शहीद गौतम गुरुंग के 72 साल के पिता बिग्रेडियर पीएस गुरुंग तराश रहे गोरखा बॉक्सिंग चैम्पियंस को
गौरव गुलेरी
देहरादून : शहीद बेटे की यादों को संजोए रखने के लिए फौजी पिता ने अनोखी राह चुनी। छह साल पहले उन्होंने बेटे के नाम पर 'गौतम गुरुंग बॉक्सिंग क्लब' की नींव रखी और युवाओं को खेल के साथ-साथ सेना व अर्द्धसैनिक बलों में भर्ती के लिए प्रशिक्षित करना शुरू किया। वो भी निश्शुल्क। नतीजा, यहां तैयार 49 जांबाज सरहदों की निगरानी में मुस्तैद हैं। देहरादून के गढ़ी कैंट में रहने वाले बिग्रेडियर (अप्रा) पीएस गुरुंग भले 72 साल के हों, लेकिन उम्र इस जवान के जोश और जज्बे पर हावी नहीं हो पाई। क्लब की पृष्ठभूमि को याद कर वह बताते हैं कि 'मेरे दो बच्चे थे। एक बेटा और एक बेटी। बेटा देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया। बेटी का विवाह भी फौजी से ही हुआ है।'
वह बताते हैं कि जब 1998 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग की शहादत की सूचना आई तब आंसू तो छलके, लेकिन फख्र से सीना चौड़ा हो गया। कुछ समय बाद में मैंने बेटे की याद में ले. गौतम गुरुंग मेमोरियल फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित किया। टूर्नामेंट कुछ साल गोरखपुर और देहरादून में आयोजित किया गया, लेकिन खेल में राजनीति को देखते हुए इसे बंद करना पड़ा। गुरुंग बताते हैं कि वर्ष 2011 में गौतम गुरुंग बॉक्सिंग क्लब की नींव रखी गई। गोरखा मिलेट्री इंटर कॉलेज के परिसर में संचालित क्लब में खिलाड़ी भी तैयार हो रहे हैं और सैनिक भी।
ट्रस्ट उठाता है खर्च
क्लब में छह साल से 20 साल तक के बालक-बालिकाएं मुक्केबाजी के गुर सीख रहे हैं। वर्तमान में इनकी संख्या 50 है। ट्रेनिंग व उपकरण जैसे बॉक्सिंग बैग, पंचिंग ग्लब्स, किट आदि का खर्च ले. गौतम गुरुंग ट्रस्ट के माध्यम से उठाया जा रहा है। बिग्रेडियर गुरुंग के मुताबिक बेटे की पेंशन का जो पैसा मिलता है उसे ट्रस्ट में डाल दिया जाता है। वह कहते हैं इन बच्चों में मुझे बेटे का अक्स नजर आता है। क्लब में प्रशिक्षित पवन गुरुंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक बिखेर चुके हैं। वह वर्ष 2015 में रूस में विश्व जूनियर चैंपियनशिप में शिरकत कर चुके हैं। इसके अलावा अर्चना, सचिन शर्मा, कल्पना सूरज जैसे नाम हैं राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं।
मिल रही है क्लब में खिलाड़ियों को हर तरह की सुविधा
इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज पवन गुरुंग का कहना कि क्लब से ही बॉक्सिंग ककहरा सीखकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा हूं। क्लब में खिलाड़ियों को हर तरह की सुविधा मिल रही है।
मैरीकॉम की तरह देश का नाम रोशन करुंगी : साक्षी थापा
बालिका मुक्केबाज साक्षी थापा कहना है कि मेरा सपना है कि मैं भी मैरीकॉम की तरह देश का नाम रोशन करुं। बॉक्सिंग क्लब ज्वाइन करने के बात जरूर इस सपने को पूरा करुंगी।
क्लब में लड़कों और लड़कियों को समान प्रशिक्षण दिया जा रहा
महिला मुक्केबाज केज का कहना है कि बॉक्सिंग सीखने की ललक थी। जब यहां आई तो अपने को रोक नहीं सकी। क्लब में लड़कों और लड़कियों को समान प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
