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उत्तराखंड लोक सभा चुनाव 2014 : पंजे और कमल में सीधी जंग

देहरादून। उत्तराखंड की पांच सीटों केलिए सात मई को वोट पड़ेंगे। प्रचार थमने से पहले अब ‘जंग’ की तस्वीर साफ हो गई है। उत्तराखंड में परंपरागत ढंग से इस बार फिर मुख्य मुकाबले में कांग्रेस-भाजपा के उम्मीदवार ही हैं। हालांकि बसपा, सपा और आप अलग-अलग ढंग से कहीं कांग्रेस को तो कहीं भाजपा को नुकसान पहुंचा रही हैं। नरेंद्र मोदी उत्तराखंड के मतदाताओं से कमल के पांच फूल मांग रहे हैं। दूसरी ओर मुख्यमंत्री हरीश रावत की कोशिश है कि कमल उत्तराखंड में मुरझा जाए।
 
टिहरी
टिहरी सीट पर भी चुनाव रोचक हो चला है। 18 महीने पहले ही हुए उपचुनाव के दोनों मुख्य प्रतिद्वंद्वी फिर मैदान में हैं। सांसद माला राज्यलक्ष्मी के खिलाफ कांग्रेस ने इस बार भी पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे साकेत को उतारा है। मुख्य मुकाबला भी इन्हीं के बीच है। लेकिन यहां आप के अनूप नौटियाल खेल बिगाड़ने वाले उम्मीदवार साबित हो सकते हैं। अजित सिंह के लोकदल के उम्मीदवार कुंवर जपेंद्र भी मैदान में हैं। उनकी भूमिका भी नुकसान पहुंचाने वाले उम्मीदवार की ही होगी। कांग्रेस प्रत्याशी वर्तमान सांसद के कार्यकाल को लेकर उन्हें घेर रहे हैं लेकिन उनके पिता का मुख्यमंत्रित्व काल उनके लिए मुसीबत बन रहा है। हालांकि, लोगों का यह भी कहना है कि साकेत की जगह अगर उनके पिता विजय बहुगुणा उम्मीदवार होते तो कांग्रेस और मजबूत होती। वैसे विजय बहुगुणा का पूरा फोकस टिहरी सीट पर ही है। बतौर सांसद वह यहां का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। भाजपा उम्मीदवार माला राज्यलक्ष्मी शाह राजघराने से ताल्लुक रखती हैं। इस सीट पर टिहरी रियासत और बहुगुणा परिवार का ही दबदबा रहा है। वैसे, 18 महीनों में टिहरी की परिस्थितियां भी बदली हैं।
 
हरिद्वार
हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में लगातार तीन जनसभाओं ने इसे और हॉट बना दिया है। शुक्रवार को बसपा प्रमुख मायावती, शनिवार को नरेंद्र मोदी और रविवार को सोनिया गांधी की जनसभाओं ने सियासी पंडितों को भी उलझा दिया है। करीब साढ़े तीन लाख मुस्लिम मतदाताओं पर कांग्रेस की नजर है। 2009 में हरीश रावत के सांसद बनने से पहले सपा भी यहां से एक सांसद जिता चुकी है। सपा ने इस बार यहां से अनीता सैनी को प्रत्याशी बनाकर कर ओबीसी कार्ड खेला है। मायावती की रैली में दम तो दिखा लेकिन हरिद्वार से उनके तीन विधायकों में से दो कांग्रेस के पक्ष में खड़े हैं। हरिद्वार में बड़ी संख्या में दलित मतदाता भी हैं। बसपा यहां जीतने की हैसियत में तो नहीं दिख रही, लेकिन नुकसान जरूर करेगी। भाजपा ने यहां से पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक को उम्मीदवार बनाया है। देश में मोदी की लहर का फायदा भाजपा उम्मीदवार को भी मिलता दिख रहा है। रुड़की में हुई रैलियों से संकेत मिले हैं कि यहां वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है। कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री की पत्नी रेणुका रावत मैदान में हैं।

