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सबसे कद्दावर नेता के रूप में फिर उभरे खंडूरी

देहरादून। छोटे से पर्वतीय राज्य उत्तराखड में सियासत की लड़ाई और राजनैतिक उठापटक में अपने सभी प्रतिद्वंदी को पटखनी देते हुए भुवन चंद्र खंडूरी राज्य में सबसे कद्दावर नेता के रूप में उभरे हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी दूसरी पारी में खंडूरी ने एक तीर से दो निशाने नहीं बल्कि कई निशाने साधे हैं। पहली पारी में अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगी रमेश पोखरियाल निशक को मुख्यमंत्री बनवाने तथा अब उन्हें हटवा कर खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए भारतीय जनता पार्टी के हाई कमान पर दबाव बनाने में सफल हुए खडूरी की राजनैतिक क्षमता की आज केवल उनकी अपनी पार्टी भाजपा के नेता दाद दे रहे हैं बल्कि विरोधी काग्रेस के नेताओं ने भी अब खंडूरी के तीरों का जवाब देने के लिए अच्छे निशानेबाज की तलाश शुरू कर दी है।

अगले वर्ष के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनावों में छह महीने से भी कम समय रह गया है और ऐसे समय में नेतृत्व परिवर्तन कराने में सफल रहे खंडूरी की कामयाबी से निशंक तो भौंचक हैं ही साथ ही कई चुनावी तिकड़मों को उलट देने के चलते विरोधी पार्टिया भी अब नए सिरे से रणनीति बनाने में जुट गई हैं। गाधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आदोलन को जबर्दस्त समर्थन देने तथा खुद अपनी ईमानदार छवि के लिए प्रसिद्ध करीब 72 वर्षीय खंडूरी ने अपनी दूसरी पारी के दौरान चुनाव में भाजपा की नैया पार लगाने के लिए बहुत ही सूझबूझ तथा आपसी समन्वय के साथ कार्य शुरू किए हैं।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने अपना नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि नेतृत्व परिवर्तन की निशक को भनक तक नहीं थी और न ही पार्टी के अधिकतर नेताओं को इसकी कोई खबर थी। मीडिया में जब इस तरह की खबरें आनी शुरू हुई तो अंत्योदय यात्रा में व्यस्त पूर्व मुख्यमंत्री निशंक को इसकी जानकारी मिली और उसके बाद ही उन्होंने भाग दौड़ शुरू की लेकिन तब तक अंतिम फैसला हो चुका था। इस नेता ने बताया कि अंत तक निशक ने कई सारे तथ्य अपने पक्ष में रखे लेकिन खंडूरी के भारी भरकम व्यक्तित्व के कारण उनकी एक नहीं चली और पार्टी हाईकमान ने यह साफ कर दिया कि अगला विधान सभा चुनाव खडूरी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा और इस निर्णय पर पार्टी किसी प्रकार का पुनर्विचार नहीं करेगी। इसके बाद निशक के पास इस्तीफा देने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं बचा था। राज्य में प्रमुख विपक्षी काग्रेस के सूत्रों ने बताया कि खंडूरी के मुख्यमंत्री बनने के बाद खडूरी के रिश्ते के भाई और सासद विजय बहुगुणा ने काग्रेस मीडिया कमेटी के अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा पार्टी के प्रदेश प्रभारी चौधरी वीरेन्द्र सिंह को सौंप दिया है और अब पूर्व मंत्री इंदिरा ह्रदयेश को उनके स्थान पर यह जिम्मेवारी सौंपी गई है।

खडूरी के दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद से राजनैतिक हलकों में हो रही आलोचनाओं से बहुगुणा अपने को इस अहम पद पर असहज महसूस कर रहे थे। भाजपा सूत्रों ने बताया कि गत लोकसभा चुनावों में राज्य की पाचों सीटों पर पार्टी की हार का ठीकरा फोड़ते हुए खंडूरी को 25 जून 2009 को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था लेकिन उनके कद्दावर व्यक्तित्व का करिश्मा ही था कि विधानसभा चुनावों में जब मात्र पाच महीने ही बाकी हैं तो उन्हें फिर से राज्य की कमान सौंप दी गई और खासतौर पर उस समय जब निशक के खिलाफ कोई गंभीर आरोप भी नहीं लगे थे। सूत्रों के अनुसार हालाकि इस बार भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोशियारी, मंत्रियों में प्रकाश पंत तथा त्रिवेन्द्र सिंह रावत का नाम आया था लेकिन पार्टी हाईकमान ने खंडूरी पर दाव लगाना अधिक महफूज समझा।

खडूरी ने अपनी दूसरी पारी की शुरूआत में ही जनता की नब्ज को पहचानते हुए सबसे पहले भ्रष्टाचार पर धावा बोला है। उन्होने अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों तथा राज्य के सभी आईएएस अधिकारियों को कड़े निर्देश दिए हैं कि एक महीने के भीतर अपनी संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा कर दें। ऐसा नहीं किए जाने पर किसी पर भी गाज गिर सकती है। खंडूरी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि जनता में ईमानदारी का विश्वास भरने के लिए वह इस बार कोई राजनैतिक समझौता नहीं करेंगे। संभवत: उनको इसके लिए पार्टी हाईकमान से पूरी छूट भी मिली हुई है। राज्य को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए इस बार खंडूरी कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ने वाले हैं। उन्होंने राज्य में लोकायुक्त संस्थान में खुद को भी शामिल करने का स्पष्ट विचार रखा है जिससे स्पष्ट है कि वह भ्रष्टाचार के मामले में किसी को भी कानून से ऊपर नहीं रखना चाहते हैं।

(साभार - जागरण)

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