तेलंगाना राज्य बनना तय लेकिन गोरखालैंड का क्या ?
दीपक राई
आखिरकार एन मौके पर चौका लगाते हुए कांग्रेस ने
आन्ध्र प्रदेश के पृथकीकरण के लिए अपनी और से हामी भर दी है। इसके साथ ही
लम्बे समय से चला आ रहा तेलंगाना राज्य आन्दोलन की परिणिति सुखद प्रतीत हो
रही है। लेकिन इन सबके बीच अब पश्चिम बंगाल से चल रहे पृथक गोरखालैंड
आन्दोलन का क्या ? यह बेहद चिंताजनक विषयवस्तु बन गया है। आखिरकार देश के
दो आन्दोलन जो एक ही समय सामान रूप से चलते रहे उनमे से एक पर सहमति और
दुसरे पर मौन, ऐसा क्यूँ ? आखिरकार पहाड़ के नेतागण इस पूरे प्रसंग पर मौन
क्यों है ? क्या इन्होने भी अलग राज्य के लिए सत्ता सुख प्राप्ति की रोटी
नहीं सेंकी ? अब इतने सारे सवाल सामने है जिसका कोइ हल होता हुआ दिखाई दे
रहा है। एक पुरानी कहावत है कि " घर का भेदी लंका ढहाये " उसी को चरितार्थ
करते हुए अस्सी के दशक में सुभाष घिसिंग ने गोरखा जन मानस के भावनाओं को
दरकिनार करते हुए डीजीएचसी नाम की झुनझुनी जनता को थमा दी और लगभग दो
दशकों तक शेर के मानिंद लोगो से दूर कही गुफा में खो और सो से गए।
उसके बाद
बिमल गुरुंग ने बढ़ते जन आक्रोश के बीच जमकर अपनी फसल काटी और साथ ही एक
गुप्त समझौते के तहत पृथक राज्य को ठन्डे बसते पर डालते हुए जीटीए नाम की
सत्ता कुंजी और ऐशोआराम की दुकान सजा ली। इन बड़े और जनप्रिय नेताओं ने ही
आखिरकार गोरखालैंड के नाम पर गोरखाओं के वजूद से जमकर खिलवाड़ किया है और अब
तो यह भी तस्वीर स्पष्ट हो गयी है कि गुप्त समझौते के चलते पृथक
राज्य आन्दोलन नहीं होगा। मगर यह सब चलता रहा तो गोरखा जनता अपने मूल "
गोरखालैंड" भावना के आक्रोश में इन सभी तथाकथित जनप्रिय नेताओं को अपने साथ
बहा ले जायेगी। आखिरकार इतना होने के बावजूद बिमल गुरुंग एंड कंपनी चुप
क्यूँ है? यदि अभी नहीं तो कभी नहीं। याद रखो कि गोरखा अस्तित्व की लड़ाई की
परिणिती है गोरखालैंड राज्य आखिर जब तेलंगाना बन गया तो गोरखालैंड क्यों
नहीं ? अब भी पहाड़ की जनता मौन रही तो हमेशा की तरह छलते रहना उनकी फितरत
बनती चली जायेगी। करीब सौ सालो से चले आ रहे आन्दोलन के ऊपर आ बैठे जन
नेताओं को जगाने का यही सही वक़्त है। इसके जुदा दूसरी ओर अलग तेलंगाना
राज्य को कांग्रेस ने हरी झंडी दे दी है। शुक्रवार शाम
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इस मुद्दे पर चर्चा की। इस बैठक में सोनिया
गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मौजूद थे।
बताया जा रहा है कि इसकी
घोषणा अगले महीने की 5 तारीख से पहले कर दी जाएगी। अलग तेलंगाना राज्य
बनाने की जो मांग सालों से हो रही ही थी अब वह हकीकत
बनने जा रही है। कांग्रेस में इस पर सहमति बन गई है और इसकी घोषणा मॉनसून
