सियार का फैसला - नेपाली लोककथा
एक था सियार। एक दिन वह अपने शिकार की तलाश में जा रहा था। उसने दूर से देखा-एक आदमी एक बाघ के आगे-आगे चल रहा है। उसे दाल में कुछ काला नजर आया और वह नजर बचाकर चलने लगा। तभी उसे आदमी की आवाज़ सुनाई पड़ी, ‘मंत्री जी, मंत्री जी, जरा रुकिए।’ सियार ने अनसुनी-सी करते हुए अपनी चाल की गति को बढ़ाई। आदमी ने फिर आवाज दी ‘श्रृंगाल महोदय! जरा मेरी फरियाद तो सुनते जाइए। मैं आपके पास ही आ रहा था।’
सियार ने सोचा, ‘यह निश्चय ही सीधा-साधा व्यक्ति संकट में फंस गया है। उसकी सहायता करना तो धर्म है। जरा इसकी बात सुन लें।’
यह विचार आने पर सियार रुक गया और कहने लगा, ‘जल्दी बोलो। मुझे भी कहीं जल्दी पहुंचना है।’
बाघ और आदमी सियार के निकट पहुंच गए। सियार कहने लगा, ‘दूर से, जरा दूर से ही बात करो तो बेहतर हो।’
आदमी कहने लगा, ‘मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं। पुरोहिताई करके जीवन गुजारता हूं और इसी सिलसिले में पहाड़ी के उस पास के गांव की ओर जा रहा था। रास्ते में इन बाघ महाशय को एक पिंजड़े में बंद पाया। मुझे देखकर यह सहायता की गुहार करने लगे और इन्होंने मुझे हानि न पहुंचाने और एक मित्र की भांति संकट आने पर मेरी सहायता करने की शपथ ली। संकट में फंसे इस प्राणी के प्रति मेरे मन में दया आ गई। इनके मन में कपट-भाव होने का मुझे तनिक भी एहसास न हुआ। मैं धर्म-कर्म पर आस्था रखने वाला व्यक्ति हूं; सोचा कि इन्हें संकट से उबारकर मैं कुछ धर्म कमा लूंगा। लेकिन अब संकटमुक्त होने पर यह अपने वायदे से मुकर रहे हैं, शपथ तोड़ रहे हैं और मुझे खाकर अपनी भूख मिटाना चाहते हैं। मेरे उपकार का क्या यही फल है? यही जानने के लिए हम आपके पास आ रहे थे। कृपया न्याय कर दीजिए। बड़ी कृपा होगी।’
आदमी की बातों को सुनकर सियार कुछ देर सोच में पड़ गया। उसकी आंखें कुछ देर के लिए बंद हो गईं। उसकी मुद्रा देखकर बाघ के होंठ कुटिल मुस्कुराहट में हिलने लगे। सियार ने आंखें खोलने पर बाघ के चेहरे पर कुटिल मुस्कराहट देखी। उसने गंभीर स्वर में बोलते हुए कहा, ‘बाघ भैया! अब जरा आपकी भी बात सुन ली जाए। पता तो चले कि यह आदमी कितना सच बोल रहा है!’
बाघ कहने लगा, ‘यह सच है कि इसने मुझे एक पिंजड़े से आजाद किया। लेकिन अपने को मुक्त पाने और इसे सामने देखने के बाद मुझे जो भूख जगी, उसे मैं दबा नहीं पा रहा हूं। लेकिन बार-बार यह मेरी शपथ और दोस्ती की बात याद दिलाकर मुझे रोक रहा है। आते हुए रास्ते में मुझे जो भी प्राणी मिले, उनसे भी इसने न्याय का अनुरोध किया, लेकिन सभी प्राणियों का कहना है कि मानव जाति मुंह की जितनी मीठी होती है, उतनी ही स्वार्थी, अविश्वसनीय और कृतघ्न भी होती है। अपना काम निकल जाने पर आदमी किसी के प्रति भी दया-भाव नहीं रखता, भले ही उसने उसी सेवा या सहायता ही क्यों न की हो! इसीलिए तुम भी अपने वायदे को तोड़कर अपनी भूख को मिटाते हो तो इसमें कोई बुराई नहीं है।’
सियार ने पूछा, ‘वे कौन प्राणी थे?’
