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दार्जिलिंग - कंपनी राज़ के दौरान की दुर्लभ तस्वीरें

हाम्रो राम्रो दार्जिलिंग कहता हूँ तो कोई गलत नहीं कहता , दार्जिलिंग की पहाडियों पर रचे बसे लोगों की एक मिली जुली संस्कृति मिलकर ही वृहद गोरखालैंड की परिकल्पना सार्थक करती है । पहाडो पर अपनी अपनी अलग पहचान को जीवंत बचाए हुए गोरखा,लेप्चा,भूटिया लोगों का एक लंबा इतिहास रहा है । कंपनी राज़ में यहाँ के शानदार वातावरण को देखकर ही अंग्रेजो ने इस जगह को अपने मनमाफिक बनाना शुरू कर दिया इससे सीधा लाभ यहाँ के रहवासियों को मिला , कई तरह की सौगाते अंग्रेज़ी हुकूमत ने पहाडी जन्नत को दिया । दार्जिलिंग की गौरवशाली इतिहास को तस्वीरों के माध्यम से समेटकर एक सन्दर्भ नुमा प्रयास एक पोस्ट के रूप में कर रहा हूँ । आओ जाने कि दार्जिलिंग कंपनी राज़ के दौरान कैसी दिखाई देती थी .

सन 1890 में नेपाली परिधान में खूबसूरत गोरखा युवती

दार्जिलिंग
की परंपरा रहे भूटिया और गोरखा समुदाय के लोग

सन
1890 में दार्जिलिंग की पहाडियों पर छुक-छुक कर चलती टॉय ट्रेन

1865 के गर्मियों के दौरान पत्थरो पर बैठी लेपचा महिला

सन 1880 के दौरान पर्वतो पर ट्रेन सेवा शुरू करने के लिए निर्माण कार्य होता हुआ

सन
1865 में दार्जिलिंग के मुख्य मार्ग इस तरह नज़र आते थे

तिब्बत
के धार्मिक गुरु 13वे दलाई लामा सिक्किम के चोग्याल राजा के साथ 1901 के दरमियान

दार्जिलिंग
की मशहूर चाय बागानों में ब्रिटिश राज़ के दौरान चाय फेक्ट्री पर चायपत्ती बनाते मजदूर
महिलाओं की परंपरा में एक गोरखा महिला कुली का लगभग 100 साल पुराना चित्र

सन
1880 के आसपास दार्जिलिंग की सुरम्य आबोहवा में तिब्बती युवती पारम्परिक परिधान में

(साभार -सभी तस्वीरें गोरखा क्रीड के प्राप्त )

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