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नेपाली युवती से दुष्कर्म के दोषियों पर फैसले से दिखी कानून की मजबूती


रोहतक | रेवाड़ी में नेपाली युवती दुष्कर्म कांड के आरोपियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के फैसले को विभिन्न सामाजिक संगठनों ने सही करार दिया है। कामरेड राजेंद्र सिंह एडवोकेट ने कहा कि एक दिन पहले ही निर्भया कांड के दुष्कर्मी को रिहाई दी गई, जिससे समाज में निराशा का माहौल है। लेकिन सोमवार को नेपाली युवती केस में आए फैसले से कानून की मजबूती दिखी है। प्रो. अनिरुद्ध यादव अनिल आर्य पाल्हावास ने कहा कि ऐसे अपराधियों के लिए कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए। तभी अपराधियों में कानून का डर होगा। ढिलाई या माफी देने से ऐसे मनोवृत्ति वाले अपराधियों के हौसले और बढ़ते हैं।

68 साल में 191 को फांसी की सजा, 31 लटकाए फंदे पर
नेपाली युवती सामूहिक दुराचार व हत्याकांड में सोमवार को कोर्ट ने सात दोषियों की फांसी की सजा सुनाकर एक कड़ा संदेश दिया है। ऐसा नहीं है कि रोहतक में पहली बार फांसी की सजा सुनाई गई हो। ऐतिहासिक रोहताश नगर में पिछले 68 सालों में 191 लोगों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। इनमें से 31 को फांसी दी भी जा चुकी है। जिले में आखिरी बार हत्या व हत्या प्रयास मामले में 1979 को फांसी दी गई थी, लेकिन इसके बावजूद अपराधी समझ नहीं रहे। हालांकि जिला जेल में अब फांसी की सजा पाने वाले नौ बंदी हो गए हैं। इनमें से एक प्रेमी जोड़ा पहले से है। जिले में फांसी की सजा पाने वालों का सिलसिला देश की आजादी के समय से चलता आ रहा है। जेल के आंकड़ों पर नजर डालें तो यहां 1947 से साल 2015 में अब तक 191 बंदियों को फांसी की सजा सुनाई गई है। हालांकि इस सूची में सात बंदी मंगलवार को ही जुड़े हैं। इससे पहले तक यह सूची 184 की थी। जेल आंकड़ों के मुताबिक, 68 सालों में फांसी पाने वाले 191 बंदियों में से 31 को ही फांसी दी गई है। आखिरी बार फांसी 25 मई 1979 को दी गई थी। यह फांसी सोनीपत मंडोरा के रामफल को दी गई थी। समय के साथ जेल के जल्लाद सेवानिवृत्त हो चुके हैं। नई नियुक्तियां की नहीं गई। प्रदेश भर में अब फांसी के तख्त भी महज हिसार और अंबाला जेल में ही बचे हैं।

रोचक है जिले का इतिहास
जिले की तरह इसका इतिहास भी बेहद रोचक है। प्रदेश की तीन बड़ी जेलों में से एक यही है। अम्बाला और हिसार के बाद रोहतक जेल में ही फांसी का तख्त होता था। यहीं देश के स्वतंत्रता सेनानियों और इमरजेंसी में जेल काटने वालों को भी यहीं रखा गया था।

2014 में सात की हत्या करने वालों को सुनाई थी फांसी
सुनारिया जिला जेल केे अधीक्षक दयानंद मंदोला ने बताया कि रोहतक के ही कबूलपुर गांव में 14 सितंबर 2009 में अपने प्रेमी के साथ मिलकर युवती ने परिवार के सात लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इस मामले युवक व युवती को जिला अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। वकील दीपक धनखड़ ने कहा कि इस मामले में 6 मार्च 2014 को जिला अदालत में जज एसके गुप्ता ने सजा सुनाई थी।

अब मुझे भी जगी जल्द इंसाफ की उम्मीद : एक रेप पीड़िता
15 मई 2015 को एक नाबालिग युवती के साथ दुराचार हुआ। पिछले सात माह से पीड़िता इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठी है। नेपाली युवती हत्याकांड में जल्द फैसला आने के बाद उसने खुशी जाहिर कर कहा कि अब मुझे जल्द न्याय की आस बनी है। उसकी अगली सुनवाई 8 जनवरी को होगी। पीड़िता के वकील विजय दांगी और रोहित सुहाग ने कहा कि इस तरह के मामलों में फैसले आने में जितनी देरी होगी, उससे गवाह टूटते हैं। समझौते के प्रयास बढ़ जाते हैं।

जज ने 26 मिनट में दो गिलास पिया पानी
नेपाली युवती हत्याकांड के दस माह 20 दिन बाद सोमवार को फैसले की घड़ी थी। कटघरे में सात दोषी थे। अदालत का माहौल जितना शांत था, वहीं फैसला सुनाने वाली महिला जज के अंदर के हाव-भाव उतने ही अशांत। फैसला देने से पहले उन्होंने अधिकारी से पहले एक महिला होने की बात भी कही। सबसे पहले पदम के अंतिम बयान लिए और इसके बाद सरवर, मनबीर व अन्य आरोपियों के। इस दौरान न्यायाधीश ने एक गिलास पानी तीन बार में पिया। 11.45 बजे फाइल पढ़नी शुरू की। 11.46 बजे फिर से पानी मंगवाया गया। 26 मिनट के अंदर न्यायाधीश ने दो बार कुर्सी पर रेस्ट मोड में दोषियों के बयान सुने। 11.47 बजे सरकारी वकील ने दोषियों को फांसी की सजा की मांग की। पीड़ित पक्ष के ही वकील प्रदीप मलिक ने भी कोर्ट के कई फैसलों की दलील देते हुए दोषियों को फांसी की मांग की। डिफेंस ने दोषियों के बचाव में अलग-अलग तर्क दिए, लेकिन न्यायाधीश ने सभी को दरकिनार कर दिया। 12.15 बजे लंच के बाद फैसला देने की बात कहते हुए दोषियों को फिर से कोर्ट बैरक में भेज दिया गया।

4:50 बजे तोड़ी कलम
शाम करीब 4.50 बजे फैसले की घड़ी आ गई। दोषियों को फिर से कटघरे में खड़ा किया गया। फैसला देने से पहले न्यायाधीश ने महिला अपराध पर अपनी टिप्पणी दी और फिर सभी आरोपियों को सजा-ए-मौत देने के बाद कलम तोड़ने की परंपरा निभाई। सजा सुनाने के बाद न्यायाधीश कुर्सी से उठ गईं।

- भास्कर
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