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हमीद गुल: पाकिस्तान में मार्शल लगाने वाले जनरल ज़िया की राजनीति के वारिस

बीबीसी
अगर पाकिस्तान में मार्शल लगाने वाले जनरल ज़िया उल हक़ के सबसे बड़े वैचारिक वारिसों की सूची बनाई जाए तो हमीद गुल का नाम सबसे ऊपर होगा. दोनों का संबंध आरमर्ड कोर से था. जनरल ज़ियाउल हक़ ने जब सत्ता संभाली थी तो हमीद गुल ब्रिगेडियर थे. जनरल ज़ियाउल हक़ ने चीफ़ ऑफ आर्मी स्टाफ बनने से पहले मुल्तान में कायम सेकंड स्ट्राइक कोर की संभाली थीं और 1980 में मेजर जनरल हमीद गुल को इसी कोर की बख्तरबंद डिवीजन का कमांडर नियुक्त किया गया था. बाद में वह मुख्यालय में फ़ौजी कार्रवाई के इंजार्ज भी रहे. यह वह दौर था जब अफ़ग़ान अभियान चरम पर था.

ज़िया की च्वाइस
मार्च 1987 में जब जनरल अख्तर अब्दुल रहमान को आठ वर्ष तक आईएसआई की अध्यक्षता के बाद ज्वाइंट चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ कमिटी के पद पर पदोन्नत किया गया तो अफ़ग़ान लड़ाई को जारी रखने के लिए ज़ियाउल हक़ की नज़रों में हमीद गुल एक स्वाभाविक विकल्प थे. इसलिए उन्हें आईएसआई का महानिदेशक नियुक्त कर दिया गया. तब तक सोवियत संघ भी थक चुका था और अफ़ग़ानिस्तान से वापसी की तैयारी कर रहा था. मगर लेफ्टिनेंट जनरल हमीद गुल की गहरी फ़ौजी नज़र अफगानिस्तान और मध्य एशिया के बीच बहने वाली नदी आकसस के पार संभावित जीत देख रही थी. 10 अप्रैल 1988 को अफ़ग़ान मुजाहिदीन के हथियारों की सबसे बड़े डिपो ओझड़ी कैंप में धमाका हुआ. भले ही ये धमाका आंतरिक वजहों से हुआ हो या बाहरी, लेकिन इसके चलते अमरीका अपने दिए गए हथियारों, विशेषकर अफ़ग़ान युद्ध का रुख मोड़ने वाले स्ट्रिंगर मिसाइलों के ऑडिट से वंचित हो गया. और विस्फोट की वजह से एक महीने के अंदर मोहम्मद खान जुनेजो की सरकार भी उखड़ गई.

रणनीतिक हित
 जनरल हमीद गुल का मानना था कि नए हालात में अगर अमरीका पाकिस्तान की पीठ से अपना हाथ उठा भी ले, तब भी आईएसआई अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के रणनीतिक हितों का बचाव कर सकती है. इस विश्वास का आलम यह था कि एक मिशन पश्चिमी पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान में जारी था तो दूसरा मिशन पूर्वी पड़ोसी भारत के पंजाब में पांव फैलाए हुए था और तीसरे मिशन के रूप में अफ़ग़ानिस्तान से निकट भविष्य में रिहा पाने वाले मुजाहिदीन को कश्मीर में खपाने की तैयारी हो रही थी. 17 अगस्त 1988 को राष्ट्रपति ज़िया उल हक़ और जनरल अख्तर अब्दुल रहमान सहित कई उच्च अधिकारियों के हवाई हादसे में मौत के कारण गुलाम इशाक खान, नए सेनाध्यक्ष जनरल असलम बेग़ और आईएसआई के प्रमुख जनरल हमीद गुल की तिकड़ी वजूद में आई. नतीज़तन ग्यारह वर्ष के बाद होने वाले पहले आम चुनाव में 'सकारात्मक नतीज़े' पाने के लिए बेनज़ीर भुट्टो के दक्षिणपंथी विरोधियों को नवाज़ शरीफ के नेतृत्व में इस्लामी जनतांत्रिक गठबंधन (आईजेआई) के बैनर के नीचे लाया गया.

भूमिका
जनरल हमीद गुल ने हमेशा सीना ठोंक कर कहा है कि यह गठबंधन उन्होंने त्रिकोण के अन्य दो कोनों को विश्वास में लेकर बनाया. पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में यह पहला उदाहरण था जब एक एजेंसी के प्रमुख ने ढकी छिपी शैली को अलविदा कहते हुए खुल कर इतनी सफल पॉलिटिकल इंजीनियरिंग की. बाद में बेनज़ीर भुट्टो को हाशिए पर रखने के लिए ऑपरेशन मिड नाइट जैकाल, मेहरान गेट और फिर 2002 में मुस्लिम लीग क्यू के जन्म में भी वही पॉलिटिकल इंजीनियरिंग काम आई. इसके संस्थापक हमीद गुल खुद थे. फिर भी वह अंतिम समय तक कहते रहे कि राजनीति भ्रष्टाचार का घर है और जब राजनेता देश को बर्बाद करने पर आमादा हो जाएं, तो सेना अपनी राष्ट्रीय भूमिका अदा न करे तो और क्या करे? फ़रवरी 1989 में जब अफ़गानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी हुई तो सीआईए का अनुमान था कि नज़ीबुल्लाह सरकार अधिक से अधिक छह महीने में समाप्त हो जाएगी.