‘वे गाय, भैंस, बैल, ऊंट आदि थे।’ बाघ ने कहा, ‘गाय का कहना है, ‘जब तक मैं दूध देती रही, मेरा मालिक मेरी बड़ी सेवा करता रहा। कभी हरी-हरी घास, तो कभी चने-बिनौले खिलाता। लेकिन जब मैंने दूध देना बंद किया तो उसी मालिक ने मुझे जंगल में भटकने और किसी जंगली जानवर का शिकार बनने के लिए छोड़ दिया। यदि भूले-भटके मैं उधर उसकी गौशाला की ओर जाती हूं तो वह मुझे डंडे मारकर भगा देता है।’ भैंस, बैल और ऊंट की भी व्यथा ऐसी ही है। वे सभी मानव जाति के स्वार्थ के शिकार बनकर जंगल में भटक रहे हैं। बैल तो बूढ़ा हो गया है और उसमें गाड़ी खींचने या खेत जोतने की शक्ति नहीं रही।’
सियार ने बात काटते हुए कहा, ‘हां, उनकी बातों में कुछ सच्चाई तो दिखती है।’ इतना कहने के बाद सियार उस ओर मुड़ गया, जिस ओर से बाघ और आदमी आ रहे थे।
बाघ को सियार की टिप्पणी से कुछ खुशी हुई और वह आगे कहने लगा, ‘उनका यह भी कहना है कि मानव अत्यंत ही अविश्वसनीय प्राणी है; क्योंकि वह कब पैंतरा बदल दे, पता नहीं। यदि आदमी कृतघ्न हो सकता है तो मेरा पैंतरा बदलना कोई जुर्म नहीं हो सकता।’
सियार ने कहा, ‘उन प्राणियों की व्यथा तो वास्तव में ही दर्दनाक है। लेकिन बाघ भैया, वह पिंजड़ा कहां है, जिसमें आपको बंद देखकर इसने मुक्त कर दिया था?’
बाघ कहने लगा, ‘थोड़ी ही दूर आगे पिंजड़ा है।’
सियार ने पूछा, ‘तो बाघ भैया, आपने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ने की ही ठान ली?’
‘हां! क्योंकि जंगलराज में सबसे बड़ा धर्म है अपना पेट भरना। अत: इसे अपना शिकार बनाकर भूख मिटाना मेरी दृष्टि में प्रतिज्ञा तोड़ना नहीं होगा।’ बाघ ने कहा।
तब तक सियार की नजर पिंजड़े पर पड़ गई। फिर भी अनजान-सा बनकर पूछने लगा, ‘अच्छा बाघ भैया, जरा यह तो बताइए पिंजड़ा किस वस्तु का था? लोहे का या लकड़ी का?’
बाघ कहने लगा, ‘लोहे का। वह सामने पड़ा है।’
‘क्या बात करते हो, बाघ भैया! लोहे के इस छोटे पिंजड़े में आप कैसे समा सकते हैं?’ सियार ने हंसते हुए कहा।
‘तुम मुझ पर शक कर रहे हो! मैं भला झूठ क्यों बोलूंगा!’ बाघ ने उत्तेजित होकर कहा।
‘नहीं, शक नहीं कर रहा हूं बाघ भैया। एक उत्सुकता जगी थी, सो पूछ बैठा, आप नाराज न हों। जरा देखूं तो इस छोटे से पिंजड़े में आप समाए कैसे?’ सियार ने हंसते हुए कहा।
‘लो देखो।’ झल्लाते हुए बाघ ने कहा और इतना कहते हुए वह पिंजड़े के अंदर घुस गया।
बाघ अंदर क्या घुसा, सियार ने पिंजड़े का मुंह बंद कर दिया और कहने लगा, ‘बाघ भैया, आज जैसे विश्वासघाती प्राणी के लिए यही स्थान उपयुक्त है। अब आप विश्राम करिए, हम चले।’
इतना कहकर सियार आगे बढ़ा। आदमी ने दोनों हाथ जोड़कर सियार के प्रति अपना आभार व्यक्त किया। सियार कहने लगा, ‘देखो भाई, अपने से बलशाली और कपटी प्राणी के साथ मित्रता कायम करना हमेशा हानिकर और प्राणघातक होती है। अब भागो यहां से, मुझे भी अपनी राह जाने दो।’
फैसला सुनाकर सियार भागते हुए आगे निकल गया।
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