नेपाल, सिक्किम में भूकम्प के और झटकों का खतरा नहीं
काठमांडू। नेपाल में भूकम्प विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा कि भूकम्प का एक और बड़ा झटका आने का खतरा नहीं है। रविवार को आए भूकम्प में नेपाल और भारत में 39 लोगों की मौत हो गई और दोनों पड़ोसी देशों में हजारों मकान तबाह हो गए। काठमांडू स्थित भूकम्प विज्ञान केंद्र के सर्वेक्षण अधिकारी दिल्ली राम तिवारी ने बताया, "जमीन में अंदर दबी हुई इतनी ऊर्जा निकलने के बाद अब तुरंत कोई दूसरा बड़ा झटका आने का खतरा नहीं है।" तिवारी ने बताया कि रविवार शाम सिक्किम में आए भूकम्प के झटके की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.8 मापी गई थी। इससे नेपाल का पूर्वी व मध्य क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है। शाम 6.25 बजे आए इस झटके के बाद 130 झटके और महसूस किए गए थे। उन्होंने कहा, "इनमें से चार झटके ही स्पष्ट रूप से महसूस किए गए।
रिक्टर पैमाने पर इनकी तीव्रता चार मापी गई थी। अन्य झटके बहुत हल्के थे और जो लोग भूकम्प केंद्र से दूर थे उन्होंने शायद ही ये झटके महसूस किए हों।" तिवारी ने कहा कि इस बड़े भूकम्प के बाद कुछ समय तक सिक्किम में हल्के झटके आते रहेंगे। उन्होंने कहा कि शायद अगले एक-दो महीने तक ये झटके आते रहें लेकिन इनसे ज्यादा नुकसान का खतरा नहीं है। नेपाल में निकट समय में विनाशकारी भूकम्प के अनुमानों के बीच यह चौथा सबसे बड़ा झटका था। तिवारी ने कहा कि भूकम्प का केंद्र काठमांडू से करीब 300 किलोमीटर की दूरी पर होने से मानवीय क्षति ज्यादा नहीं हुई है। इससे पहले 1934 में नेपाल में 8.4 तीव्रता का विनाशकारी भूकम्प आया था। इसका केंद्र नेपाल-बिहार सीमा पर था। इसमें 8,519 लोग मारे गए थे और 80,000 से ज्यादा इमारतें ढह गई थीं।
रिक्टर पैमाने पर इनकी तीव्रता चार मापी गई थी। अन्य झटके बहुत हल्के थे और जो लोग भूकम्प केंद्र से दूर थे उन्होंने शायद ही ये झटके महसूस किए हों।" तिवारी ने कहा कि इस बड़े भूकम्प के बाद कुछ समय तक सिक्किम में हल्के झटके आते रहेंगे। उन्होंने कहा कि शायद अगले एक-दो महीने तक ये झटके आते रहें लेकिन इनसे ज्यादा नुकसान का खतरा नहीं है। नेपाल में निकट समय में विनाशकारी भूकम्प के अनुमानों के बीच यह चौथा सबसे बड़ा झटका था। तिवारी ने कहा कि भूकम्प का केंद्र काठमांडू से करीब 300 किलोमीटर की दूरी पर होने से मानवीय क्षति ज्यादा नहीं हुई है। इससे पहले 1934 में नेपाल में 8.4 तीव्रता का विनाशकारी भूकम्प आया था। इसका केंद्र नेपाल-बिहार सीमा पर था। इसमें 8,519 लोग मारे गए थे और 80,000 से ज्यादा इमारतें ढह गई थीं।
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