नजीब के ख़िलाफ़ अभियान
 लेकिन जनरल हमीद गुल की इच्छा थी कि छह महीने भी क्यों? इसलिए उन्होंने बेनज़ीर सरकार को जानकारी दी कि पिछले दस साल में मुजाहिदीन इतने अनुभवी हो चुके हैं कि अब वे किसी भी बड़े अफ़ग़ान शहर में आसानी से कब्ज़ा करके अपनी सरकार स्थापित कर सकते हैं. यदि ऐसा हो जाए तो नज़ीबुल्लाह की सैन्य बलों का मनोबल तेज़ी से समाप्त हो जाएगा और फिर एक के बाद एक शहर मुजाहिदीन के आगे ढेर होते चले जाएंगे. इसलिए सैन्य विशेषज्ञों के नेतृत्व में अब्दुल रसूल सयाफ और गुलबुद्दीन हिकमतेयार की समानांतर सरकार स्थापित करवाने के लिए मार्च 1989 में दस हजार मुजाहिदीन ने जलालाबाद छीनने के लिए हमला कर दिया.

आंतरिक साज़िश
अगले ढाई महीने के दौरान तीन हज़ार मुजाहिदीन की जानें गईं. दस से पंद्रह हज़ार नागरिक मारे गए और एक लाख के लगभग बेघर हुए, मगर जलालाबाद पर कब्ज़ा न हो सका. इसलिए मई में जनरल हमीद गुल से आईएसआई का प्रभार लेकर मुल्तान का कोर कमांडर बना दिया गया. (जलालाबाद अभियान की नाकामयाबी ने अफ़ग़ान सेना का मनोबल आसमान पर पहुंचा दिया और नज़ीबुल्लाह अगले तीन साल तक सत्ता में रहे. जनरल गुल को 1991 में भारी उद्योग टैक्सिला का महानिदेशक नामित किया गया मगर उन्होंने इसे कमतर पोस्टिंग मानते हुए प्रभार लेने से इंकार कर दिया और फिर वह रिटायर हो गए. रिटायरमेंट के बाद से वे वैश्विक इस्लामी जिहाद के पुरजोर हिमायती रहे. वे लगातार अफ़ग़ान मुजाहिदीन को सलाह देते रहे. उनके मुताबिक़ 9/11 की जिम्मेदारी ओसामा बिन लादेन पर नहीं डाली जा सकती, बल्कि मुसलमान दुनिया को गुलाम बनाने के लिए यह आंतरिक साजिश थी.

मुशर्रफ़ का विरोध
जनरल परवेज मुशर्रफ के वे खुले विरोधी थे. एक बार जनरल मुशर्रफ ने चिढ़ कर उन्हें 'एक सेवानिवृत्त छद्म बुद्धिजीवी' भी कह डाला. उन्होंने न्यायपालिका के आंदोलन में भी भाग लिया और चरमपंथी मजहबी संगठनों के गठबंधन दीफाय पाकिस्तान कौंसिल के नेतृत्व में भी वे आगे रहे. बेनज़ीर भुट्टो से उनकी ढकी छुपी दुश्मनी सेवानिवृत्ति के बाद खुली और दोतरफा हो गई. यहां तक कि जब बेनज़ीर भुट्टो ने अक्तूबर 2007 में नौ साल के स्वनिर्वासन के बाद वापस आने की घोषणा की तो उन्होंने कराची आने से दो दिन पहले उन्होंने जनरल मुशर्रफ के नाम पत्र भी लिखा. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर 'मुझे' कुछ हुआ तो इसके दोषियों में अरबाब गुलाम रहीम, चौधरी परवेज इलाही, ब्रिगेडियर एजाज शाह और जनरल हमीद गुल की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. बेनज़ीर भुट्टो की हत्या के बाद उनके पति आसिफ अली जरदारी ने अमरीकी पत्रिका न्यूजवीक को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि हमीद गुल चरमपंथियों के राजनीतिक गुरु हैं. अमरीकी सरकार ने भी उन्हें अलकायदा और तालिबान से लिंक के शक़ में चरमपंथियों की वाचलिस्ट में रखा.

विवादास्पद अध्याय
हमीद गुल आख़िरी दिन तक सक्रिय रहे. राजनीतिक स्कैंडलों से भरपूर, मगर व्यक्तिगत स्कैंडल्स से मुक्त जीवन उन्होंने बिताया. वह 79 की उम्र में भी देखने में साठ पैंसठ साल से अधिक के नहीं लगते थे. वे स्वात के युसुफ़जई पश्तून थे जिनका परिवार लगभग सौ साल पहले सरगोधा में बस गया था. शायद इसीलिए उनकी पश्तो से अधिक पंजाबी पर पकड़ थी. वे ट्विटर, सोशल मीडिया और पश्चिमी मीडिया से चिढ़ते थे, मगर बीबीसी के नियमित श्रोता थे और अपनी राय भी एसएमएस के रूप में भेजा करते थे. उन्होंने अपने विचारों का खुलकर प्रचार किया लेकिन कभी अपने जीवन के बारे में नहीं लिखा. उनके जाने से पाकिस्तान में ज़िया की राजनीतिक और सैन्य इतिहास का एक और विवादास्पद अध्याय बंद हो गया.
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