उत्तराखंड में नौकरशाहों के चेहरों का रंग पड़ा फीका
जिन हालात में प्रदेश में बदलाव की बयार चली है, उसमें साफ तौर पर यह संदेश है कि अब तक जो हुआ, वो अब नहीं चलेगा। दो टूक लफ्जों में यह कि सुधर जाओ, वरना..। नए निजाम की बात करें तो उनकी शुरू से ही कड़क प्रशासक की छवि रही है और बदले परिदृश्य में वह पहले से ज्यादा फ्री हैंड माने जा रहे हैं। यह नहीं भूलना होगा कि पारदर्शिता और भ्रष्टाचार की कसौटी पर कसकर ही उन्हें दुबारा सत्ता की बागडोर थमाई गई है। इसी वजह से नौकरशाही इस बदलाव के बाद से सकते में है। दरअसल, ब्यूरोक्रेसी की बेचैनी बेवजह नहीं है। गुजरे सवा दो साल में उसने जो गुल खिलाए वह किसी से छिपे नहीं हैं। मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव तक को अनसुना करने के वे आदी हो चुके हैं। इसकी वजह भी साफ है। पिछली सरकार में ऐसे अफसरों को मलाईदार पदों पर बैठा दिया गया, जिनका न तो ट्रेक रेकार्ड साफ सुथरा है और नहीं वे आमजन के पैरामीटर पर फिट। इस सबके चलते इन दो सालों में ईमानदार छवि वाले कई नौकरशाहों ने प्रतिनियुक्ति पर जाने में अपनी भलाई समझी, जबकि कुछेक ने अपने को एक दायरे में समेटे रखा।
इसमें दो राय नहीं कि नौकरशाही की इसी धींगामुश्ती का नतीजा है कि विपक्ष के साथ ही भाजपा के लोगों को भी अपनी ही सरकार पर हमला बोलने के अवसर मिलते रहे। फिर से प्रदेश में हालात ने करवट बदली है। अब जबकि शीर्ष नेतृत्व का मूल मोटो ओवरऑल छवि सुधार कर जनता का विश्वास जीतना बन गया है, ऐसे में बेलगाम नौकरशाहों की नींद उड़ना लाजिमी है। किसी को मलाईदार कुर्सी खिसकती दिख रही है तो किसी को 'जन्मकुंडली' बांचे जाने का डर। खलबली उनमें ज्यादा है जो फरमानों को रद्दी की टोकरी में डालने के अभ्यस्त हो चुके हैं। उनके चेहरे भावशून्य नजर आने लगे हैं, जो अभी तक सरकार से भी तेज भाग रहे थे। चेहरे उनके भी बेनूर हैं, जिन पर दाग हैं और येन-केन प्रकारेण अभी तक वह खुद को बचाए हुए हैं। उन्हें डर सता रहा है कि कहीं अन्ना फैक्टर की आंच में उनके हाथ भी न झुलस जाएं। काबिलेगौर है कि सरकार के नए मुखिया पूर्ववर्ती निशंक सरकार के पहले सवा दो साल के कार्यकाल में अपना 'जलवा' दिखा चुके हैं। जिस अंदाज में उन्होंने तब नकेल डाली थी, उसे नौकरशाह अभी तक नहीं भूले।
ये है तस्वीर
- जोड़तोड़ से मलाईदार पदों पर काबिज
- न ट्रेक रेकार्ड ठीक, न जन छवि
- मनमानी के आदी, आदेश ठेंगे पर
- नौकरशाही में धड़ेबाजी, काम पर असर
- काम की समय सीमा के मायने नहीं
इसलिए डर रहे
- बदले हालात में नहीं चलेगी तिकड़म
- डोजियर खुला तो गिर सकती है गाज
- आदेशों की अनदेखी होगा मुश्किल
- जवाबदेही से नहीं बच पाएंगे अफसर
- नए मुखिया खुद समय के पाबंद
(साभार - जागरण)
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