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राजपक्षे के खिलाफ मोदी को जयललिता ने कहा- बुलाने की जरूरत नहीं

चेन्नई : देश के अगले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 26 मई को होने वाले शपथ ग्रहण समारोह में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को बुलाए जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. अब इसके विरोध में तमिलनाडु की राजनीति की दो चिर प्रतिद्वंद्वी पार्टियां एकजुट हो गई हैं. अन्नाद्रमुक और द्रमुक दोनों ने इसका विरोध किया है. जबकि एनडीए के प्रमुख घटक दल एमडीएमके के प्रमुख वाइको ने इस बाबत मोदी को पत्र भी लिखा है.अन्नाद्रमुक प्रमुख और मुख्यमंत्री जयललिता ने इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ करार देते हुए पहले से दुखी तमिलों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा बताया. राजपक्षे प्रशासन की मुखर विरोधी अन्नाद्रमुक प्रमुख ने श्रीलंका के राष्ट्रपति को आमंत्रित करने को गलत सलाह पर उठाया गया कदम बताया और कहा कि इसे टाला जा सकता था, खासकर केंद्र राज्य संबंधों के संदर्भ में.

जयललिता ने एक बयान में कहा कि देश-विदेश में रह रहे तमिलों की संवेदना ज्ञात है, केंद्र में सत्ता परिवर्तन से तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच पहले से चले आ रहे तनावपूर्ण संबंध में कोई बदलाव नहीं आने वाला है.
उन्होंने राज्य विधानसभा में पारित विभिन्न प्रस्तावों का जिक्र किया जिनमें तमिलों के खिलाफ श्रीलंकाई सेना के कथित युद्ध अपराध को लेकर उस देश के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाने सहित अन्य मांग की थी.
जयललिता ने कहा कि यूपीए सरकार ने विभिन्न प्रस्तावों पर कार्रवाई नही करते हुए उनकी ‘अनदेखी’ की और उम्मीद थी कि नयी सरकार श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर सहानुभूति रखेगी. लेकिन राजपक्षे को आमंत्रित करने से तमिलनाडु के लोगों को गहरी निराशा हुयी है.

जयललिता के इस विरोध को लेकर उनके मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने पर सवालिया निशान लगने लगे हैं. गौरतलब है कि मोदी ने 2011 में मुख्यमंत्री पद के लिए जयललिता के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया था वहीं जयललिता 2012 में मुख्यमंत्री पद के लिए मोदी के शपथग्रहण समारोह में शामिल हुयी थीं.

द्रमुक ने भी किया विरोध
आमंत्रण का बीजेपी की सहयोगी एमडीएमके द्वारा विरोध किए जाने के एक दिन बाद द्रमुक ने कहा कि मोदी को इस संबंध में तमिल लोगों की भावना को समझना चाहिए और इससे से बचना चाहिए था. द्रमुक ने कहा कि राजपक्षे को आमंत्रित करने को टाला जाना चाहिए था. पार्टी प्रवक्ता इलानगोवन ने कहा कि भावी प्रधानमंत्री को तमिलनाडु के लोगों की भावना को समझना चाहिए था.


‘राजपक्षे की उपस्थिति से बचें मोदी’
एनडीए के प्रमुख घटक दल एमडीएमके प्रमुख वाइको ने भी प्रधानमंत्री नियुक्त नरेन्द्र मोदी से आग्रह किया कि वह 26 मई को प्रधानमंत्र्री के शपथ ग्रहण समारोह में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की उपस्थिति से बचें. इस संदर्भ में मोदी को लिखे पत्र में वाइको ने श्रीलंका में तमिलों के साथ हुए कथित अत्याचारों का विस्तार से उल्लेख किया और आरोप लगाया कि राजपक्षे ने हजारों श्रीलंकाई तमिलों के साथ अक्षम्य अपराध किया है. उन्होंने साथ ही आरोप लगाया कि ऐसा करने में यूपीए सरकार ने श्रीलंका को सैन्य संबंधी लाजिस्टिक सहयोग की पेशकश की थी.

शपथ समारोह में राजपक्षे को आमंत्रित किए जाने पर क्षोभ जताते हुए उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि आगामी एनडीए सरकार को गुमराह करने में विदेश मंत्रालय की अफसरशाही ने सबसे खराब काम किया है.
मोदी को लिखे पत्र में एमडीएमके नेता ने कहा, ‘बहते आंसू और हाथ जोड़ कर मैं आपसे आग्रह करता हूं कि शपथ ग्रहण समारोह जैसे महत्वपूर्ण समारोह में महिंद राजपक्षे की उपस्थिति से पूरी तरह बच कर तमिल लोगों के लिए उम्मीद की किरण जगाइए.’ 


कांग्रेस ने किया बीजेपी का बचाव
इस बीच बीजेपी को विरोधी कांग्रेस से सहारा मिला और पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख बी एस ज्ञानादेसिकन ने वस्तुत: इस कदम का बचाव किया. उन्होंने कहा, ‘तमिलों को समान राजनीतिक दर्जा, श्रीलंका के संविधान के 13वें संशोधन का कार्यान्वयन (अधिकारों के विकेंद्रीकरण संबंधी) और (कथित) युद्ध अपराधों की जांच जैसे मुद्दों पर कांग्रेस की कोई दूसरी राय नहीं है. लेकिन साथ ही, अगर इन सब का कार्यान्वयन किया जाना है, तो हमें श्रीलंका के राष्ट्रपति से ही बात करनी होगी.’ उन्होंने जोर देते हुए कहा कि श्रीलंका ‘हमारा पड़ोसी’ और दक्षेस का सदस्य है. ऐसे में यह भारत के हित में है कि उस देश के साथ मित्रतापूर्ण संबंध रहे. ‘यह कूटनीति है.’ इस बीच अन्नाद्रमुक की सहयोगी टीवीके ने राजपक्षे की यात्रा के विरोध में 26 मई को विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की है.
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