"अक्षर और चेहरा" और "संवाद" - कविताएं
भीष्म उप्रेती
अक्षरों का अपना चेहरा नहीं है
पर मैं अपना चेहरा देखता हूँ
अक्षरों में ।
अक्षर मेरे सारे दंभों को थप्पड़ मारते हैं ।
मेरी भलमानसी हँस देती है,
एक-एक करके उतरते हैं मेरे अभिमान
और मुझे नंगा करके कहते हैं - ‘यह तुम हो।’
अक्षर गूँथते हैं मुझे और बिखेरते हैं
आहिस्ता-आहिस्ता थपथपाते हैं और अनुभूति करवाते हैं
संप्राप्ति के संग
कमजोरी के संग
और फिर मुझे सिखाते हैं निर्मल बनना ।
अक्षरों के पास अनुभव है
सत्य है
ढोंग काटने के हथियार हैं
उनके अपने आकार भी हैं ।
बस अक्षरों का अपना चेहरा नहीं है
पर मैं अपना चेहरा देखता हूँ
अक्षरों में ।
------------------------------------------------
संवाद
एक हाथ में अखबार लिए
आँखों में मोटा चस्मा चढ़ाए
लाठी टेककर
अनवरत सामने से आते
सफेद हिमाल जैसे बृद्ध को
‘खहरे’ जैसे एक चञ्चल किशोर ने
रास्ता रोककर पूछा
‘इतने सबेरे किधर चले बाबा ?’
समुद्र जैसी आँखों को
किशोर उत्सुकता पर टिकाकर
मुस्कुराया बृद्ध चेहरा
व अनगिनत अनुभवों से गली हुई
गम्भीर आवाज निकाली
‘अक्षरों को नहीं भूल पाया मैँ
समाचार तो कुछ नया होता नहीं
पर अक्षर तो होते हैं अखबार में
अक्षरों के पास जाने की लालशा से
अखबार खरीद लाया हूँ बेटा !’
खहरे- वर्षाकाल में पहाड़ों में बहनेवाली बेगवान नदी
मूल नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी
अक्षरों का अपना चेहरा नहीं है
पर मैं अपना चेहरा देखता हूँ
अक्षरों में ।
अक्षर मेरे सारे दंभों को थप्पड़ मारते हैं ।
मेरी भलमानसी हँस देती है,
एक-एक करके उतरते हैं मेरे अभिमान
और मुझे नंगा करके कहते हैं - ‘यह तुम हो।’
अक्षर गूँथते हैं मुझे और बिखेरते हैं
आहिस्ता-आहिस्ता थपथपाते हैं और अनुभूति करवाते हैं
संप्राप्ति के संग
कमजोरी के संग
और फिर मुझे सिखाते हैं निर्मल बनना ।
अक्षरों के पास अनुभव है
सत्य है
ढोंग काटने के हथियार हैं
उनके अपने आकार भी हैं ।
बस अक्षरों का अपना चेहरा नहीं है
पर मैं अपना चेहरा देखता हूँ
अक्षरों में ।
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संवाद
एक हाथ में अखबार लिए
आँखों में मोटा चस्मा चढ़ाए
लाठी टेककर
अनवरत सामने से आते
सफेद हिमाल जैसे बृद्ध को
‘खहरे’ जैसे एक चञ्चल किशोर ने
रास्ता रोककर पूछा
‘इतने सबेरे किधर चले बाबा ?’
समुद्र जैसी आँखों को
किशोर उत्सुकता पर टिकाकर
मुस्कुराया बृद्ध चेहरा
व अनगिनत अनुभवों से गली हुई
गम्भीर आवाज निकाली
‘अक्षरों को नहीं भूल पाया मैँ
समाचार तो कुछ नया होता नहीं
पर अक्षर तो होते हैं अखबार में
अक्षरों के पास जाने की लालशा से
अखबार खरीद लाया हूँ बेटा !’
खहरे- वर्षाकाल में पहाड़ों में बहनेवाली बेगवान नदी
मूल नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी
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