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प्रोफेसर महेन्द्र पी लामा - एक संक्षिप्त परिचय

मुकेश शर्मा 
प्रोफेसर महेन्द्र पी लामा (जन्म 1961) वर्तमान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के कुलपति हैं जो इस समय मुक्त और दूर अध्ययन के क्षेत्र में विश्व का विशालतम संस्थान है। वे “पहाडों की रानी” दार्जीलिंग में पैदा हुए और स्वर्गीय श्रीमती बसंतलता लामा और स्वनर्गीय श्री आर.पी. लामा के मातृ-पितृत्व  में पले बढ़े। उनके पिता श्री आर.पी. लामा एक विख्यात लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रशासक थे। प्रो. लामा संसद के अधिनियम द्वारा 2007 में भारत में स्थापित सिक्किसम केन्द्रीय विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति हैं और इस राष्ट्रीय विश्व्विद्यालय के पहले और देश के सबसे कम उम्र के कुलपति बने। सिक्किम विश्वविद्यालय भारत में आज नए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की श्रृंखला में सर्वोत्कृंष्ट विश्वविद्यालय के रूप में सुविख्यात है। अपनी दूरदर्शिता, दक्ष प्रबंधन और शैक्षिक कार्यक्रमों के प्रति नवीन सोच एवं अद्वितीय कार्यक्षमता के लिए उन्हें  पर्याप्तय सराहना प्राप्त हुई है। स्थानीय युवा और मानव तथा प्राकृतिक एवं बौद्धिक संसाधनों को राष्ट्रीय और पूरे विश्व के साथ जोड़ने के लिए प्रो. लामा विख्यात हैं।

प्रो. लामा हाल तक भारत सरकार के प्रतिष्ठिंत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य रहे हैं। स्कॉट्स मिशन प्राइमरी स्कूल और टर्नबल हाई स्कूल, दार्जीलिंग के विद्यार्थी रहे प्रो. लामा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली  के दक्षिण एशियाई अर्थ व्यंवस्था, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विद्यापीठ में प्रोफेसर और जेएनयू में दक्षिण, केन्द्रीय, दक्षिण पूर्व एशियाई और दक्षिण पश्चिम प्रशांत अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष भी रहे हैं। उन्हें अपेक्षाक़ृत अत्यंकत कम उम्र अर्थात 39 वर्ष में जेएनयू में पूर्ण आचार्य (प्रोफेसरशिप) प्रदान किया गया। वर्तमान में उन्हें भारत सरकार द्वारा थिम्पू में 2010 में आयोजित 16वें सार्क सम्मेलन में राज्यों के अध्यक्ष और सरकारों द्वारा स्थायपित दक्षिण एशियाई फॉरम की संचालन समिति का सदस्यो मनोनीत किया गया है। उन्होंने सात वर्षों तक (2000-2007) कैबिनेट मंत्री के ओहदे में सिक्किंम सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के पद पर भी काम किया है। उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारत के विभिन्नथ शीर्ष संस्थाओं जैसे इग्नू , पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय एनसीईआरटी और हैदराबाद विश्वाविद्यालय के सर्वोच्चं कार्यकारी निकायों में मनोनीत किया गया है।

