भुवनचंद्र खंडूरी - जनरल से जननेता
जनरल आज ठेठ पहाड़ी नेता वाला लिबास कुर्ता पायजामा और सिर पर उत्तराखंडी टोपी पहने हुए थे। बहादुरी के परिचायक सैन्य मैडल उनके सीने पर नहीं तने थे। किसी भी फौजी के सीने में टंगे बहादुरी के तमगे देश के प्रति उसके समर्पण के द्योतक होते हैं, लेकिन पिछले कार्यकाल में उन्हीं की पार्टी के लोगों को यह नहीं भाये। शायद दो साल के राजनीतिक वनवास के दरम्यान जनरल खंडूरी को भी इसका अससास हुआ, तभी रविवार को वह शपथ ग्रहण समारोह में अपनी पुरानी फौजी छवि से दूर दिखाई दिए। देखने में यह ऐसा कोई बड़ा अंतर नहीं था, पर राजनीतिक हलकों ये चर्चा का विषय बना रहा। सियासी प्रेक्षकों में इस बात को लेकर भी बहस छिड़ी कि ऐसा करके जनरल अब खुद को जन नेता के रूप पेश करने का प्रयास कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं के बीच यह भी खुसर-पुसर रही कि जनरल अब काफी बदल गए हैं, पहले दूर से हाथ जोड़कर कार्यकर्ताओं का अभिवादन करने वाले जनरल अब उनकी पीठ भी थपथपा रहे हैं। स्वभाव में भी अक्कड़पन पहले से कम हुआ है। दरअसल, पहले कार्यकाल में पूरे वक्त फौजी छवि ने जनरल खंडूरी का पीछा नहीं छोड़ा। इस फौजी अनुशासन में न तो कार्यकर्ता फिट हो पाया और न ही कैबिनेट व ब्यूरोक्रेट्स। नाराजगी ऊपर से अलग साथ होती चली गई, जिसका खामियाजा उन्हें राजनीतिक वनवास के रूप में भुगतना पड़ा ।
(साभार - जागरण)
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