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देहरादून में महान गोरखा सपूत शहीद दल बहादुर थापा की स्मृति में मनाया गया 73वां शहीद दिवस, PHOTOS



वीर गोरखा न्यूज नेटवर्क
देहरादून : उत्तराखंड राज्य नेपाली भाषा समिति देहरादून द्वारा आज आजाद हिन्द फ़ौज के अमर शहीद कैप्टन दल बहादुर थापा की स्मृति में 73वां शहीद दिवस शहीद दुर्गा मल्ल पार्क गढ़ी कैंट में मनाया गया। श्रद्धांजलि सभा से पूर्व नक्सली मुठभेड़ के दौरान सुखमा में वह देश की सीमाओं पर शहीद हुए सैनिकों को 2 मिनट का मौन रखकर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम के दौरान बतौर मुख्य अतिथि गोरखा लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) शक्ति गुरुंग एवं राम सिंह प्रधान समेत सभी गणमान्य अतिथिजनों ने अमर शहीद कैप्टन दल बहादुर बहादुर थापा जी की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। समिति समिति के अध्यक्ष बालकृष्ण बराल द्वारा सभी अतिथि जनों का स्वागत संबोधन धन्यवाद करते हुए समिति द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी दी गई। सचिव मंजू कार्य के द्वारा अमर शहीद कैप्टन दिल बहादुर थापा का जीवन परिचय तथा पूजा सुब्बा द्वारा समिति का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया।

कार्यक्रम शहीद गीत एवं भजन की प्रस्तुति अभी दी गई। कार्यक्रम का संचालन महासचिव श्याम राना द्वारा किया गया। श्रद्धांजलि सभा के पश्चात राहगीरों को मीठा जल वितरित किया गया। समिति द्वारा एक प्रस्ताव 2011 से लगातार दिया जा रहा जा रहा है कि अमर शहीद कैप्टन दिल बहादुर थापा के नाम से निंबू वाला क्षेत्र में एक द्वारा बनाया जाएं। इस अवसर पर गोर्खाली सुधार सभा के अध्यक्ष भगवान सिंह छेत्री, ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग, कर्नल डी एस खड़का, राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष भारतीय गोरखा परिसंघ, उमा उपाध्याय, राष्ट्रीय अध्यक्ष गोरखा डेमोक्रेटिक फ्रंट,  रतन लिंबू उपाध्यक्ष देहरादून लिंबू एसोसिएशन, तमु धीं ,भारतीय मगर समाज,  किरात राई संस्था,  कमल कुमार राई अध्यक्ष भारतीय गोरखा उपजाति समन्वय समिति एवं समिति के पदाधिकारी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष के एस लिंबू उपाध्यक्ष राजेंद्र मल्ल, हरि सिंह गुरुंग, मधुसूदन शर्मा, श्रीमती अनीता घले,  रमन आले,  प्रचार मंत्री टेक बहादुर थापा,  संगठन मंत्री लाल बहादुर थापा,  कोषाध्यक्ष जगदीश्वरी राई,  लेखा परीक्षक गोपाल थापा, सांस्कृतिक सचिव कमला थापा, सुनीता क्षेत्री उपस्थित रहें।

शहीद कैप्टन दिल बहादुर थापा ( 4 मार्च 1907 - 03 मई 1945)
4 मार्च 1907 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के बड़ेकोट गांव में जन्में शहीद कैप्टन दिल बहादुर थापा कक्षा 7 वीं पास करने के बाद गोरखा राइफल्स में भर्ती हो गए। उन्होंने अपनी कर्मभूमि देहरादून को बनाया। सेना में वह जूनियर कमीशन अफसर हो गइ। दूसरे महायुद्ध के दौरान यह मलाया में जापानियों के खिलाफ लड़े। 23 अगस्त 1941 जापानियों ने के लिए युद्ध बंदी बना लिया। बंदी जीवन में ही इनका परिचय नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुआ। उनकी प्रेरणा से जापानी की खेत से छूटकर 1942 में आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए। आजाद हिंद फौज की एक विशेष टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए वह बर्मा-कोहिमा सीमा पर वीरता से लड़ते हुए 28 जून 1944 को अंग्रेजो द्वारा युद्धबंदी बना लिया गया। सैनिक अदालत ने इन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया और मृत्यु दंड दिया। 3 मई 1945 को दिल्ली की केंद्रीय कारागार तिहार जेल में  शहीद  साथ फांसी दे दी गई। जिस समय इन दोनों को फांसी दी गई,  उस समय तक देश के राष्ट्रीय नेताओं ने आजाद हिंद फौज के युद्ध बंदियों के बचाव हेतु मुकदमा लड़ने का फैसला नहीं किया था। अगर ऐसा हो गया होता तो शायद पर बहादुर थापा भारत माता की स्वाधीनता को देखते और आजाद हिंदुस्तान की आजाद हवा में सांस लेने का सपना साकार हो रहा होता।











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