उनके बौद्धिक प्रयासों में दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में विकास और सहयोग केन्द्रीय रूप में रहे हैं। दक्षिण एशिया और भारत की विदेशी आर्थिक नीति में आर्थिक सहयोग और एकीकरण का शिक्षण करते हुए उन्होंने नीतिगत मामलों पर गहन अनुसंधान कार्य किया है। उन्हें भारत सरकार ने सार्क द्वारा गठित स्वमतंत्र विशेषज्ञ दल में 1997 में नामित किया। प्रो. लामा शिक्षा, शैक्षिक और शिक्षकों के माध्यलम से ही समाज, समुदाय, क्षेत्र एवं राष्ट्र में गहन एवं व्यापक परिवर्तन लाने में विश्वास रखते हैं। इसीलिए उनको युवा पीढ़ी का एक अदभुत प्रेरणा का स्रोत माना जाता है। 22 पुस्तकों के लेखन और संपादन के अतिरिक्तै उन्हों ने मानव सुरक्षा, विस्थापन, शरणार्थियों, ट्रेड, निवेश और दक्षिण एशिया में ऊर्जा सहयोग और पर्वतीय मामलों पर विस्तृकत कार्य किया है। उन्होंने दक्षिण एशिया में शीर्ष क्षेत्रीय संस्थाहनों के साथ मिलकर कई कार्य किए हैं। उनके नवीनतम कार्यों में उनकी पुस्तणक है, जिसका शीर्षक “ह्यूमन सिक्योररिटी इन इंडिया: डिस्कोनर्स, प्रैक्टिसेस ऐंड पॉलिसी इंप्लीसकेशंस (यूपीएल, ढाका, 2010) है। उनके कार्य कई प्रतिष्ठित जर्नलों में प्रकाशित हुए हैं तथा उनका अनुवाद कई विदेशी भाषाओं में हुआ है, जिसमें जापानी, फ्रेंच और जर्मन शामिल हैं। वे विदेश में भारत के प्रतिनिधिमंडल में कई बार गए हैं, जिसमें प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गए हुए प्रतिनिधिमंडल में भी उनकी हिस्सेदारी थी।

वे वर्ष 2011 में अमेरिका में नेहरू फुलब्राइट एजुकेशन एडमिनिस्ट्रे टर्स फेलो; 2008-2010 में यूएसए में न्यूस स्कूरल यूनिवर्सिटी में इंडिया-चाइना फेलो, 2002 में यूरोपियन यूनियन ब्रूसेल्सम के विजिटर तथा 1997 में यूएसए में नोटरडेम यूनिवर्सिटी में फोर्ड फाउंडेशन फेलो रहे हैं। उन्होंने इंडोनेशिया और थाइलैंड में ऊर्जा सहयोग फोरम में भारत का प्रतिनिधित्वे किया है। उन्हें 2007 में मलेशिया में क्वालालंपुर में प्रतिष्ठिरत मलेशिया इंटरनेशनल विजिटर प्रोग्राम (एमडीवीपी) में मलेशिया सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया था। वे जापान में 2001 में प्रतिष्ठित एशिया लीडरशिप फेलो, हितोत्सुयबाशी यूनिवर्सिटी, टोक्यो में 2004-2005 में विजिटिंग प्रोफेसर तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय में विजिटिंग फेलो और युनाइटेड किंगडम एवं चीन में भारतीय महाविद्यालयों के कुलपतियों के प्रतिनिधि दल में अध्यिक्ष रहे। वे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नलों के संपादक मंडल के भी सदस्यि रहे हैं। वे भारत और दक्षिण एशिया के विभिन्न प्रमुख राष्ट्रीय दैनिकों में लिखते रहे हैं जिसमें हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, टेलीग्राफ, स्टेट्समैन, डेक्कन हेराल्ड , फाइनेंशियल एक्सप्रेस, पैट्रियाट, ट्रिब्यून, इकॉनॉमिक टाइम्स  आदि शामिल हैं। विभिन्न टीवी और रेडियो चैनलों ने कई बार उनके साक्षात्कार (86 साक्षात्कार) किए जिनमें बीबीसी, एनडीटीवी, हेडलाइन्स  टुडे, आज तक, स्टार, जी, सहारा, दूरदर्शन और सीएनएन-आईबीएन, ऑल इंडिया रेडियो, वाइस ऑफ अमेरिका, रयटर और क्रिश्चिनयन साइंस मॉनीटर शामिल हैं। दूरदर्शन के प्रतिष्ठित कार्यक्रम ‘’आज सवेरे’’ में दो बार उनका साक्षात्कार लिया गया है।