नैनीताल
नैनीताल संसदीय सीट का मिजाज भी हरिद्वार से मेल खाता है। यहां भी पहाड़ी इलाकों से अधिक मैदानी इलाके हैं। यहां भी मुस्लिम मतदाताओं की संख्या चुनावी गणित उलझाती है। इस संसदीय क्षेत्र के ऊधमसिंह नगर की आबादी पूरे चुनाव को बदलने का दम रखती है। यहां सीधी टक्कर कांग्रेस-भाजपा में है। लेकिन सपा, बसपा के साथ आप के उम्मीदवार बल्ली सिंह चीमा ने दोनों ही दलों की मुसीबत बढ़ा रखी है। कांग्रेस के वर्तमान सांसद केसी सिंह बाबा हैट्रिक की इच्छा के साथ चुनाव मैदान में उतरे हैं। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को मैदान में उतारा है। स्थानीय विकास और मुद्दे अधिक हावी हैं। कांग्रेस सांसद अपने काम को लेकर वोट मांग रहे हैं जबकि भाजपा उम्मीदवार को मोदी लहर और अपनी छवि पर भरोसा है। 
 
अल्मोड़ा
उत्तराखंड की एक मात्र सुरक्षित अल्मोड़ा संसदीय सीट पर भी फैसला कांग्रेस-भाजपा के बीच होना है। दो बार के प्रतिद्वंद्वी वर्तमान कांग्रेस सांसद प्रदीप टम्टा और भाजपा विधायक अजय टम्टा आमने-सामने हैं। क्षेत्र के हिसाब से यह संसदीय क्षेत्र सबसे बड़ा है। इसकी सीमाएं नेपाल और चीन को छूती हैं। अल्मोड़ा मुख्यमंत्री हरीश रावत का गृह जनपद और पुराना संसदीय क्षेत्र है। लिहाजा उनका सिक्का यहां अब भी चल रहा है। भाजपा पिछला चुनाव मामूली साढ़े छह हजार वोटों से हारी थी, लिहाजा उसे इस बार जीत की उम्मीद है। यह संसदीय क्षेत्र प्रदेश के कई प्रमुख नेताओं का गढ़ है। ऐसे में उनका नाम और काम भी उम्मीदवारों को हराने-जिताने में भूमिका निभाएगा। इस संसदीय क्षेत्र में अलग-अलग इलाकों की अलग-अलग समस्याएं और मांग हैं। यहां राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में मोदी फैक्टर साफ दिखता है लेकिन हरीश रावत की सरकार बचाए रखने के लिए सहानुभूति के आधार पर भी वोट पड़े तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ेंगी।
 
पौड़ी
पौड़ी प्रदेश में सर्वाधिक आपदा प्रभावित संसदीय क्षेत्र है। आपदा के बाद पुनर्वास और पुनिर्निर्माण ही यहां का सबसे बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस चुनाव में मतदाताओं को यह बता रही है कि उसने आपदा के बाद क्या-क्या किया। जबकि भाजपा प्रदेश सरकार की खामियां बताकर बदइंतजामी को लेकर सवाल उठाती रही। शुरुआती दौर में यह सीट भाजपा के खाते में जाती हुई मानी जा रही थी। भाजपा की ओर से यहां से चार बार सांसद रहे पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी फिर उम्मीदवार हैं। खंडूड़ी की स्वच्छ छवि और पूर्व सैनिकों के बीच उनकी पकड़ का लाभ उन्हें मिल रहा है। यहां से सांसद रहे सतपाल महाराज के भाजपा में जाने के बाद कांग्रेस ने भी यहां टक्कर का उम्मीदवार उतारा है। पहले कांग्रेस इस सीट पर उम्मीदवार तय नहीं कर पा रही थी। लेकिन हरक सिंह रावत के उम्मीदवार बनने से यहां फाइट तीखी हो गई है। हरक सिंह ने खंडूड़ी के बालसखा केदार सिंह फोनिया समेत कई करीबियों को अपने पाले में कर लिया है।
 
- अमर उजाला 

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