भारतीय गोरखा : पहचान की जद्दोजहद
धर्म , संप्रदाय , भाषा-भाषी लोग रहकर भारत का निर्माण करते है , उन्ही में से एक गोरखा समुदाय भी है जो नेपाली भाषा बोलने वाले भारतीय है और उनके पुरखे कई सदी से भारत के सीमावर्ती इलाको में निवास करता है । इन समुदायों की अधिकतर आबादी उत्तराखंड,हिमाचल प्रदेश , सिक्किम , पश्चिम बंगाल , मेघालय और मेघालय में बस्ती है । आज भी इन लोगों को अपने अस्तित्व की लड़ाई लडनी पड़ रही है , लड़ाई है खुद के वजूद का । आज भी इन समुदाय के लोगों को विदेशी माना और समझा जा रहा है जो बेहद दुखद होता है । गोरखा समुदाय ने भारत में रहकर अनेक क्षेत्रो में अपना योगदान दिया है , चाहे वह युद्ध का मैदान हो या खेल का। सुनील छेत्री , धन सिंह थापा , संतोष थापा, संजू प्रधान , निर्मल छेत्री , पवन कुमार चामलिंग आदि ना जाने कितने ही ऐसे गोरखा शख्सियत है , जिन्होंने भारत भूमि के लिए अपना सर्वत्र समर्पित किया।भारत में नेपाली भाषा बोलने वाले गोरखाओ की आबादी 2011 के जनगणना के अनुसार कुल 1 करोड़ है . सर्वाधिक आबादी पश्चिम बंगाल में है जहां दार्जिलिंग जिले में 9 लाख, जलपाईगुडी में 4 लाख है . सिक्किम राज्य में कुल 5 लाख , हिमाचल प्रदेश में 2 लाख, उत्तराखंड में 6 लाख , पंजाब में 1 लाख है . इसके अलावा जम्मू , उत्तर प्रदेश , कोलकाता , दिल्ली , बेंगलौर , चेन्नई , मुम्बई और हैदराबाद में भी नेपाली भाषी गोरखा निवास करती है ।
भारत में गोरखाओ की सबसे अधिक आबादी उत्तर पूर्व के राज्य जैसे असम, मेघालय,नागालैंड,मणिपुर ,त्रिपुरा,मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश में लगभग 60 लाख है . भारत गणराज्य के एक सूबे सिक्किम के सर्वोच्च पद पर भी गोरखा मूल के ही मुख्यमंत्री श्री पवन कुमार चामलिंग है , जिनको कई बार सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री के पुरुस्कारों से नवाज़ा जा चुका है और रोचक बात तो यह है कि वे 1994 से सतत 17 साल मुख्यमंत्री पद पर आसीन है . आज हमारे समुदाय को आम भारतीय के तरह देखा समझा जाए , इस विश्वास से ही सशक्त भारत की कल्पना सार्थक होगी .

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