वे साउथ एशिया फाउंडेशन, नई दिल्ली  के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे हैं जिनकी शाखाएं पूरे दक्षिण एशियाई देशों में हैं। उन्होंरने दार्जीलिंग गोरखा हिल काउंसिल के प्रथम विकास योजना सन् 1989 में, फर्स्ट द सिक्किम ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट, 2011, नाथूला व्यापार मार्ग रिपोर्ट सन् 2005 एवं सिक्किम का प्रथम आर्थिक सर्वेक्षण 2007 भी लिखा है। उन्हें ऐतिहासिक नाथूला ट्रेड रूट जो भारत में सिक्किम तथा चीन में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के बीच है उसे 44 वर्षों बाद 2006 में पुन: खोलने के स्रष्टा‍ के रूप में भी जाना जाता है। उन्हें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग; गृह मंत्रालय; विदेश मंत्रालय; योजना आयोग; पंचायती राज मंत्रालय; वाणिज्य मंत्रालय और पूर्वोत्तयर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा विभिन्न राष्ट्रीय समितियों में नियुक्त‍ किया गया है। वे छठी अनुसूची के अंतर्गत राष्ट्रीय नीति समिति के और पूर्वोत्तीर क्षेत्र के विजन दस्ता‍वेज के लिए गठित राष्ट्रीय संचालन समिति के भी सदस्य बनाए गए, जिसका विमोचन 2008 में प्रधानमंत्री द्वारा किया गया। वे उन कुछ गिने-चुने ज्ञाताओं में से हैं जिन्होंने लगभगसभी सीमांत क्षेत्रों की विस्तृत यात्रा की है और दार्जीलिंग के सभी 85 चाय बागानों का वास्तविक तौर पर सर्वेक्षण किया है।

वे विश्व बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम, यूएसएआईडी, ऑस्ट्रेलियन ऐड एजेंसी, आईडीआरसी केनाडा, आईसीआईएमओडी - काठमांडू और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ प्रोफेशनल तौर पर जुडे हुए हैं। उन्हेंम एडीबी द्वारा सार्क के संपूर्ण कार्यों की समीक्षा का गंभीर कार्य सौंपा गया है। उन्होंने नेपाल में व्यापक तौर पर प्रसारित एवं लोकप्रिय हिमाल खबर पत्रिका में “सेरोफेरो” कॉलम में अत्यंत लोकप्रिय कॉलम लिखे हैं। सिलिगुड़ी से प्रकाशित एक लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्र “हिमालय दर्पण” में एक विशेष कॉलम “घामको खोजिमा” भी लिखा है। वे अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से जुडे हुए हैं जिनमें नई दिल्ली का प्रतिष्ठित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, विश्व विद्यालय अनुदान आयोग, साहित्य़ अकादमी, नेशनल बुक ट्रस्ट्, इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स आदि शामिल हैं। उन्होंने 180 से ज्यादा विशेषज्ञ/सार्वजनिक व्यांख्या्न दिए हैं जिसमें भारत और विदेश के कई प्रमुख वैश्विक संस्थान शामिल हैं जैसे येल यूनिवर्सिटी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, स्टेकनफोर्ड यूनिवर्सिटी, नोटरेडेम यूनिवर्सिटी, न्यू स्कूल यूनिवर्सिटी और आईएफएस/आईएएस के परिवीक्षाधीन अधिकारियों, नेशनल डिफेंस कॉलेज (एनडीसी) और अनेक विश्वविद्यालय तथा अन्यी संस्थान शामिल हैं।

