गोरखा जनमुक्ति मोर्चा से नहीं मिलते विचार - छत्रे सुब्बा
कालिम्पोंग. गोरखा लिबरेशन आर्गेनाइजेशन के पूर्व अध्यक्ष छत्रे सुब्बा ने कहा कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा से उनके सिद्धांत मेल नहीं खाते हैं। इसका कारण है कि छत्रे सुब्बा अलग राज्य गोरखालैंड मांगते हैं और गोजमुमो ने जीटीए पर समझौता किया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अभी तक पहाड़ के लोगों को सिर्फ बरगलाया जा रहा था और गोरखालैंड के लिए लोगों को बहकाया गया। अपने आवास पर गुरुवार को पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद और गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन से गोरखाओं को पहचान नहीं मिलेगी। यह जनता की भावना के साथ सीधे तौर पर धोखा है। उन्होंने कहा कि वह आम जनता को धोखा देना नहीं चाहते हैं और यही उनकी पूंजी है। गोरखाओं को गलत रास्ते पर ले जाया जा रहा है। उन्होंने फिर दोहराया कि उन्हें करोड़ों रुपये और हाई पावर काउंसिल दिया जा रहा था, लेकिन यह स्वीकार करता तो आज स्थिति कुछ और होती।गोरखालैंड को लेकर पहाड़ के राजनीतिक दलों में आपसी द्वंद्व चल रहा है। यही वजह है कि सरकार इसका फायदा ले रही है और गोरखालैंड का मामला खटाई में पड़ गया है। एक नहीं होने से जीटीए व दागोपाप जैसे ही विकल्प मिलते रहेंगे और कभी भी स्थिति ठीक नहीं हो पाएगी। हालांकि अलग राज्य का मुद्दा दबाना किसी सरकार या दल के वश की बात नहीं है और कोई ऐसा सोचता है तो यह उसकी गलतफहमी है। सरकार गोरखाओं के खिलाफ षड्यंत्र कर रही है और इसे समझने की आवश्यकता है। इसके लिए आंदोलन जारी रहेगा और इसे बौद्धिक रूप देना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह चोरी या किसी अन्य आरोप में नहीं बल्कि गोरखालैंड मांगने के लिए आंदोलन के दौरान जेल गए थे। जो किया नहीं उसके लिए साढ़े 10 वर्ष जेल में बिताया। इसके बाद भी अलग राज्य के प्रति उनकी राय में परिवर्तन नहीं आया।
(साभार - जागरण)

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