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भरत छेत्री : हाकी का सिरमौर गोरखा

दीपक राई
भरत
छेत्री भारत के उन उदयमान हाकी खिलाडियों में से जिन्होंने भारत के लिए शानदार योगदान दिया है , भारतीय राष्ट्रीय टीम में बतौर गोलकीपर भरत ने लगभग 100 से अधिक मैच खेले है . सन 2000 के आसपास भारतीय टीम के लिए राष्ट्रीय पटल में एक के बाद एक कई हाकी खिलाड़ी चमके , उन्ही में से एक भरत छेत्री ने वक्त के साथ भारतीय हाकी टीम में अपने प्रदर्शन के बलबूते स्थायी जगह बनाई । लगातार अच्छा खेलने के बाद ऐसे भी कई दौर आए, जब भरत को टीम से बाहर किया गया. 2004,2007 और 2009 में भारतीय टीम से बाहर होने के बावजूद भरत ने हौंसला नहीं खोया और और एक साल बाद 2010 में फिर से भारतीय टीम में जगह बनाई।
सैनिक पिता के पांच भाइयो में से एक भरत की पैदाइश 15 दिसंबर 1981 को हुआ, अपनी शुरुआती हाकी दानापुर सैनिक स्कूल में सीखी। अपने शानदार खेल से सभी को अभिभूत करने वाले भरत का बहुत जल्द चयन भारतीय खेल प्राधिकरण बैंगलोर हो गया उसके बाद सीनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में बिहार की ओर से खेला ,साथ ही इससे पहले कर्नाटक की टीम की ओर से भी बैंगलोर जूनियर स्पर्धा में हाथ आजमाया । सन 2001 ढाका में प्राईम मिनिस्टर गोल्ड कप से भरत ने अपने अंतर्राष्ट्रीय सफ़र का आगाज़ किया, जो अब तक बदस्तूर जारी है । भरत छेत्री ने अपने खेल से ना केवल भारतीय हाकी टीम को सम्रद्ध किया है वरन गोरखा समाज को भी और अधिक गौरव दिलाया है । भारतीय खेल में गोर्खाली समाज के अतुलनीय योगदानो में भरत के योगदान से और गोरखा लोगों के खेलों में भाग लेने की अभिरुचि बढ़ी है .




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