईस्ट बंगाल, मोहन बागान और जेसीटी के लिए खेले। इसके अलावा वह मलेशियाई क्लब एफसी पारेक तथा इंग्लिश प्रोफेशनल क्लब बुरी एफसी के लिए भी खेले। भूटिया वर्ष 1999 से 2011 तक भारतीय टीम के कप्तान रहे। इस दौरान उन्होंने अपने खेल से साथियों को प्रेरित किया और भारतीय फुटबाल के सबसे बड़े सितारे बनकर उभरे। भूटिया ने कहा, "बीते तीन वर्ष मेरे लिए स्वर्णिम रहे हैं। इस दौरान मेरी कप्तानी में टीम ने 2007 और 2009 में नेहरू कप और 2008 में एएफसी चैलेंज कप जीता।
इन दो टूर्नामेंटों में मैं सबसे अच्छा खिलाड़ी बनकर सामने आया था।" भूटिया ने कहा कि भारतीय फुटबाल सही दिशा में बढ़ रहा है और खिलाड़ियों के अंदर पेशेवर रवैया कूट-कूट कर भरा है, जो उन्हें काफी आगे ले जाएगा। बकौल भूटिया, "मेरे और आज के दौर में अंतर यह है कि आज के खिलाड़ी पेशेवर हैं। उन्हें टीम में अपने स्थान की कीमत का अंदाजा है। वे जानते हैं कि बाहर के देशों में कितनी प्रतिस्पर्धा है और यही कारण है कि वे अभ्यास से लेकर गोल करने तक कोई मौका गंवाना नहीं चाहते।" "हमारे दौर में इस तरह का पेशेवर रवैया नहीं था। अगर होता तो शायद मैं और आई.एम. विजयन यूरोप के शीर्ष क्लबों में खेल चुके होते। मैं विजयन के बारे में इतना कह सकता हूं कि वह भारतीय फुटबाल के सर्वकालिक महान खिलाड़ी हैं और उनमें यूरोप के किसी भी शीर्ष क्लब में स्थान पाने की काबिलियत थी लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि वह पेशेवर नहीं थे।"
भास्कर गांगुली की खोज थे बाइचुंग
भारतीय फुटबाल जगत के सबसे चमकते सितारे बाइचुंग भूटिया राष्ट्रीय टीम के पूर्व कप्तान और कोलकाता के ईस्ट बंगाल क्लब केदिग्गज भास्कर गांगुली की खोज थे। ईस्ट बंगाल में भाष्कर दा नाम से मशहूर गांगुली ने ही पहली बार भूटिया को ईस्ट बंगाल के कोचश्यामल घोष से मिलवाया था। वर्ष 1993 की सर्दियों में जब कोलकाता के मैदान में श्यामल दा अपनी टीम के साथ अभ्यास कर रहेथे, तब गांगुली भूटिया को लेकर उनके पास गए थे। श्यामल दा के पास पहुंचकर गांगुली ने कहा था, "इसका नाम बाइचुंग है, उपाधिभूटिया है। मैं इसी के बारे में बात कर रहा था। यह पहाड़ से सम्बंध रखता है और इसके खेल में बिच्छू जैसी तेजी है।" इस पर श्यामलदा ने भूटिया को देखकर अपना सिर हल्के से हिलाया था। उनके लिए यह नाम नया नहीं था क्योंकि गांगुली ने इससे पहले श्यामल दाके सामने भूटिया के नाम के बड़े-बड़े कसीदे पढ़े थे। श्यामल दा कुछ देर चुप रहे और फिर भूटिया से कहा, "किस पोजीशन से खेलतेहो?" इस पर भूटिया ने कहा, "स्ट्राइकर।" इसके बाद श्यामल दा और भूटिया के बीच कोई बातचीत नहीं हई। भूटिया उस दिन गांगुली केसाथ लौट गए। अगले दिन जब गांगुली उन्हें लेकर मैदान पहुंचे तो श्यामल दा ने भूटिया को क्लब फुटबाल का पहला गुरुमंत्र दिया। श्यामल दा केशब्द, "यह वह स्थान है, जहां से तुम ताल्लुक रखते हो। इस मैदान को देखो। इन गैलरियों को देखो। इस मैदान पर तुम्हें इस तरहखेलना है, जैसे तुम विश्व कप में खेल रहे हो और यह भी मानकर चलो कि खराब खेलने पर यहां मौजूद दर्शक अपने नाखूनों से तुम्हेंनोच देंगे।" इसके बाद भूटिया और श्यामल दा में फिर कोई बात नहीं हुई। अगली बार भूटिया उनकी देखरेख में मैदान में उतरे और फिरकभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने दो वर्ष के क्लब करियर में भूटिया ने ईस्ट बंगाल को वह सब दिया, जिसकी इस क्लब को भूटियासे चाहत थी। इस तरह 1993 में कोलकाता के मैदान में सिक्किम से आए एक खिलाड़ी का शुरू हुआ सफर उसे भारतीय फुटबाल केमहानतम खिलाड़ियों की सूची तक ले गया। एक समय ऐसा भी आया जब भारतीय फुटबाल और भूटिया एक दूसरे के पर्याय बन गएलेकिन जैसा कि हर अच्छे युग का अंत होता है, भूटिया के अंतर्राष्ट्रीय करियर का भी अंत हो गया है।
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