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उत्तर बंगाल के पहाड़ी इलाकों में पकड़ बनाने के लिए CM ममता डिवाइड & रूल के रास्ते पर ?


CATCH STORY
दार्जिलिंग :
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की इस बात के लिए तारीफ की जा सकती है कि उन्होंने पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के लिए 15 विकास बोर्ड बनाने के वास्ते 300 करोड़ रुपए देने की घोषणा की है. भले ही इस घोषणा के पीछे उद्देश्य आगामी समय में होने वाले नगरपालिका के चुनाव हों लेकिन अब उन्हें एक समूह की तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है जिसे लगता है कि उसे अलग-थलग कर दिया गया है. ममता ने अपने विकास बोर्ड प्लान में उत्तरी बंगाल के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले खास, गुरुंग और लेपचा समुदायों के लोगों के हितों की चिन्ता की है.

पहाड़ों के अनुसूचित जनजाति के आदिवासियों ने अब मांग की है कि उनके समुदाय के कल्याण के लिए राज्य सरकार अलग से बोर्ड का गठन करे. अनुसूचित जनजाति के ये आदिवासी ज्यादातर चाय के बागानों में काम करते हैं. इन लोगों ने पहाड़ों में इसी साल होने वाले नगरपालिका चुनावों के मद्देनजर अपना आन्दोलन और तेज करने का निश्चय किया है. जिला प्रशासन से मिले आंकड़ों के अनुसार इन चाय बागान मजदूरों (अनुसूचित जनजाति के आदिवासी) की संख्या लगभग 20 हजार है जो राज्य सरकार द्वारा चलाई गई कल्याणकारी योजनाओं के दायरे में आने से वंचित रह गए हैं.

समुदायों का मामला
उत्तरी बंगाल विकास विभाग के सूत्रों के अनुसार ये एसटी आदिवासी ज्यादातर गुरुंग समुदाय के हैं और वे पहाड़ों में बिमल गुरुंग का समर्थन कर रहे हैं. कहना न होगा कि अनुसूचित जनजातियों के आदिवासियों के वोटों को हथियाने का काम अब पहाड़ों में भी शुरू हो गया है. हालांकि, गुरुंग समुदाय के साथ ताजे विवाद की वजह अलग से कलिम्पोंग जिले को बनाना है. कलिम्पोंग कुछ महीनों पहले तक दार्जिलिंग जिले का सब-डिवीजन था. गुरुंग समुदाय मांग कर रहा है कि गुरुंग विकास बोर्ड का चेयरमैन और वायस चेयरमैन कलिम्पोंग के बजाए दार्जिलिंग से बनाया जाए.

इसके अलावा उनका यह भी तर्क है कि मुख्यमंत्री ने अभी केवल गुरुंग समुदाय के लिए विभिन्न बोर्ड बनाने की बात कही है जिसका गठन अभी किया जाना है. गुरुंग समुदाय के एक सदस्य बिनंजय गुरुंग का कहना है कि विभिन्न विकास बोर्डों के लगभग सभी चेयरमैन और वायस चेयरमैन कलिम्पोंग से हैं. ऐसे में हमारा कहना है कि मुख्यमंत्री गुरुंग विकास बोर्ड का चेयरमैन और वायस चेयरमैन दार्जिलिंग से ही बनाएं जैसा कि उन्होंने अलग से प्रशासन के लिए नया कलिम्पोंग जिला बनाया है.

बंटवारा और झगड़ा ?
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएमएम) के अनुसार विभिन्न समुदायों के लिए विभिन्न विकास बोर्ड बनाने का परिणाम यह निकलेगा कि समुदायों के बीच विवाद की स्थिति बनेगी और क्षेत्र की शांति में खलल पैदा हो जाएगा. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के एक वरिष्ठ सदस्य के अनुसार तृणमूल कांग्रेस जो पहाड़ों में डिवाइड एंड रूल का खेल खेल रही है, हम उसके खिलाफ अपना आन्दोलन जारी रखेंगे. वह कहते हैं कि हम सभी समुदायों के हितों को ध्यान में रखते हुए पहाड़ों का समग्र और पूरा विकास चाहते हैं. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के सूत्रों ने कहा कि ममता बनर्जी पहाड़ों में डिवाइड एंड रूल का खेल अपनाना चाहती हैं और इसीलिए उन्होंने नगरपालिका चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपने वोट बैंक को मजबूत करने की खातिर फंड जारी किया है.

पहाड़ों में निवास कर रहे विभिन्न समुदायों का ज्यादा से ज्यादा समर्थन हासिल करने की कोशिशों के तहत ममता बनर्जी ने बुधवार को 15 विभिन्न समुदायों के स्थानीय क्लबों को दो लाख रुपए देने की घोषणा की ताकि वे खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकें. क्लबों को इस राशि के चेक 20 फरवरी को दिए जाएंगे. ममता ने समुदायों से यह भी अनुरोध किया कि वे इसी उद्देश्यों की खातिर समुदायों में से 10 से ज्यादा क्लबों की पहचान करें. ममता की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब तृणमूल कांग्रेस पहाड़ों में अपना आधार मजबूत करने के लिए कड़ा संघर्ष कर रही है और जीजेएमएम अलग गोरखालैंड राज्य की मांग के लिए अपना आन्दोलन तेज करने जा रहा है.

वर्ष 2016 के विधान सभा चुनावों के दौरान तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार भाईचुंग भूटिया को सिलीगुड़ी सीट से पराजय का सामना करना पड़ा था. वह सिलीगुड़ी के मेयर और माकपा के पूर्व मंत्री अशोक भट्टाचार्य से 14,072 वोटों से हार गए थे. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक इस ख्याल के हैं कि ममता बनर्जी पहाड़ों में अपना मजबूत आधार चाहती हैं और इसी उद्देश्य की खातिर अब वह नगर पालिका चुनावों के मद्देनजर सभी वंचित समुदायों के लिए कल्याणकारी घोषणा करने के पहले –इंतजार करो और देखो- की नीति अपनाने की कोशिश कर रही हैं.

 
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