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दलबीर सिंह सुहाग : महान भारतीय सेना के नए सेनानायक

दलबीर सिंह सुहाग की नियुक्ति से पहले कई तरह के विवाद सामने आये। सत्ता के गलियारों में नाम गूंजा। फील्ड मार्शल सैम मानकेशॉ के बाद दूसरे नंबर पर भी उन्हें गिना जा रहा है। धुन के पक्के माने जाते हैं। रोज 10 किलोमीटर दौडऩा, घुड़सवारी और गोल्फ खेलना उनके मुख्य शौक हैं। कई बड़े सैन्य अभियानों की अगुवाई कर चुके हैं। पिता भी सेना से सेवानिवृत्त हुए हैं। एक भाई सेना में कर्नल और दूसरे हरियाणा पुलिस में हैं। खुद अनेक सैन्य पदक-मेडल से नवाजे गये। अब देश की थल सेना के प्रमुख बनने जा रहे हैं। बात कर रहे हैं लेफ्टिनेंट जनरल दलबीर सिंह सुहाग की। वह 31 जुलाई को सेना प्रमुख का पद संभालेंगे। अभी वह उप सेना प्रमुख हैं।

दलबीर सिंह सुहाग का जन्म हरियाणा के झज्जर जिले के बेरी इलाके में स्थित बिसान गांव में हुआ। इस इलाके की खूबी यह है कि यहां से अनेक लोगों ने लंबे समय तक सेना में अपनी सेवाएं दी हैं। 2012 में देहरादून मिलिटेरी एकेडमी की पासिंग आउट परेड में बिसान गांव के ही प्रशांत सुहाग ने सबसे बड़ा अवार्ड  ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' अपने नाम करवाया। एक तो पूरे इलाके के ही कई परिवार सैन्य पृष्ठभूमि वाले, तिस पर इनके खुद के घर का माहौल सैनिक अनुशासन वाला। इसका असर पूरी तरह सुहाग पर पड़ा। उनके पिता रामफल सुहाग सेना से सेवानिवृत्त हुए हैं। शुरुआती पढ़ाई के बाद दलबीर को चित्तौडग़ढ़ के सैनिक स्कूल में दाखिला दिला दिया गया। 1970 में दलबीर ने नेशनल डिफेंस अकेडमी में दाखिला लिया और चार साल बाद यानी 1974 में पांचवीं गोरखा राइफल्स के चौथी बटालियन में बतौर कमीशंड अधिकारी सेना का कामकाज संभालना शुरू किया। दलबीर सिंह को सेना के कई प्रमुख अभियानों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गयी। 

इंडियन मिलिटेरी अकेडमी, देहरादून में उन्हें बतौर प्रशिक्षक लगाया गया। वर्ष 1997-98 के दौरान उन्होंने लांग डिफेंस मैनेजमेंट कोर्स (एलडीएमसी) किया। कॉलेज ऑफ डिफेंस स्पेशल फ्रंटियर फोर्स से इस कोर्स को पूरा करने के बाद उन्होंने अमेरिका से एक्जीक्यूटिव कोर्स और उसके बाद केन्या से सीनियर मिशन लीडर का प्रशिक्षण लिया। सेना में नौकरी करते हुए और उच्च प्रशिक्षण लेने वाले सुहाग को श्रीलंका में ऑपरेशन पवन के दौरान कंपनी कमांडर बनाया गया। इस ऑपरेशन की सफलता के बाद उन्होंने कई अभियानों का संचालन किया और उन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया गया। 2003 से 2005 तक वह कश्मीर घाटी में विभिन्न सैन्य अभियानों के अगुआ रहे। अक्तूबर 2007 से दिसंबर 2008 तक उन्हें 8 माउंटेन डिवीजन करगिल की कमान सौंपी गयी।

अपने विभिन्न अभियानों में सफलता अर्जित करने वाले दलबीर सिंह सुहाग के करिअर में एक दूसरा मोड़ भी आया, जब उनका प्रमोशन रोक दिया गया। प्रमोशन भी ऐसे मोड़ पर आकर रुका, जहां से उनके सैन्य प्रमुख की डगर बहुत छोटी रह गयी थी। बात वर्ष 2012 की है। सुहाग असम के दीमापुर इलाके में तैनात थे। उस वक्त के सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह ने जोरहाट में इंटेलीजेंस ऑपरेशन का सफलतापूर्वक संचालन न करने के आरोप में उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की और उनके प्रमोशन पर बैन लगा दिया। जनरल वीके सिंह की सेवानिवृत्ति के बाद सेना प्रमुख बने जनरल बिक्रम सिंह ने तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी की सलाह पर यह बैन हटा लिया और वर्ष 2012 में उन्हें ईस्टर्न कमांड का मुखिया बनाया गया। इसके बाद 31 दिसंबर 2013 को उन्हें सेना का उप प्रमुख नियुक्त किया गया। 

बतौर सेना प्रमुख उनके नाम की घोषणा पूर्व की यूपीए सरकार ने अपने अंतिम दिनों में की। अब सत्ता में आने पर भाजपा नीत एनडीए सरकार ने ही स्पष्ट किया है कि सेना प्रमुख जैसे महत्वपूर्ण पदों के लिए दलगत राजनीति से ऊपर सोचना चाहिए। परम विशिष्ट सेवा पदक, उत्तम युद्ध सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित हो चुके लेफ्टिनेंट जनरल दलबीर सिंह सुहाग को नयी जिम्मेदारी अगले माह के अंत से मिलने वाली है। वह इस पद पर 31 दिसंबर 2016 तक रहेंगे। गोरखा राइफल्स से किसी अधिकारी के सेना प्रमुख तक पहुंचने वाले वह दूसरे व्यक्ति हैं। इससे पहले फील्ड मार्शल सैम मानकेशॉ भी सेना की इसी शाखा के अधिकारी थे। अब सेना को भी नया प्रमुख मिल रहा है। भारतीय सेना निश्चित रूप से अपने गौरवशाली अतीत को बरकरार रखते हुए अपने नये जनरल के अनुभवों का लाभ उठायेगी।
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