उत्तराखंड : CM त्रिवेंद्र सिंह रावत के आतिथ्य में शहीद दुर्गा मल्ल के पैतृक गांव में मनाया गया "बलिदान दिवस"
वीर गोरखा न्यूज पोर्टल
देहरादून : आजाद हिंद फौज के शहीद मेजर दुर्गा मल्ल जी के 73वें पुण्यतिथि के अवसर पर देहरादून मे उत्तराखंड राज्य नेपाली भाषा समिति द्वारा विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी बलिदान दिवस धूमधाम से मनाया गया। सर्वप्रथम सुबह गढ़ी कैन्ट स्थित दुर्गा मल्ल पार्क मे शहीद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी गयी। उसके बाद डोईवाला मे शहीद दुर्गा मल्ल की जन्मभूमि पंचायत घर प्रांगण में प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत एवं विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल, नेपाली भाषा समिति के अध्यक्ष बालकृष्ण बराल, सचिव श्याम राना, पदाधिकारी सदस्यों स्थानीय जनप्रतिनिधि विभिन्न सामाजिक संस्था के पदाधिकारी, सदस्य गोर्खा डेमोक्रेटिक फ्रंट की अध्यक्ष उमा उपाध्याय, गोर्खाली सुधार सभा के अध्यक्ष पदम सिंह थापा, सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजन क्षेत्री, सभा की उपाध्यक्ष पूजा सुब्बा, कमला थापा, सुनीता क्षेत्री, प्रभा शाह, कर्नल नारायण थापा, मंजु कार्की, सरोज गुरूंग, अनिता घले, टीकाराम थापा, जगदेश्वरी राई, मधुसुदन शर्मा, विशाल थापा, बीएम राई, हरि गुरूंग, कमल कुमार राई, मेघ बहादुर थापा, ओपी शर्मा, देविन शाही, पूनम गुरूंग, कविता क्षेत्री, कमलेश झा, मधु थापा, गीता सावन, उपासना थापा, कर्नल डीएस खडका, एवं समस्त कार्यकारिणी,शाखा अध्यक्षों सहित सैकड़ो की संख्या में उपस्थित होकर माल्यार्पण कर शहीद को सामूहिक श्रद्धांजलि दी।
शहीद दुर्गा मल्ल की संक्षिप्त जीवनी
देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूलने वाले महान क्रांतिकारी शहीद मेजर दुर्गामल्ल को शत शत नमन। शहीद मेजर दुर्गा मल्ल मूल रूप से देहरादून जिले के डोईवाला के रहने वाले थे। महान क्रांतिकारी दुर्गामल्ल का जन्म एक जुलाई 1913 को गोरखा राइफल के नायब सूबेदार गंगाराम मल्ल के घर हुआ था। माताजी का नाम श्रीमती पार्वती देवी था। बचपन से ही दुर्गा मल्ल अपने साथ के बालकों में सबसे अधिक प्रतिभावान और बहादुर थे। गोरखा मिलिट्री मिडिल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हासिल की, जिसे अब गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज के नाम से जाना जाता है। देहरादून के विख्यात गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर चन्दन सिंह , बीर खड़क बहादुर सिंह बिष्ट , पंडित ईश्वरानंद गोरखा और अमर सिंह थापा से प्रेरित होकर दुर्गा मल्ल ने् स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कवि और समाज सुधारक मेजर बहादुर सिंह बराल और संगीतज्ञ व नाटककार मित्रसेन थापा से भी प्रेरणा हासिल की।
दुर्गा मल्ल 1931 में मात्र 18 वर्ष की आयु में गोरखा रायफल्स की 2/1 बटालियन में भर्ती हो गए। अपने फर्ज को निभाते हुए 23 अगस्त 1941 को बटालियन के साथ मलाया रवाना हो गए। 8 दिसंबर 1941 को मित्र देशों पर जापान के आक्रमण के बाद युध्द की घोषणा हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप जापान की मदद से 1सितम्बर 1942 को सिंगापुर में इंडियन नेशनल आर्मी (आजाद हिन्द फौज) का गठन हुआ, जिसमें दुर्गा मल्ल की बहुत सराहनीय भूमिका थी। इसके लिए मल्ल को मेजर के रूप में पदोन्नत किया गया। युवाओं को आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल करने में बड़ा योगदान दिया। बाद में गुप्तचर शाखा का महत्वपूर्ण कार्य दुर्गा मल्ल को सौंपा गया। 27 मार्च 1944 को महत्वपूर्ण सूचनाएं एकत्र करते समय दुर्गामल्ल को शत्रु सेना ने मणिपुर में कोहिमा के पास उखरूल में पकड़ लिया।
युध्दबंदी बनाने और मुकदमे के बाद उन्हें बहुत यातना दी गई। टॉर्चर किया गया, माफ़ी माँगने के लिए कहा गया, लेकिन वीर दुर्गामल्ल झुके नहीं और ना ही कोई समझौता किया। जब ब्रिटिशर्स ने उनकी पत्नी को ढाल बनाकर उनको माफ़ी माँगने के लिए कहा तो–उन्होंने अपनी पत्नी को अंतिम बात कही –“शारदा , मैं अपना जीवन अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए त्याग कर रहा हूँ ।तुम्हें चिंतित और दुखी नहीं होना चाहिए । मेरे शहीद होने के बाद करोड़ों हिन्दुस्तानी तुम्हारे साथ होंगे। मेरा बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। भारत आज़ाद होगा, मुझे पूरा विश्वास है कि, अब यह थोड़े समय की बात है। 15 अगस्त 1944 को उन्हें लाल किले की सेंट्रल जेल लाया गया और दस दिन बाद 25 अगस्त 1944 को उन्हें फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया गया। मात्र 31 वर्ष की आयु में मेजर मल्ल हिंदुस्तान को आज़ादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से पीछे नहीं हटे।
(स्रोत एवं अनुवादः शहीद दुर्गामल्ल लोकसभा सचिवालय , नई दिल्ली दिसंबर 2004- पुस्तिका)
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