Header Ads

जगदीश प्रसाद थापा जी : एक अद्वितीय गोरखा शख्सियत

दीपक राई
देहरादून में पले-बढे जगदीश प्रसाद थापा जी से मैं वर्ष 2013 के मध्य में मिला। उनसे मिलने के पहले मेरे मस्तिष्क में कंचित भी नहीं था कि मैं ऐसे शख्स से मिलने जा रहा हूँ जो मेरे विचार में अदभूत परिवर्तन के प्रेरणा बनेंगे। मेरे वीर गोरखा मीडिया समूह के उत्तराखंड के सहयोगी ईश्वर थापा के प्रयासो से मैं उनसे मिलने देहरादून शहर स्थित पॉश कॉलोनी वसंत विहार के भव्य घर पहुंचा। पेशे से इंजिनियर थापा जी ने गेट से ही बेहद गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया। उनसे बातचीत का दौर चल निकला। उनसे बात करने के दौरान में उनके सीखने की प्रतिभा और ललक से आश्चर्य में था। 

75 वर्ष के श्री थापा जी जी सबसे ज़्यादा जिज्ञासा कम्प्यूटर साक्षरता कार्यक्रम के तहत गोरखा समुदाय को जागरूक करना था। बातो-बातो में यह भी रोचक जानकारी मिली कि 1958 के आस-पास वह सम्भवत: देश के पहले गोरखा व्यक्ति थे, जिन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में बतौर विद्यार्थी दाखिला प्राप्त किया। 60 के दशक में शीतयुद्ध जब श्री थापा जी ने तत्कालीन सोवियत रूस में भी प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के भारत-सोवियत संयुक्त सहयोग कार्यक्रम के तहत कार्य किया। खैर यह तो रही उनकी जीवन की शुरुआती कहानी है लेकिन अब वर्तमान में देहरादून के गोरखा समुदाय के लिए थापा जी की निष्ठा मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत है। हाल ही में उनको मगर समाज समिति, देहरादून का अध्यक्ष चुन लिया गया है। उनको तहे दिल से शुभकामनाए। मुझे पूरी उम्मीद है कि थापा जी अपने अनुभवों से मगर समाज समिति के लिए बेहतर और सकारात्मक कार्य करेंगे। स्वयं यह मगर समाज के लिए गौरव की बात है कि उनके साथ जेपी थापा जी जुड़े है। उनके प्रयासो से निश्चित रूप से आने वाले समय में गोरखा समुदाय उपकृत होगा।

आईए उनके द्वारा लिखे गए एक लेख को पढ़े। निसंदेह यह लेख गोरखा समाज के लिए प्रेरणा बनेगा। 

देहरादून में गोर्खाओं के जातिय संस्थाओं के बारे में मेरे विचार 

भारतीय मगर समाज का गठन ठीक एक वर्ष पहले 10 फ़रवरी 2013 को हुआ था | उन दिनों मैं टाइम पास के उद्देश्य से विभिन्न संश्थाओं से जुड़ रहा था | भारतीय मगर समाज तीसरी संस्था थी जिस से मैं जुड़ा | ईश्वर साक्षी है की मेरा उद्देश्य टाइम पास ही था | संस्था के लिए मैंने ब्लॉग तैयार करने की पेशकश की | मैंने उन्हें बताया की ब्लॉग से संस्था की पारदर्शिता में मदद मिलेगी और संस्था की पहुँच भी बढ़ेगी | भाग्यवश मौजूद सदस्यों ने मुझे मुख्य संरक्षक चुन लिया | फिर क्या था मैंने भरसक संस्था की सेवा की | नतीजतन संस्था ने मुझे 2 फ़रवरी 2014 को संस्था का अध्यक्ष चुन लिया | पिछले एक वर्ष के दौरान कुछ चीजें मेरे ध्यान में आयीं जिनका उल्लेख मैं करता हूँ | मैंने देखा की हमारा सारा ध्यान वर्ष में एक बार होने वाले वार्षिक समारोह की तरफ ही रहता है | हम इसी में लगे रहतें हैं की हमारा वार्षिक सम्मलेन भव्य से भव्य हो | इसके बाद हम कुछ समय आराम करते हैं और उसके बाद फिर से आने वाले वार्षिक समारोह की तैयारी करने लगतें हैं | मैं मानता हूँ वार्षिक सम्मेलन महत्वपूर्ण है | क्योंकि इसके माध्यम से हम अपने जाति के इतिहास और संस्कृति जैसे की नृत्य, संगीत, साहित्य और परम्पराओं को फिर से जीवित करते हैं | इसके माध्यम से हम संस्था के लोगों को जोड़ते हैं | पर जोड़ने के अलावा सदस्यों को विकास की ओर आगे बढ़ाना भी महत्वपूर्ण है |

