जय राई छाँछा के अनुवादित कवितायें --भाग 1
जय राई छाँछा
वे बातें
सुनो ना मेरी प्राण प्रिय !बहुत हैं तुम्हारी मनपसंद बातें
बहुत हैं तुम्हारे अनुसरण करने वाली बातें
अनगिनत हैं तुम्हे कहने वाली बातें ।
सुनो ना मेरी प्राण प्रिय!
विस्तारित रूप में कहने लगूँ तो
महाकाव्य या उपन्यास ही बन जाएगा
धैर्य का बाँध फूटकर
कहीं इधर-उधर बहने न लग जाए ।
इसीलिए
हाइकू शैली में ही कहता हूँ
सुनो न मेरी प्राण प्रिय
रात को अपना ही समझकर
संवेदना में रोने वाली
ओस की बूंदों के साथ आँसू बदलकर
निर्दम्भ मुस्कुराने वाली
फूल जैसी तुम्हारी वाणी
बहुत ही अच्छी लगती है मुझे ।
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आइने की सतह
आइने की फिसलन जैसी सतह
बेदाग तुम्हारे चेहरे रूपी पन्ने पर
प्रेम के बहुमूल्य सूत्र लिखने का मन करता है ।
गुलाबी, सुंदर और आकर्षक
तुम्हारे प्यारे अनुहार रूपी बगीचे को
पलक झपके बिना देखते रहने का मन करता है ।
बिना झूठ बोले, गर कहूँ तो मेरी प्रिये
रजिस्ट्ररी करा कर तुम्हारा चेहरा
अपने दिल के अंदर फ्रेम में सजाकर
हमेशा-हमेशा के लिये रखने का मन करता है ।
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ध्वनि और कान
मेरे चेहरे परख़ुशी के क्षण आ रहे हैं
मेरी आँखों में
इंद्रधनुषी रंगों का झूलना / हर्ष के लहरों का आना
तुम कुछ भी समझो
और कुछ भी नहीं है
कारण तुम ही हो
केवल तुम ही हो ।
अप्रत्याशित ख़ुशी से
स्वत:स्फूर्त नाचने लगे हैं मेरे पाँव
शरीर एकदम से हिलने-डुलने लगा है
ऊपर, और ऊपर उड़ने की चाह / ख़ुशी से हिलना
तुम कुछ भी समझो
और कुछ भी नहीं
कारण तुम ही हो
केवल तुम हो ।
संपूर्णता में तुम
मेरे जीवन की पूर्णाधार हो
क्योंकि
फ़कत ध्वनि हूँ मैं
कान बनकर आओ तुम ।
(मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला)

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