चीन सीमा पर बसे गांववालों को मिलिट्री ट्रेनिंग देगा भारत
नई दिल्ली : एनडीए
सरकार चीन की सीमा से सटे गांवों के लोगों को 'मिलिट्री ट्रेनिंग' देने की
योजना बना रही है ताकि वे 'अर्धसैनिकों बलों की तरह काम कर सकें' और चीन
की सेना द्वारा की जाने वाली घुसपैठ की कोशिशों पर लगाम कस सके। गृह
मंत्रालय अरुणाचल प्रदेश में इंडाे तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) की
मौजूदगी को बढ़ाकर दोगुना करने पर भी विचार कर रहा है। उधर, सेना
प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह आज बीजिंग के लिए रवाना होंगे। वह बीते करीब एक
दशक में चीन जाने वाले पहले भारतीय सेना प्रमुख होंगे।
कुछ अंग्रेजी अखबारों ने शीर्ष अधिकारियों के हवाले से यह खबर दी है। अधिकारियों के मुताबिक, ''सीमा से सटे लोगों को सैन्य ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वे जरूरत के वक्त अर्धसैनिक बलों की तरह कार्रवाई कर सकें। सीमा के एक किमी दायरे में रहने वाले बाशिंदे इसके लिए सबसे मुफीद विकल्प हैं। ये लोग किसी किस्म की घुसपैठ पर नजर रख सकेंगे, खास तौर पर वहां जहां सीमा का स्पष्ट विभाजन नहीं है। सीमावर्ती इलाकों को लेकर यूपीए सरकार की नीतियों का हमें अच्छा खासा खामियाजा भुगतना पड़ा है।''
इन्फ्रास्ट्रक्चर भी किया जाएगा विकसित
एनडीए सरकार ने सीमावर्ती इलाकों को लेकर जो नीति बनाई है, उसके अंतर्गत इन इलाकोें में आम नागरिकों की आसान पहुंच सुनिश्चित करना और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना भी है। गृह मंत्रालय की ओर से पहले ही 5500 करोड़ रुपए की योजना का प्रस्ताव पेश किया गया है, जिसके तहत अरुणाचल प्रदेश में चीन से सटी सीमा पर गांववालों को बसने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। बता दें कि इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से इन इलाकों में रहने वाले लोग अपना घर छोड़कर चीन सीमा से कम से कम 50 किमीं दूर आकर बस गए हैं। अधिकारियों का मानना है कि अगर सीमावर्ती इलाकों के लोगों को सुविधाएं और हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाए तो घुसपैठ के मामलों में कमी आएगी। अधिकारियों का यह भी कहना है कि हम किसी की सीमा में नहीं घुस रहे, हम तो बस अपनी सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं।
पुरानी है परंपरा
1962 में भारत और चीन के बीच हुई जंग के बाद से सीमा के इलाकों में सैन्य प्रशिक्षण देने की परंपरा शुरू हुई। स्पेशल सर्विस ब्यूरो (इस वक्त सशस्त्र सीमा बल) की स्थापना हुई ताकि वे सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों के बीच देशभक्ति की भावना भर सकें। ब्यूरो का मकसद लोगों को प्रोत्साहन और ट्रेनिंग देकर उनकी क्षमताओं का विकास करना था। सशस्त्र ट्रेनिंग देने की प्रक्रिया 2001 से खत्म कर दी गई। हालांकि, इससे मिलती-जुलती परंपरा ग्रामीण सुरक्षा कमेटी के तौर पर जम्मू-कश्मीर में आज भी है। यह कमेटी राज्य पुलिस के अधीन काम करती है और आतंकवादियों से लड़ने के लिए इनके पास हथियार होते हैं।
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