लिखित में प्रायः सभी संस्थाओं का उद्देश्य रहता है “आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक प्रगति के लिए कार्यक्रमों को तैयार करना व कार्यान्वित करना, जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों को रोजगार के सम्बन्ध में जानकारी देना, सामाजिक कुरीतियों से छुटकारा पाना, शिक्षा के महत्त्व और उसके विभिन्न रूपों (व्यवसायिक, कलात्मक आदि) से अवगत कराना” | यह एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर सब जातिय संस्था उचित ध्यान दें और प्रयास करें तो मुझे अत्यंत हर्ष होगा | यह संस्था के लिए एक ऐसा कार्य है जो कार्यकर्ताओं को निरंतर व्यस्त रख सकता है | विकास कैसे हो? या कैसे करें? हम जैसे पिछड़े लोगों के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं बनाती है | उदाहरण के लिए गोरखा जाति को पिछड़ा मानकर सरकार ने गोर्खाओं को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में चिन्हित कर लिया है | हम यह सोचकर रह जाते हैं कि ओबीसी का फायदा उठाना व्यक्तियों कि अपनी व्यक्तिगत समस्या है | ऐसा नहीं है | चतुर लोग भले ही ओबीसी का फायेदा उठा लें फिर भी कुछ लोगों को मदद चाहिए | यहाँ हमारे संस्था को मदद के लिए आगे आना चाहिए | 

हमें अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करना चाहिए | बल्कि यह पता लगाने कि कोशिश होनी चाहिए कि कोई ओबीसी का लाभ उठाने से वंचित तो नहीं रह गया | ओबीसी से लाभ उठाना एक व्यक्तिगत समस्या न होकर संस्था की समस्या हो | यदि हमारे पास सभी गोर्खाओं का एक ‘आंकड़ों-का-आधार’ यानि डेटाबेस हो तो हम फ़ौरन जान सकते हैं कि हम में से कौन मदद के लिए जरूरतमंद है | हमारी संस्था का एक Task याने काम यह भी होना चाहिए कि कैसे और जल्द से जल्द कब तक ऐसा डाटाबेस तैयार करें जो हमें विकास के काम में सहायक हो | इस डाटाबेस में कम से कम संस्था के सदस्य का नाम और उसका मोबिल नंबर होना चाहिए | ताकि हम सदस्य को आसानी से संपर्क कर सकें | इसके अलावा शिक्षा, जाति प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, कंप्यूटर, व्यवसायिक/चिकित्सा/व्यापार/कृषि सम्बन्धी कौशल की जानकारियां हों तो और भी अच्छा |

आज का युग तुरंत संचार का है | प्रत्येक व्यक्ति को मोबिल फोन रखना ही चाहिए | मोबिल फोन आपकी पहचान है | यदि हमें किसी सदस्य का नाम और उसका मोबिल फोन नंबर पता हो तो हम तुरंत उससे बात कर सकते हैं तथा sms द्वारा समाचार से अवगत करा सकते हैं | मेरे विचार से संस्था के सभी सदस्य आपस में मोबिल फोन द्वारा जुड़े होने चाहिए | यह जानकर मुझे हैरानी होती है कि किसी किसी संस्था के पदाधिकारी के पास मोबिल फोन नहीं है | लेंडलाइन तो घर में रहता है | आवश्यकता पड़ने पर कोई सदस्य इन पदाधिकारी से कैसे जुड़े | क्या मैं यह मान लूँ कि ये अपने सदस्यों से जुडना नहीं चाहते ? एक और बात | हम में से कुछ संस्थाओं के पास बुनियादी सहूलियतें (Infrastructure) हैं जिनका इस्तेमाल और कारगर ढंग से हो सकता है पर हो नहीं रहा | AIGEWA जो नयागांव में स्थित है वो आसानी से गांव के लोगों के लिए कंप्यूटर शिक्षा केन्द्र इत्यादि चला सकता है पर चला नहीं रहा | दूसरी ओर गोर्खाली सुधार सभा कंप्यूटर शिक्षा केन्द्र बखूबी चला रहा है | मैं कहना चाहूँगा जिस जिस संस्था के पास ईमारत है उसको अपने सदस्यों के बच्चों के लिए कंप्यूटर शिक्षा केन्द्र चलाना चाहिए | मेरी समझ से मगर समाज के अलावा बाकी सभी तीन जातिय संस्थाओं के पास ईमारत हैं | यदि मेरा यह लेख संस्थाओं पर दबाव का काम करता है और वे कंप्यूटर शिक्षा केन्द्र चलने कि ओर ठोस कदम उठाते हैं तो मुझे खुशी होगी |

यह लेख जेपी थापा जी के ब्लॉग से उद्घृत किया गया है। उनके ब्लॉग का लिंक क्लिक करे है

Powered by Blogger.