बदहाल इंतज़ाम से हुआ ट्रैफिक पार्क का "एक्सीडेंट"
देहरादून. सोच अच्छी, लेकिन इच्छाशक्ति की कमी। नतीजा तीन लाख रुपये 'एसपी साहब' के एक कमरे के कोने में दफन हो गए। नौनिहालों को ट्रैफिक नियमों की बारीकियां बताने के मकसद से बना यह ट्रैफिक पार्क अफसरों के सिगनल के इंतजार में अपना वजूद ही खो बैठा। राजधानी देहरादून की पहचान एजुकेशन सिटी के रूप में है। ऐसे में यहां स्थानीय व बाहरी छात्रों की संख्या एक लाख से ऊपर है। शहर की सड़कों पर बेतरतीब दौड़ता ट्रैफिक और लगातार बढ़ती दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाना चुनौती बनता जा रहा है। इन पर अंकुश लगाने के लिए तीन साल पहले तत्कालीन एसपी ट्रैफिक नीलेश भरणे ने छात्रों को यातायात नियम सिखाने के लिए एक प्रयोग किया और यह सफल भी रहा। इसी का नतीजा था यह ट्रैफिक पार्क, लगभग तीन लाख रुपये के खर्च से जमीन पर उतारा गया, जो अब खुद पर शर्मिदा है। यह है ट्रैफिक पार्क
यातायात पुलिस कार्यालय परिसर में बनाए गए इस पार्क में सड़क, सिग्नल्स, यातायात आदि को मॉडल्स के माध्यम से दिखाया गया था। किस रंग की लाइट पर ट्रैफिक कैसे रहना चाहिए, ट्रैफिक पुलिस की इशारों के मायने क्या हैं आदि की जानकारी इस पार्क के माध्यम से छात्रों को आसानी से दी जा सकती है।
ये था सपना
-राजधानी में बढ़ते ट्रैफिक दबाव के बीच कम उम्र के बच्चों को नियमों की सीख देना
-स्कूली बच्चों को नियमों का पालन सिखाने और उनके माध्यम से अन्य लोगों को जागरूक करना
-फिल्म व पार्क के माध्यम से सिग्नल, ट्रैफिक चिह्न आदि के बारे में जानकारी देना
-रैश ड्राइविंग, बिना सही लाइसेंस और दस्तावेजों के वाहन चालन के खतरों से अवगत कराना
ये हुआ हश्र
-शुरुआत में स्कूली बच्चों को यहां लाकर नियम सिखाए गए, फिल्में दिखाई गई
-लंबे समय से ट्रैफिक पुलिस ने नहीं उठाई स्कूलों से संपर्क साधने की जहमत
-लगातार बढ़ रही दुर्घटनाएं, स्कूली व कॉलेजों के बच्चे कर रहे रैश ड्राइविंग
-रखरखाव की कमी में बदहाल हो चुका है पार्क, बैरेकेडिंग्स, वाहनों आदि की आड़ में दिखना भी हुआ मुश्किल
" दिनों से पार्क का रखरखाव नहीं हुआ है। ऐसे में यह खराब स्थिति में हैं। इसका जल्द ही उद्धार किया जाएगा व स्कूलों से संपर्क कर इस मुहिम को दोबारा शुरू किया जाएगा ताकि पार्क की स्थापना का उद्देश्य पूरा हो सके।'"- अजय जोशी, एसपी ट्रैफिक, देहरादून
(साभार - जागरण)

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