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उत्सव -कविता


रमेश श्रेष्ठ
जवाँ उजाले के सामने
कविता वैसी कुछ बड़ी
चीज नहीं है
आज
तुम्हारे नाम पर तारे गिर गए
तारों के गर्म आँसू
न आकाश देख पाया
न धरती देख पायी
आज बहककर ही तारे
तुम्हारे नाम पर गिरे

यादों में किसी दिन
सागर में बड़ी सुनामी आई
बहुत सी बस्तियाँ, गुंबद, निर्माण और लोगों को बहा ले गई
लोगों के बनाए प्रेम-स्मारक
प्रेम घोलकर पी जा रही कॉफी व कॉफी-शॉप
दिल में तान बजाते वॉयलिन
और एक बार की जिंदगी में गुजारे हुए प्रेम के पल
ऐसे बह गए जैसे सपने बहते हैं
वह प्रेम, वॉयलिन का दिल और धुन
कोई नहीं देख पाया, नहीं सुन पाया
देखा और सुना तो सिर्फ़ कवि ने
और छाती से लगाकर लिखा
धरती की सुनामी, सागर और प्रेम के साथ
किताबों के अक्षर के साथ जागकर चेतना में घूमती रही
कविता वैसी कुछ बड़ी
चीज नहीं है।

याद करने लायक कोई दिन
सड़कों पर पैरों और आवाजों की कैटरीना आई
मूछें, कुर्सियाँ, गाड़ियाँ और शासन की जड़ें
बहा ले गई
मानव निर्मित असमानताएँ
नींद और तंद्रा की कुरूपता में चौंक गईं
बिन आँखोंवाली गोली भीड़ में आई
और भीड़ के आँसू बहा ले गई
कई लाशें गिरीं
उन्हीं लाशों के गंध से मस्तिष्क के किसी किनारे पर
स्वतंत्रता का आभास हुआ
एकबार की जिंदगी में उनके नाम
फिर चाँद हो गए
मीठे भाषण हुए, बदली मूछें, बदली कुर्सियाँ, बदला शासन
शहीदों का संरक्षण हुआ,
शहीद नाम के उनके चाँद में
सड़क पर फैले खून के साथ गिरते सिंदूर के आँसू
और बच्चों की भूख के दाग
कोई नहीं देख पाया
देखा तो सिर्फ कवि ने
और खुद से बदलकर लिखा
फिर कवि उनका एक नंबर का दुश्मन हो गया
कविता वैसी बड़ी चीज नहीं है

जीवन के जुलूस में
तारे गिर गए तुम्हारे नाम
उन तारों के गर्म आँसू
न आकाश ने देखा
न धरती ने
उन तारों में जीवन के दुःख और
प्रेम की गहराइयाँ चमक रही थीं
पर देखा नहीं किसी ने
देखा तो सिर्फ कवि ने
और लिखी कविता
जवाँ उजाले के सामने
कविता वैसी कुछ खास
चीज नहीं है।

नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी

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