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9 गोरखालैंड आंदोलनकारियों की कुर्बानी के बावजूद निर्दयी ममता की जीत का दिन साबित होगा 29 अगस्त !



दीपक राई
वीर गोरखा न्यूज पोर्टल
पहाड़ में आज भी लाखों लोगों के सीने में दिल की जगह गोरखालैंड़ धड़क रहा है। वह भी लगातार एक ही रफ़्तार में। वहीं दूसरी तरफ इनकी धड़कनों की रफ़्तार बंद करने की कोशिश परसों कोलकाता में की जानी है। जी हां कल यानि 29 अगस्त 2017 को दार्जिलिंग में 70 से अधिक दिनों से जारी बंद को "बंद" करने की कोशिश की जाएगी। विगत ढाई महीनों से मारे गए 9 गोरखालैंड़ आंदोलनकारियों की आत्मा को दुखाने के लिए कल 29 अगस्त के दिन राजनीति एक नया पैतरा चलने को तैयार रहेगी। ज़्यादा लाग लपेट के यह दो टूक कह देना मुनासिब होगा कि गोरखालैंड का सपना तोड़ने में एक बार फिर निर्दयी ममता कामयाब होने को बेताब है। एक के बाद एक राजनेताओं के ममता को वार्ता के लिए पत्र लिखने के पीछे राजनेताओं की आतुरता समझ से परे है। जिस तरह बंगाली भाषा में ममता ने GNLF का निवेदन पत्र पढ़ा, उससे दिल द्रवित हो उठा। ममता के दंभ के आगे मिमियाने की अवस्था वाले पहाड़ के नेता इतनी जल्दी घुटने टेक देंगे, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। GNLF के लोग तो पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया में जिस तरह ममता से वार्ता को सकारात्मक पहल कहकर जस्टिफाई करने में लगे हुए है, उसे देखकर बहुत कुछ समझने को मिला है। 

वहीं GJMM ने भी यह सोचते हुए कि कही वह रेस में पीछे ना छूट जाए तपाक से एक लैटर ममता को लिख दिया। ममता ने भी लगातार पुलिसिया बर्बरता को एक कोने पर रखकर GJMM के ऊपर दरियादिली दिखाते हुए उनको भी वार्ता में शामिल होने का न्योता दे दिया। हैरानी कि बात है कि कल तक "केवल केंद्र" से वार्ता करने की बात कहने वाली मोर्चा भी घुटनों के बल ममता को प्रणाम करने की अवस्था में आ गया है। GNLF और GJMM के बीच अब 29 अगस्त को ममता के प्रति ज़्यादा वफादार दिखने की होड़ शुरू हो गयी है। मोर्चा ने तो आधिकारिक रूप से 29 अगस्त को कोलकाता में होने वाली मीटिंग में जाने वाले अपने पदाधिकारियों की सूची भी जारी कर दी है। क्या पहाड़ के राजनेता 2017 के गोरखालैंड आंदोलन में आंदोलनकारियों के बलिदान को भूल चुका है ? क्या उनके शरीर की भावनाएं कुंद पड़ गयी है ? क्या वो स्वार्थ के चक्कर में आ गए है या ममता दीदी की पुलिसिया चाबुक से उनका गोरखा मन पिघलने लगा है।

समाधान के लिए वार्ता जरूरी, लेकिन ममता से ही क्यों, यह बड़ा सवाल

दार्जिलिंग के जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित करने वाली 2017 के गोरखालैंड आंदोलन की भभकती आग को इस बार बुझा पाना आसान नहीं । इस बात को पहाड़ के राजनेता समझ पा रहे है या नहीं, इसका उत्तर मिलना बहुत मुश्किल है। इस बीच बीते ढाई महीने के दमन की दोषी ममता को ही वार्ता करने के लिए GNLF का पत्र लिखना, गंभीर सवाल खड़ा करता है। पहाड़ की शांति के लिए वार्ता जरूरी लेकिन अगर वार्ता ममता स ही करनी थी तो बंद क्यों इतना लंबा खींचा गया ? यही करना था तो पहले ही कर लेते। कम से कम गोरखालैंड आंदोलन में 9 लोगों को शहीद होना तो नहीं पड़ता।

29 को बैठक में लिया जा सकता है बंद को समाप्त करने की घोषणा !

मर जाऊंगी लेकिन बंगाल का बंटवारा होने नही होने दूंगी, कहने वाली मुख्यमंत्री ममता से 29 तारीख की बैठक में क्या हासिल होगा, यह सबको पता है। ममता गोरखालैंड तो देने से रही, इसके बावजूद बैठक का एजेंडा क्या है?  इस पर सभी पार्टियां चुप है। पहाड़ के लोगों को डर है कि कहीं पहाड़ के ही चंद नेता कोलकाता में मुख्यमंत्री के सामने उनकी गोरखालैंड के प्रति अनवरत जारी तपस्या को एक झटके में तार-तार ना कर दें। वहीं सूत्रों की माने तो 29 तारीख को बंद को समाप्त करने पर आम सहमति का सहारा लेकर इसे जस्टिफाय करने की कोशिश होगी।

ढाक के तीन पात साबित ना हो गोरखालैंड राज्य का सपना

देश ही नहीं बल्कि विश्वभर के गोर्खाली जनता को इस बार ठेंगा दिखाने वाले गोरखा नेताओं का राजनीतिक करियर भी उनके 29 तारीख के फैसले पर टिका हुआ है। गोरखा जनता जितना प्यार अपने नेताओं को देती है, उतना ही नफरत धोखा देने वालों को देती भी है। सुभाष घीसिंग का प्रसंग सबसे सटीक उदहारण है।

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