गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन बिल को लेकर मतभेद गहराए
कालिम्पोंग. गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन के गठन को लेकर भले ही अपनी उपलब्धि बताकर गोजमुमो पूर्व में अपनी पीठ थपथपा चुका है, लेकिन इसी दल के नेताओं को अब इसमें कई पेंच दिखना शुरू हो गए हैं। ऐसे में इस मौके पर स्थानीय विरोधी दल भी उन्हें छोड़ने के लिए कोई मौका नहीं देना चाहते हैं और चौतरफा हमला कर रहे हैं।गोरखा जनमुक्ति मोर्चा स्टडी फोरम के वरिष्ठ सदस्यों ने प्रस्तावित मसौदे और सरकार की ओर से दो सितंबर को विधानसभा में पारित होने वाले मसौदे में अंतर बताया है। महकमा आए सदस्यों ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान संयुक्त रूप से स्वीकार किया कि दार्जिलिंग मसौदे का हल समझकर जिस जीटीए पर हस्ताक्षर किये गए थे, वह विधानसभा में पारित नहीं होगा। इसमें अधिकारों को कई स्थानों पर सीमित कर दिया गया है और सरकार इसे पारित कराने में अनावश्यक जल्दबाजी कर रही है।
उन्होंने कहा कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेताओं ने कोलकाता में इस बाबत वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दे दी है और बिना अध्ययन के इस प्रस्ताव को पारित करने के पक्ष में मोर्चा नहीं है। इस बाबत पार्टी स्तर पर अभी व्यापक विचार-विमर्श हो रहा है और शीघ्र ही सकारात्मक बातें सामने आएंगी। पत्रकार वार्ता के दौरान प्रो. अमर राई, बसंत राई, विनोद प्रकाश शर्मा, डॉ. आरबी भुजेल आदि सदस्य रहे। दूसरी ओर, क्रांतिकारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के उपाध्यक्ष जेबी राई ने कहा कि गोजमुमो ने समझौता करने में जल्दबाजी की और इसी का खामियाजा वह भुगत रहे हैं। इस जीटीए में पहाड़ के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह हस्ताक्षर मोर्चा ने शासन में आने के लोभ में किया था। उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि गोरखाओं की पहचान के लिए अलग राज्य की मांग कई वर्षो से हो रही है और इसके लिए मोर्चा के आंदोलन पर पहले से ही उंगली उठती रही है।
(साभार : जागरण)
उन्होंने कहा कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेताओं ने कोलकाता में इस बाबत वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दे दी है और बिना अध्ययन के इस प्रस्ताव को पारित करने के पक्ष में मोर्चा नहीं है। इस बाबत पार्टी स्तर पर अभी व्यापक विचार-विमर्श हो रहा है और शीघ्र ही सकारात्मक बातें सामने आएंगी। पत्रकार वार्ता के दौरान प्रो. अमर राई, बसंत राई, विनोद प्रकाश शर्मा, डॉ. आरबी भुजेल आदि सदस्य रहे। दूसरी ओर, क्रांतिकारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के उपाध्यक्ष जेबी राई ने कहा कि गोजमुमो ने समझौता करने में जल्दबाजी की और इसी का खामियाजा वह भुगत रहे हैं। इस जीटीए में पहाड़ के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह हस्ताक्षर मोर्चा ने शासन में आने के लोभ में किया था। उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि गोरखाओं की पहचान के लिए अलग राज्य की मांग कई वर्षो से हो रही है और इसके लिए मोर्चा के आंदोलन पर पहले से ही उंगली उठती रही है।
(साभार : जागरण)
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