सत्र से पहले हो जाएगी यानी जल्द ही भारत में राज्यों की संख्या 28 से बढ़कर
29 होने जाएगी। आंध्र प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी दिग्विजय सिंह ने कहा है
कि निर्णायक फैसले का इंतजार कीजिए।
इसके साथ ही यह भी तय किया गया है कि हैदराबाद कुछ सालों तक दोनों राज्यों
की राजधानी रहेगी। बाद में आंध्र प्रदेश की नई राजधानी बनाई जाएगी।
तेलंगाना और बाकी आंध्र में 21−21 लोकसभा सीटें होंगी। दरअसल, कांग्रेस की
रणनीति इन 42 सीटों पर कब्जे की है और इसके लिए बाकी के आंध्र में जगनमोहन
को साथ लेने की कोशिश की जाएगी।
गौरतलब है कि अलग तेलंगाना को लेकर लंबे समय से सियासत और आंदोलन जारी रहा है। आइये एक नजर तेलंगाना से जुड़ी घटनाओं पर :
-2001 में सोनिया गांधी ने एनडीए सरकार को तेलंगाना के मुद्दे पर चिट्ठी लिखी। के चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना राष्ट्र समिति बनाई।
-2006 में कांग्रेस−टीआरएस तेलंगाना के मुद्दे पर अलग हुए।
-जनवरी 2010 में श्रीकृष्ण कमेटी बनाई गई।
-दिसंबर 2010 में श्रीकृष्ण कमेटी ने रिपोर्ट सौंपी छह विकल्प सुझाए।
-दिसंबर 2012 में गृहमंत्री सुशील शिंदे ने फैसले के लिए एक महीने का वक्त मांगा।
-जनवरी 2013 में डेडलाइन खत्म हुई और तेलंगाना में हिंसा।
-मई 2013 में कांग्रेस छोड़कर कई नेता टीआरएस में शामिल हुए।
-जुलाई 2013 में अलग तेलंगाना के विरोध में कई विधायकों का इस्तीफा।
तेलंगाना में अलग राज्य की मांग को लेकर कई बार हिंसा हुई तो उस इलाके के राजनीतिज्ञ भी एकजुट हुए। अब जब तेलंगाना के अलग राज्य बनने का ऐलान होगा तो फिर इसका श्रेय लेने की होड़ मचती दिखेगी।
गौरतलब है कि अलग तेलंगाना को लेकर लंबे समय से सियासत और आंदोलन जारी रहा है। आइये एक नजर तेलंगाना से जुड़ी घटनाओं पर :
-2001 में सोनिया गांधी ने एनडीए सरकार को तेलंगाना के मुद्दे पर चिट्ठी लिखी। के चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना राष्ट्र समिति बनाई।
-2006 में कांग्रेस−टीआरएस तेलंगाना के मुद्दे पर अलग हुए।
-जनवरी 2010 में श्रीकृष्ण कमेटी बनाई गई।
-दिसंबर 2010 में श्रीकृष्ण कमेटी ने रिपोर्ट सौंपी छह विकल्प सुझाए।
-दिसंबर 2012 में गृहमंत्री सुशील शिंदे ने फैसले के लिए एक महीने का वक्त मांगा।
-जनवरी 2013 में डेडलाइन खत्म हुई और तेलंगाना में हिंसा।
-मई 2013 में कांग्रेस छोड़कर कई नेता टीआरएस में शामिल हुए।
-जुलाई 2013 में अलग तेलंगाना के विरोध में कई विधायकों का इस्तीफा।
तेलंगाना में अलग राज्य की मांग को लेकर कई बार हिंसा हुई तो उस इलाके के राजनीतिज्ञ भी एकजुट हुए। अब जब तेलंगाना के अलग राज्य बनने का ऐलान होगा तो फिर इसका श्रेय लेने की होड़ मचती दिखेगी।
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