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वॉट्सएप के फाउंडर को पसंद है मिथुन, 20 बार देखी थी 'डिस्को डांसर'

बार्सिलोना। वॉट्सएप के को-फाउंडर जैन कूम इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। फेसबुक के हाथों 19 अरब डॉलर में दुनिया के सबसे मशहूर मैसेजिंग ऐप वॉट्सएप को बेचने के बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया में उनकी पसंद-नापसंद को लेकर हर दिन खबरें आती हैं। 'इकोनॉमिक्स टाइम्स' को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि वे बचपन से भारतीय फिल्में देखकर बड़े हुए हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने 1982 में आई मिथुन चक्रवर्ती की सुपरहिट फिल्म 'डिस्को डांसर' 20 से ज्यादा बार देखी है। यूक्रेन में पैदा हुए जैन कूम का बचपन गरीबी में बीता है। वे एक ग्रोसरी शॉप में सफाई का काम करते थे। कभी सोवियत यूनियन का हिस्सा रहे यूक्रेन में कम्युनिस्ट नेता पश्चिमी फिल्मों बजाय बॉलीवुड फिल्मों को ज्यादा स्वस्थ मनोरंजन मानते थे। इस कारण रूस में भारतीय फिल्मों को बड़े चाव से देखा जाता था।

कूम इन दिनों बार्सिलोना में चल रहे मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस में शिरकत करने आए हैं। वॉट्सएप के लिए भारत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। कूम कहते हैं कि हम चाहते हैं कि भारत में सभी स्मार्टफोन्स में वॉट्सएप हो। वॉट्सएप के लिए भारत एक बड़ा मार्केट है। भारत के स्मार्टफोन यूजर वॉट्सएप को एक अरब यूजर तक पहुंचा सकते हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर महीने 40 मिलियन (4 करोड़) से ज्यादा एक्टिव यूजर हैं। कूम बताते हैं कि फेसबुक से जुड़ने के बाद वॉट्सएप यूजर की संख्या में तेजी से इजाफा होगा। फेसबुक के भारत में 10 करोड़ यूजर हैं और हर सातवां व्यक्ति मोबाइल यूजर है। जैन कूम ने ब्रायन एक्टन के साथ वॉट्सएप एप्लीकेशन को डेवलप किया था। इसके दुनियाभर में 45 करोड़ यूजर हैं। शुरुआत के एक साल में यह मुफ्त होती है। एक साल बाद ऐप का 99 सेंट्स में सब्सक्रिप्शन लिया जा सकता है। यह टेक्स्ट, फोटो और वीडियो शेयरिंग के लिए बहुत आसान है।
इलेक्ट्रिसिटी तक नहीं थी कॉम के घर में 
वाट्सऐप के को-फाउंडर जैन कूम का जन्म यूक्रेन के एक छोटे से गांव कीव में हुआ था। अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता था। घर में इलेक्ट्रिसिटी तक नहीं थी। हालांकि, कूम अपनी मां के साथ 16 साल की उम्र में उन मुसीबतों से भरी जगह से बाहर निकल आए। कॉम वहां से माउंटेन व्यू में चले गए और सरकार की सहायता से एक टू-बेडरूम अपार्टमेंट भी रहने को मिल गया। वे एक ग्रोसरी की दुकान में साफ-सफाई और पोछा मारने का काम करते थे। वहीं, दूसरी ओर उनकी मां बच्चों की देखभाल (बेबी सिटर) करने की नौकरी करने लगीं। जिंदगी ने उस वक्त एक खरनाक मोड़ लिया, जब जैन को अपनी मां को कैंसर होने का पता चला। वे सरकार द्वारा दिए जाने वाले भत्तों के भरोसे ही अपना गुजर-बसर करते थे। जिंदगी के इन संघर्षों ने कूम को कमजोर करने के बजाए और मजबूत बना दिया। 18 साल की उम्र तक उन्होंने खुद से ही एक बुक स्टोर की किताब से पढ़कर सारी कम्प्यूटर नेटवर्किंग सीख ली।

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