बिनोद प्रधान : हिन्दी फिल्मो के सर्वश्रेष्ठ सिनेमेटोग्राफर
दीपक राईआज भारतीय सिनेमा दुनियाभर का धीरे धीरे केंद्र बनता जा रहा है एवं इस ऊँचाई के पीछे कई गोरखा लोगों ने भी अपना योगदान देकर हिंदी फिल्मो का मान बढाया है भारत के सूदूर उत्तर पश्चिम क्षेत्र में स्थित कालिम्पोंग जो कि दार्जिलिंग जिले के महकमे में आता है में जन्मे भारत के सुविख्यात सिनेमेटोग्राफर बिनोद प्रधान ने ना केवल भारतीय सिनेमा के चित्रो की अभिव्यक्ती को बदला है , वरन हिंदी फिल्म उद्योग में छायांकन में एक आयाम स्थापित किया है । गोरखा मूल के बिनोद प्रधान ने अब तक बहुत सारी सफल फिल्मो का छायांकन किया है जिनमे प्रमुख है :- 1942 : ए लव स्टोरी, देवदास ,रंग दे बसन्ती , मिशन कश्मीर , मुन्ना भाई एमबीबीएस ,दिल्ली 6 , परिंदा जैस कितनी ही फिल्म है .
पहाडी आबोहवा में पाले बढ़े बिनोद ने जब होश सम्भाला ही था कि उनके पिता एचके प्रधान ने उन्हें एक बाक्स कैमरा गिफ्ट किया था , उनके पिता की एक अच्छी खासी फोटो स्टूडियो थी ।
इसके बाद तो मानो बिनोद और कैमरा एक दूसरे से ही उलझे रहते , बहुत कम उम्र में ही उन्होंने कैमरे की तमाम बारिकिया सीख ली, जो कि उनको विरासत में ही मिली थी। अपने खींचे ब्लेक एंड वाईट तस्वीरो को बिनोद बहुत जतन करके रंगों से पोतकर रंगीन बनाते रहते , कई अलग अलग तरह की तस्वीरें खींचना उनका गहरा शौंक बनता चला गया । अपने बेटे के पुश्तैनी काम में दिलचस्पी लेता देख उनके पिता ने उन्हें बहुत जल्द असाही पेंटेक्स कैमरा उपहार में दिया . महज़ 14 साल की उम्र से ही बिनोद ने अपने स्टूडियो में हाथ बटाना शुरू कर दिया । अपने फोटोग्राफी जुनून को करियर बनाने के उद्देश्य से बिनोद ने इसकी तमाम तकनीकी जानकारी और ज्ञान की विधिवत शिक्षा लेने के लिए पुणे स्थित एफटीटीआई में दाखिला लिया और यहाँ के संस्थान से तीन साल की सिनेमेटोग्राफी का डिप्लोमा कोर्स पूरा किया। अपने पढाई के दौरान ही संस्थान में जज बनकर आये प्रेम सागर उनके काम से काफी प्रभावित हुए और उन्हें अपने प्रोडक्शन कंपनी सागर आर्ट्स में सहायक के तौर पर जुड़ने का निमंत्रण दिया .
हेमा मालिनी और धर्मेन्द्र अभिनीत फिल्म चरस एवं राम भरोसे में उन्होंने प्रेम सागर के सहायक के तौर काम किया लेकिन इतने बड़े फिल्म उद्योग में पहचान बनाने का उन्हें यह जरिया नहीं लगा। लिहाजा उन्होंने उस वक्त के मशहूर सिनेमेटोग्राफर एके बीर, जो उस वक्त घरोंदा फिल्म में व्यस्त थे ने उन्हें अपना सहायक कैमेरामेन बनने का आफर दिया । वहा पर बिनोद ने जूम एंड फोकस डिपार्टमेंट के कमान संभालने लगे। कुछ अलग मुकाम हासिल करने मुम्बई मायानगरी आये बिनोद ने स्वतंत्र काम लेने शुरू कर दिए और कई वृतचित्र निर्माण के कार्य में सिनेमा की बारीकियां सीखने लगे । इस दौरान वह जिस मकान में किराए से रहने लगे थे , जो कि कच्छ मूल के थे । बिनोद अपना दिल मकानमालिक की बेटी डॉली से लगा बैठे और धीरे-धीरे उन दोनों की प्रेम परवान चढ़ने लगी , डॉली के माता पिता को मनाने में नाकाम रहने के बाद आखिरकार बिनोद और डॉली ने घर से भागने का निर्णय लिया और दोनों कालिम्पोंग में बिनोद के पैत्रक घर आ गए । 
दोनों के पहले बेटे बिनय के जन्म के बाद फिर से दोनों ने मुम्बई की ओर रुख किया , अपने काम के अलावा बिनोद ने बेटे के लालन पालन में कोई कमी नहीं आने दी . धीरे धीरे वक्त मानो पंख लगाकर उड़ने लगा और उनके पुराने दोस्तों ने ही बिनोद को नए काम में शामिल करना शुरू कर दिया। उन्होंने मणि कौल के लिए घासीराम कोतवाल और जब्बार पटेल के लिए असमिया फिल्म अप्पा रूपा का हिंदी वर्शन जैत रे जैत का छायांकन किया। अस्सी के दशक के शुरुआत में एफटीटीआई के पुराने छात्रो के द्वारा बनायी गई कालजयी फिल्म " जाने भी दो यारों" का भी फिल्माकन बिनोद प्रधान ने किया । बिनोद ने बाद में कुछ नेपाली फिल्मो के लिए भी कैमरे की कमान संभाली और नेपाली सिनेमा की बेहद सफल फिल्म कुसुमे रुमाल का भी छायांकन किया । नब्बे के दशक में बिनोद का सितारा चमका और एक के बाद एक कई सारी फिल्मो में उनकी काम को सराहा गया । अब तक बिनोद प्रधान को 14 बार बेस्ट सिनेमेटोग्राफर का अवार्ड मिल चुका है ।

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