भारत और अमेरिका से युद्ध की तैयारी में चीन !
भारत और अमेरिका के बीच लगातार प्रगाढ़ हो रहे पारस्परिक रिश्ते और इन दो देशो से लम्बे समय से चली आ रही तनातनी के बाद चीन के राष्ट्रपति हु जिंताओ ने कहा है कि उनके देश की नौसेना को अपने विकास की गति बढ़ानी चाहिए और युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए. उन्होंने सैन्य अधिकारियों से कहा कि वे युद्ध के लिए विस्तार से तैयारी करें. चीन का कई देशों के साथ दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रिय विवाद है. साथ ही चीन और अमरीका के बीच भी राजनीतिक तनाव भी बढ़ रहा है.
अमरीका इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. हु जिंताओ की टिप्पणी के बाद अमरीका ने कहा कि चीन को ख़ुद को अपनी रक्षा करने का अधिकार है.एएफ़पी समाचार एजेंसी में छपे वक्तव्य के मुताबिक़ पेंटागन के प्रवक्ता एडमिरल जॉन किर्बी ने कहा, "यहां कोई भी झगड़े नहीं करना चाहता. किसी दूसरे देश के अपनी नौसेना विकसित करने के मौके से हमें कोई परेशानी नहीं है." वरिष्ठ चीनी और अमरीकी अधिकारी फ़िलहाल सैन्य मुद्दों पर बातचीत कर रहे हैं.ये एकदिवसीय बैठक हर साल होती है और इसका लक्ष्य ये सुनिश्चित करना होता है कि दोंनो देशों के बीच कोई ग़लतफ़हमी न हो.
विवाद
चीन की नौसेना में हाल ही में पहला विमानवाहक पोत शामिल हुआ है और वह अपने नौसेनिक महत्वकांक्षाओं के बारे में काफ़ी मुखर रहा है.हु जिंताओ ने सैन्य अधिकारियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए कहा, "(हमारी) नौसेना का तेज़ी से परिवर्तन और आधुनिकीकरण होना चाहिए और उसे विस्तार से युद्ध की तैयारी करनी चाहिए ताकि वह राष्ट्रीय सुरक्षा में और ज़्यादा योगदान दे सके."
"नौसेना का तेज़ी से परिवर्तन और आधुनिकीकरण होना चाहिए और उसे विस्तार से युद्ध की तैयारी करनी चाहिए ताकि वह राष्ट्रीय सुरक्षा में और ज़्यादा योगदान दे सके."-हु जिंताओ, चीन के राष्ट्रपति
हालांकि राष्ट्रपति की टिप्पणी के आधिकारिक अनुवाद में युद्ध शब्द का इस्तेमाल हुआ था लेकिन और जगह अनुवादों में 'सैन्य लड़ाई' और 'सैन्य संघर्ष' शब्द इस्तेमाल किए गए हैं.विश्लेषकों का कहता हैं कि हु जिंताओ की टिप्पणियां कुछ ज़्यादा ही स्पष्टवादी हैं और लगता है कि इनका निशाना अमरीका और दक्षिण चीन सागर में चीन के प्रतिद्वंद्वी हैं. फ़िलिपीन्स और वियतनाम समय-समय पर चीन के ऊपर क्षेत्र में आक्रमक रवैया अपनाने का आरोप लगाते रहे हैं. दोंनो ही उन देशों में शामिल हैं जो दक्षिण चीन सागर के उन द्वीपों पर दावा कर रहे हैं जिनमें तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार होने की उम्मीद है.
उधर पिछले महीने ही अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने घोषणा की थी कि अमरीका इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में उसकी मरीन टास्क फ़ोर्स का बेस बनेगा.विश्लेषकों का मानना है कि अमरीका का ये कदम इस क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिशों को सीधी चुनौती है और इससे दक्षिण चीन सागर विवाद में अमरीका के सहयोगियों को मदद मिलेगी।
( साभार - बीबीसी)
अमरीका इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. हु जिंताओ की टिप्पणी के बाद अमरीका ने कहा कि चीन को ख़ुद को अपनी रक्षा करने का अधिकार है.एएफ़पी समाचार एजेंसी में छपे वक्तव्य के मुताबिक़ पेंटागन के प्रवक्ता एडमिरल जॉन किर्बी ने कहा, "यहां कोई भी झगड़े नहीं करना चाहता. किसी दूसरे देश के अपनी नौसेना विकसित करने के मौके से हमें कोई परेशानी नहीं है." वरिष्ठ चीनी और अमरीकी अधिकारी फ़िलहाल सैन्य मुद्दों पर बातचीत कर रहे हैं.ये एकदिवसीय बैठक हर साल होती है और इसका लक्ष्य ये सुनिश्चित करना होता है कि दोंनो देशों के बीच कोई ग़लतफ़हमी न हो.
विवाद
चीन की नौसेना में हाल ही में पहला विमानवाहक पोत शामिल हुआ है और वह अपने नौसेनिक महत्वकांक्षाओं के बारे में काफ़ी मुखर रहा है.हु जिंताओ ने सैन्य अधिकारियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए कहा, "(हमारी) नौसेना का तेज़ी से परिवर्तन और आधुनिकीकरण होना चाहिए और उसे विस्तार से युद्ध की तैयारी करनी चाहिए ताकि वह राष्ट्रीय सुरक्षा में और ज़्यादा योगदान दे सके."
"नौसेना का तेज़ी से परिवर्तन और आधुनिकीकरण होना चाहिए और उसे विस्तार से युद्ध की तैयारी करनी चाहिए ताकि वह राष्ट्रीय सुरक्षा में और ज़्यादा योगदान दे सके."-हु जिंताओ, चीन के राष्ट्रपति
हालांकि राष्ट्रपति की टिप्पणी के आधिकारिक अनुवाद में युद्ध शब्द का इस्तेमाल हुआ था लेकिन और जगह अनुवादों में 'सैन्य लड़ाई' और 'सैन्य संघर्ष' शब्द इस्तेमाल किए गए हैं.विश्लेषकों का कहता हैं कि हु जिंताओ की टिप्पणियां कुछ ज़्यादा ही स्पष्टवादी हैं और लगता है कि इनका निशाना अमरीका और दक्षिण चीन सागर में चीन के प्रतिद्वंद्वी हैं. फ़िलिपीन्स और वियतनाम समय-समय पर चीन के ऊपर क्षेत्र में आक्रमक रवैया अपनाने का आरोप लगाते रहे हैं. दोंनो ही उन देशों में शामिल हैं जो दक्षिण चीन सागर के उन द्वीपों पर दावा कर रहे हैं जिनमें तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार होने की उम्मीद है.
उधर पिछले महीने ही अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने घोषणा की थी कि अमरीका इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में उसकी मरीन टास्क फ़ोर्स का बेस बनेगा.विश्लेषकों का मानना है कि अमरीका का ये कदम इस क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिशों को सीधी चुनौती है और इससे दक्षिण चीन सागर विवाद में अमरीका के सहयोगियों को मदद मिलेगी।
( साभार - बीबीसी)
Post a Comment