साभार - दैनिक जागरण
देहरादून : शहीद बेटे की यादों को संजोए रखने के लिए फौजी पिता ने अनोखी राह चुनी। छह साल पहले उन्होंने बेटे के नाम पर 'गौतम गुरुंग बॉक्सिंग क्लब' की नींव रखी और युवाओं को खेल के साथ-साथ सेना व अर्द्धसैनिक बलों में भर्ती के लिए प्रशिक्षित करना शुरू किया। वो भी निश्शुल्क। नतीजा, यहां तैयार 49 जांबाज सरहदों की निगरानी में मुस्तैद हैं। देहरादून के गढ़ी कैंट में रहने वाले बिग्रेडियर (अप्रा) पीएस गुरुंग भले 72 साल के हों, लेकिन उम्र इस जवान के जोश और जज्बे पर हावी नहीं हो पाई। क्लब की पृष्ठभूमि को याद कर वह बताते हैं कि 'मेरे दो बच्चे थे। एक बेटा और एक बेटी। बेटा देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया। बेटी का विवाह भी फौजी से ही हुआ है।'
वह बताते हैं कि जब 1998 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग की शहादत की सूचना आई तब आंसू तो छलके, लेकिन फख्र से सीना चौड़ा हो गया। कुछ समय बाद में मैंने बेटे की याद में ले. गौतम गुरुंग मेमोरियल फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित किया। टूर्नामेंट कुछ साल गोरखपुर और देहरादून में आयोजित किया गया, लेकिन खेल में राजनीति को देखते हुए इसे बंद करना पड़ा। गुरुंग बताते हैं कि वर्ष 2011 में गौतम गुरुंग बॉक्सिंग क्लब की नींव रखी गई। गोरखा मिलेट्री इंटर कॉलेज के परिसर में संचालित क्लब में खिलाड़ी भी तैयार हो रहे हैं और सैनिक भी।
ट्रस्ट उठाता है खर्च
क्लब में छह साल से 20 साल तक के बालक-बालिकाएं मुक्केबाजी के गुर सीख रहे हैं। वर्तमान में इनकी संख्या 50 है। ट्रेनिंग व उपकरण जैसे बॉक्सिंग बैग, पंचिंग ग्लब्स, किट आदि का खर्च ले. गौतम गुरुंग ट्रस्ट के माध्यम से उठाया जा रहा है। बिग्रेडियर गुरुंग के मुताबिक बेटे की पेंशन का जो पैसा मिलता है उसे ट्रस्ट में डाल दिया जाता है। वह कहते हैं इन बच्चों में मुझे बेटे का अक्स नजर आता है। क्लब में प्रशिक्षित पवन गुरुंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक बिखेर चुके हैं। वह वर्ष 2015 में रूस में विश्व जूनियर चैंपियनशिप में शिरकत कर चुके हैं। इसके अलावा अर्चना, सचिन शर्मा, कल्पना सूरज जैसे नाम हैं राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं।
मिल रही है क्लब में खिलाड़ियों को हर तरह की सुविधा
इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज पवन गुरुंग का कहना कि क्लब से ही बॉक्सिंग ककहरा सीखकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा हूं। क्लब में खिलाड़ियों को हर तरह की सुविधा मिल रही है।
मैरीकॉम की तरह देश का नाम रोशन करुंगी : साक्षी थापा
बालिका मुक्केबाज साक्षी थापा कहना है कि मेरा सपना है कि मैं भी मैरीकॉम की तरह देश का नाम रोशन करुं। बॉक्सिंग क्लब ज्वाइन करने के बात जरूर इस सपने को पूरा करुंगी।
क्लब में लड़कों और लड़कियों को समान प्रशिक्षण दिया जा रहा
महिला मुक्केबाज केज का कहना है कि बॉक्सिंग सीखने की ललक थी। जब यहां आई तो अपने को रोक नहीं सकी। क्लब में लड़कों और लड़कियों को समान प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
साभार - दैनिक जागरण
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