भारत ने चीन से निपटने के लिए भेजे 6 हजार जांबाज गोरखा जवान, PM बोले - डोकलाम हमारा था है और रहेगा !
नई दिल्ली : चीन से कई सप्ताह से जारी सीमा विवाद के बीच भारत ने डोकलाम में 6 हजार जांबाज गोरखा जवान भेजे हैं। सोमवार को सरकार ने फैसला किया गोरखा रेजिमेंट के 6 हजार जवान डोकलाम में तैनात होंगे। फैसले के बाद खुद जवानों ने कहा है कि चीन को डोकलाम से पीछे हटना होगा। बता दें कि एक महीने से ज्यादा समय तक सिक्किम क्षेत्र के डोकलाम में जारी सैन्य गतिरोध पर चीन के पूर्व राजदूत ने कहा है कि भारत के पास अब सिर्फ तीन विकल्प बचे हैं। पहला ये है कि भारत डोकलाम से पीछे हट जाए, कब्जा कर ले या फिर चीन हमला कर दे। मुंबई में कांसुल जनरल रह चुके पूर्व चीनी डिप्लोमेट ने बुधवार को सरकारी मीडिया से इंटरव्यू में यह बातें कही।
पूर्व डिप्लोमेट का यह बयान बताता है कि बीजिंग डोकलाम पर अपनी तीखी बयानबाजी से बाज नहीं आने वाला है। साथ ही डोकलाम में गतिरोध पर चीन द्वारा सैन्य प्रयोग की धमकी भरे रवैये को दर्शाता है। चीन लगातार इस बात पर जोर दे रहा है कि भारतीय सैनिकों के अपनी सीमा में वापस लौटने तक किसी तरह की कोई बातचीत नहीं होगी। पूर्व कांसुल जनरल रह चुके लियू योउफा अब स्ट्रैटजिक एक्सपर्ट के तौर पर काम करते हैं।
योउफा ने सरकारी मीडिया चाइना सेंट्रल टेलीविजन के अंग्रेजी चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा, 'बॉर्डर पर वर्दी में खड़े लोग जब दूसरे देश की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं, तो स्वभाविक तौर पर दुश्मन बन जाते हैं और उन्हें इसकी कीमत चुकानी होगी।' ल्यू ने आगे कहा कि पहले विकल्प के तौर पर भारत डोकलाम से पीछे हट जाए। या उन्हें बंधक बना लिया जाए और बॉर्डर विवाद को बढ़ने दिया जाए। या फिर उन्हें मार दिया जाए।
डोकलाम गतिरोध पर ये तीन संभावनाएं हैं। उन्होंने आगे कहा कि चीन इस बात का इंतजार कर रहा है कि भारत समझदारी भरा फैसला ले और यह पहला विकल्प है। ल्यू ने कहा कि दोनों देशों के लिए युद्ध से बचना ही बेहतर होगा। पूर्व चीनी डिप्लोमेट का बयान भारत के साथ जारी सैन्य गतिरोध पर चीन के कड़े रूख को दर्शाता है। ल्यू के बयान को कुछ एक्सपर्ट दबाव बनाने के रूप में देख रहे हैं, ताकि भारत अपने सैनिकों को अपनी सीमा में वापस बुला ले।
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