चाय श्रमिकों को गोरखालैंड राजनीति से अलग कराने की कोशिशे
जलपाईगुड़ी की चाय बागान श्रमिकों, पश्चिम बंगाल समन्वय समिति के संयोजक चिट्टा डे आज यहाँ किसी भी विभाजनकारी आन्दोलन के खिलाफ उनके वार्ड दूअर्स , तराई और दार्जिलिंग हिल्स के चाय श्रमिकों की एक सम्मेलन का आयोजन करेगा ।
डे ने कहा दूअर्स, तराई और दार्जिलिंग हिल्स में चल रहे राजनीतिक उथलपुथल के कारण सबसे ज़्यादा चाय बागान श्रमिकों के रोजगार मे बाधा उत्पन्न हुयी है। उनको इस आंदोलन में भाग लेने के लिए चाय बागान श्रमिकों की कई तरह से मजबूर किया गया है। उन्होंने कहा-" कई मजदूर संघ के नेताओं के घरो को आंदोलन के दौरान आग लगा दिया गया है। मजदूरों को कुछ विभाजनकारी शक्ति और एक अलग राज्य की मांग के द्वारा, इस क्षेत्र में शांति और सौहार्द को बिगाड़ शोषण किया गया है"।
इस नेता ने यह भी कहा कि मजदूरों की यूनियनों ऐसी विभाजनकारी शक्तियों के खिलाफ चाय श्रमिकों में जागरूकता पैदा करने में विफल रहा है।इस समस्या से अवगत कराने हेतु कर्मचारियों की छोटे समूह बैठकें आयोजित करने की आवश्यकता थी। वे अपनी भूमिका को पूरा करने में विफल रहा है। परिस्थितियों के अंतर्गत समन्वय समिति जिसमें 17 श्रमिक यूनियनों का एक मंच है, जलपाईगुड़ी में आज से मुलाकात की और इस सम्मेलन का आयोजन इस समस्या को हल करने के उद्देश्य से किया जायेगा। अंत मे एक बात कहना चाहूँगा की गोरखालैंड राज्य का आन्दोलन एक समुदाय विशेष का न होकर सभी समुदायों का है इसलिए एक एक व्यक्तियों का समर्थन ही इस आन्दोलन की मुख्य ताकत है चाहे समर्थन एक छोटे से चाय मजदूर का हो यह किसी धन्ना सेठ का मिलकर ही एक ऐसे राज्य की परिकल्पना को सार्थक करेंगे जिसमे सभी समुदायों का मिलजुल कर विकास हो जो की अब तक सही तरह से हो नही पाया है । इन यूनियन नेताओ को याद रहे की उनका समर्थन इस आन्दोलन मे काफ़ी अहम् किरदार निभा सकता है वैसे भी सन २०१० तक गोरखालैंड का अस्तित्व भारत देश के २९ वे राज्य के रूप मे होगा इसी आशा के साथ गोरखा हिल के सभी लोग आशान्वित है।
दीपक राई
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