देहरादून के वरिष्ठ गोरखा समाजसेवी/कवि सूरजमान राई का पटना में हृदय आघात से आकस्मिक निधन
वीर गोरखा न्यूज नेटवर्क
देहरादून : शहर के वरिष्ठ गोरखा समाजसेवी एवं नेपाली भाषा के कवि सूरजमान राई जी का हृदय आघात के कारण आकस्मिक निधन हो गया है। वह सिलगुड़ी से भारतीय गोर्खा परिसंघ के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद ट्रेन से देहरादून आ रहे थे। पटना के करीब उनको अचानक हुए हृदय आघात के कारण उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। उनकी पार्थिव देह एम्बुलेंस के माध्यम से कल सुबह तक देहरादून लाया जाएगा। जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। गोरखा समाज के वरिष्ठ समाजसेवी, बुद्धिजीवी एवं अग्रिम पंक्ति में हमेशा शामिल सूरजमान जी वर्तमान में भारतीय गोर्खा परिसंघ उत्तराखंड राज्य इकाई के अध्यक्ष थे। उनके निधन से समाज को अपूरणीय क्षति हुई है। सूरजमान जी देहरादून के प्रत्येक गोरखा समाज से जुड़े हुए मुद्दे और कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर कमान संभालते हुए नजर आ जाते थे। बेहद मिलनसार एवं मृदुभाषी व्यवहार के स्वामी सूरजमान जी राजधानी के प्रेमपुरा माफी के रहने वाले नेपाली भाषा समिति के लिए भी कई आंदोलन में शामिल रहे। वह स्वयं बहुत अच्छे नेपाली भाषा के कवि भी थे। उनकी कई रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही। गोरखा समाज के कई गणमान्य लोगों ने उनके आकस्मिक निधन पर शोक व्यक किए।
देहरादून : शहर के वरिष्ठ गोरखा समाजसेवी एवं नेपाली भाषा के कवि सूरजमान राई जी का हृदय आघात के कारण आकस्मिक निधन हो गया है। वह सिलगुड़ी से भारतीय गोर्खा परिसंघ के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद ट्रेन से देहरादून आ रहे थे। पटना के करीब उनको अचानक हुए हृदय आघात के कारण उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। उनकी पार्थिव देह एम्बुलेंस के माध्यम से कल सुबह तक देहरादून लाया जाएगा। जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। गोरखा समाज के वरिष्ठ समाजसेवी, बुद्धिजीवी एवं अग्रिम पंक्ति में हमेशा शामिल सूरजमान जी वर्तमान में भारतीय गोर्खा परिसंघ उत्तराखंड राज्य इकाई के अध्यक्ष थे। उनके निधन से समाज को अपूरणीय क्षति हुई है। सूरजमान जी देहरादून के प्रत्येक गोरखा समाज से जुड़े हुए मुद्दे और कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर कमान संभालते हुए नजर आ जाते थे। बेहद मिलनसार एवं मृदुभाषी व्यवहार के स्वामी सूरजमान जी राजधानी के प्रेमपुरा माफी के रहने वाले नेपाली भाषा समिति के लिए भी कई आंदोलन में शामिल रहे। वह स्वयं बहुत अच्छे नेपाली भाषा के कवि भी थे। उनकी कई रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही। गोरखा समाज के कई गणमान्य लोगों ने उनके आकस्मिक निधन पर शोक व्यक किए।


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