उन्होंने 260 से ज्यादा सम्मेलनों/संगोष्ठि‍यों में भारत तथा विदेश स्थित 30 देशों में प्रतिभागिता की है। उनका मार्गदर्शन एवं पर्यवेक्षण में 35 से ज्यादा विद्यार्थियों ने एम फिल के शोध निबंध और पी.एचडी. के शोध प्रबंध किया है। उनके विद्यार्थी भारत और विदेशों में प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत है। वे संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लोक सेवा परीक्षाओं तथा राज्य स्तर पर लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में प्रतिष्ठित साक्षात्कार बोर्ड के भी सदस्य रहे हैं। वे भारत के शीर्ष नेपाली साहित्यिक और सांस्कृ्तिक संगठनों के भी आजीवन सदस्य  हैं। उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग के तहत पर्वतीय विकास हेतु बनाए गए प्रधानमंत्री के कार्यबल के सदस्यं के तौर पर भी कार्य किया है। पहाड़ और समतल भूमि और यहॉं के बाशिंदों के दीर्घकालिक विकास के लिए कार्यरत प्रो. लामा पश्चिम बंगाल में दार्जीलिंग एवं डुआर्स को मिलाकर एक पृथक राज्य बनाने के सशक्त पक्षधर रहे हैं और इसके लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। विस्तृत सोच और सभी जातियों, जन जातियों, भाषा, समुदाय और धर्म को साथ लेकर चलने वाले और उनके राजनीतिक, सांस्कृजतिक, सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों के निरतंर संवर्धन एवं संरक्षण करने वाले तथा व्यापक सोच रखने वाले प्रोफेसर लामा, दार्जीलिंग जिला और डुवर्स को लेकर निर्मित होने वाले अलग राज्य में सभी को हिस्से दारी और समान अधिकार दिलाने के लिए अग्रसर हैं। उनकी राय है कि अलग राज्य से न केवल युवा पीढी़ वरन हर तबके के लोगों को लाभ होने के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा भी और मजबूत एवं सुदृढ़ होगी। अलग राज्य में वह शिक्षा, स्वास्य्सु , सीमा व्यागपार, प्राकृतिक सम्पादा, कृषि उद्योग, चाय, सिन्कोना, पर्यटन, गैर सरकारी संस्था आदि क्षेत्रों में राष्ट्री य एवं अंतरराष्ट्री्य संस्थाओं एवं पूंजी निवेशकर्त्तांओं को शामिल करके इस अलग राज्या को देश का सर्वश्रेष्ठ राज्यं बनाना चाहते हैं।

अति उदार हृदय और प्रखर सोच रखने वाले प्रोफेसर लामा सभी को बताते आ रहे हैं कि अलग राज्यय की मांग में प्रमुखत: छह तत्वत एवं तथ्यए निहित हैं, जिसमें अस्मिपता-पहचान, ऐतिहासिक अधिकार, परम्प रा, भौगोलिक संरचना, राजनीतिक अधिकार, आर्थिक पिछडा़पन एवं राष्ट्री य सुरक्षा का मामला शामिल है। उन्हें कई प्रतिष्ठि त पुरस्कार और सार्वजनिक अभिनंदन प्राप्त हुए जिनमें 1979 में प्रतिष्ठित फादर शॉकार्ट गोल्डत मेडल और 2007 में आजीवन उपलब्धि पुरस्कार दार्जीलिंग में सेंट जोसेफ कॉलेज द्वारा शताब्दी समारोह में प्रदान किया गया। 2008 में उन्हें दक्षिण एशिया में सीमापार सहयोग और एकीकरण के उन्नयन में महत्वपूर्ण और अनवरत योगदान के लिए उलानबातार, मंगोलिया में आयोजित ग्लोमबल पीस फेस्टिकल में यूनाइटेड पीस फेडरेशन द्वारा “एम्बेसडर फॉर पीस” पुरस्कार प्रदान किया गया। वे साहित्य अकादमी पुरस्कार और संस्कृंति मंत्रालय के राष्ट्रीय अध्येता चयन समिति में निर्णायक के तौर पर भी रहे हैं। गहरी प्रजातांत्रिक एवं धर्म निरपेक्ष विचारधारा रखने वाले डॉ. लामा सदैव अहिंसा, सदभावना एवं राष्ट्र प्रेम के लिए समर्पित रहे हैं। उनका विवाह सबीना से हुआ, उनकी पत्नीय और दो पुत्रियॉं काफल और टोटोला परिवार के सामाजिक एवं नैतिक दायित्वव संभालने में तत्पर हैं। 



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