Header Ads

अभ्यस्त यह सड़क और मेरे गीत - कविता


रेमिका थापा

छोड़ कर जाऊं, कहता था , कहीं और
जहां से मन उजड़कर जा नहीं सकता कहीं
वह दुर्गम, वह अगमता भी
आये दिन कुछ ऐसी नहीं लगती !

स्मरण करने पर
यह भीड़ सदा मुझे लेने आती है
यह सड़क सदा मुझे हिठाने आती है
यहाँ और वहां !
किसी महानगर में अकेला होता तब
किसी विक्षिप्त स्मृति में मन दग्ध होता तब
तुम्हारी याद, तुम्हारी शीतल स्मृति भी
आये दिन कुछ ऐसी नहीं लगती,
स्मरण करने पर
यह भीड़ सदा मेरी आँखें छेकने आती है
यह बतास सदा मेरी स्मृति उड़ाने आती है
कहाँ-कहाँ !

किसी भयानक सपने से मैं जाग उठाता तब
मेरा ईश्वर, मेरी चिर प्रार्थना की पंक्ति भी
आये दिन कुछ ऐसी नहीं लगती !
स्मरण करने पर
यह बिहान मुझे जीवन की कसम दिलाने आता है
इसी तरह-उसी तरह !
कोई क्षत-विक्षत उजाड़कर
तुम कहीं दूर जा रहे हो तब
यह विदाई, यह ठंडी आह भी
आये दिन कुछ ऐसी नहीं लगती !
यह अथाह झूंड तुम्हारी दर्द भरी याद खदेड़ने आता है
इधर सब हाथ मेरा इशारा छेंकने आते हैं
ऐसे-वैसे
इस समय
मेरे गीत तुम्हे पसंद नहीं आयेंगे
मेरी उमंग तुम्हे प्रिय नहीं होंगी
मेरी प्रार्थना मंदिर जा नहीं सकेगी
एकान्तिक वह दूर की शून्यता तुम्हे दुखदायक नहीं लगेगी !

मूल नेपाली से अनुवाद: बिर्ख खड़का डुबर्सेली

No comments

Powered by Blogger.