बॉर्डर सिक्यूरिटी फोर्स (BSF) के DIG राज किरण थापा का Exclusive इंटरव्यू
वीर गोरखा न्यूज नेटवर्क
दीपक राई
देहरादून शहर की गोरखा शख्सियतों में शुमार बॉर्डर सिक्यूरिटी फोर्स (बीएसएफ) में पदस्थ डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (डीआईजी) राज किरण थापा से वीर गोरखा के संपादक दीपक राई ने गोरखा समाज और उनसे जुड़ी हुई मुद्दों पर बातचीत की। चर्चा में पंजाब के फिरोजपुर में समाज के गौरव प्रेरणास्रोत डीआईजी आॅफिस के मुखिया ने गोरखा समाज से जुड़े कई पहलूओं पर खुलकर बात की।
सवाल - आपकी पैदाईश कहां की हैं ?
थापा - मेरा जन्म देहरादून में हुआ हैं। मैं मूलत: देहरादून के कुटालवाली का ही रहने वाला हूं। प्रारंभिक शिक्षा के बाद यहां के ही डीएवी कॉलेज से मैंने मास्टर्स की डिग्री ली।
सवाल - आप ने अपने बीएसएफ करियर की शुरूआत कैसे की?
थापा- कॉलेज करने के तुरंत बाद मैंने आर्मी में करियर बनाने के लिए अपने आप को तैयार किया। मैं शॉर्ट सर्विस कमीशन में बतौर ओटीएस ट्रैनिंग के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में अफसर चुना गया। लगभग सात साल सेना में रहने और आवश्यक अनिवार्य सेवा करने के बाद मैंने आर्मी से बीएसएफ में बदली ले ली।
सवाल - मतलब आप भी सेना के प्रति जुनूनी रहे हो? आजकल की पीढ़ी भी खासकर देहरादून की यंग जेनरेशन आज भी सेना को ही अपना करियर क्यों चुनती है ?
थापा - देखिए इसकी वजह स्पष्ट रूप से देहरादून में एक समय कई आर्मी केंटोनमेंट का होना रहा हैं। हमारे समय में 58 गोरखा ट्रेनिंग सेंटर के साथ-साथ कई गोरखा बिग्रेडों और गोरखा रेजीमेंटों का मुख्यालय देहरादून ही हुआ करता था। इसके कारण यहां के युवाओं में हमेशा से आर्मी में भर्ती होने की चाह जगती रही हैं। मैंने भी यही विकल्प का ही चुनाव किया था।
सवाल - गोरखा समाज के युवाओं में आजकल अपने संस्कृति के प्रति रुझान में आप कमी देखते हो?
थापा - निसंदेह आज का गोरखा समाज समृद्ध हैं इसलिए आधुनिक रहन-सहन और विचारो को अपनाने की होड़ में हमारे समाज के युवा अपनी संस्कृति से कट रहे हैं। देखिए समाज से ही हम हैं और हम से ही समाज, इसलिए युवाओं पर विशेष ध्यान देने और उनको जागरूक बनाने की आवश्यकता हैं।
सवाल - गोरखा समाज ने देश को कई बड़े सैन्य और सिविल अधिकारी दिए हैं। लेकिन देखने में आता हें कि जो गोरखा व्यक्ति अफसर बन जाता हैं, तो वह समाज में एलीट वर्ग को जन्म देता हैं। जिससे छोटे रैंक के सैनिक एवं अन्य कर्मचारी अपने को अलग-थलग पाते हैं। ऐसा क्यों होता हैं?
थापा - ऐसा कुछ भी नहीं है। बड़े सैन्य व डिफेंस के अधिकारी भी रिटायरमेंट के बाद समाज के लिए योगदान देने आगे आते हैं। सेवा में रहने के दौरान अपने समाज या अन्य किसी को भी फेवर करने का प्रश्न ही नहीं हैं। हम यहां अपने कर्तव्य से बंधे हुए होते हैं। हमारे समाज में जो आप वर्ग विशेष या एलीट की बात कर रहे हो, वह सेवा में रहने के दौरान रहन-सहन का असर हो सकता हैं। लेकिन बड़े गोरखा अधिकारी भी हमेशा से अपने योगदान को निभाते आए हैं।
सवाल - क्या आप भी ऐसा ही करेंगे ?
थापा - निश्चित रूप से,जो मेरे से संभव होगा उसका प्रयास करूंगा।
सवाल - आप अपने परिवार के बारे में भी बताए ?
थापा - मेरी एक बेटी और एक बेटा हैं। बेटी भारत में बीटेक की पढ़ाई करने के बाद अमेरिका के बोस्टन शहर से एमटेक कर रही हैं। बेटा भी पंजाब से ही बीटेक कर रहा हैं। मेरी पत्नी हाउसवाइफ हैं।
सवाल - आपने अपने बच्चों को डिफेंस में जाने के लिए नही कहा?
थापा - मैंने कभी करियर के चुनाव के लिए जोर नहीं डाला। उन्होंने स्वयं अपने लिए करियर आॅप्शन चुना हैं। आज की गोरखा यूथ में काफी बदलाव देखने को मिल रहा हैं। आज की जनरेशन डिफेंस से ज्यादा संभावना प्राइवेट सेक्टर में देखती हैं, शायद यह वजह हो।
सवाल - आप अभी तक बीएसएफ में सेवा के दौरान कहां-कहां पदस्थ रहे हैं?
थापा - मैंने अपना अधिक समय पूर्वोत्तर भारत में बिताया हैं। मणिपुर, सिलचर (असम) में मैंने बतौर कमांडेंट और डीआईजी कार्य किया हैं। मुझे साल 2001 के दौरान मणिपुर में ही 5 उग्रवादी को मार गिराने के लिए राष्ट्रपति के हाथों विशेष गैलेंट्री अवार्ड भी प्राप्त हुआ। मेरी पिछली नियुक्ति जोधपुर में थी और वर्तमान पदस्थापना फिरोजपुर में डीआईजी पद पर हैं।
सवाल - आपके रिटायरमेंट में अब एक साल का समय रह गया हैं। पूरे भारत में घूमने के बाद अब आप कहां स्थायी सेटल होंगे?
थापा - फिलहाल एक साल की सर्विस बाकी है, यह भी लंबा समय हैं। मैं देहरादून का हूं तो जाहिर बात हैं कि वहीं रहूंगा। इस बारे में मैंने अभी कोई निर्णय नही लिया हैं।
सवाल - रिटायरमेंट के बाद क्या दूसरी नौकरी करने के लिए प्लान बनाया हैं?
थापा - उसके लिए बाद में विचार करुंगा, अभी बात करना जल्दबाजी होगी। डिफेंस में काम करने के कारण मुझे जो अनुशासन मिला हैं, उसके कारण घर में बैठे रहना भी मुश्किल काम होगा। देखते हैं आगे क्या होता हैं।
सवाल - आप जैसे गोरखा लोग हमारे समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने अपना कीमती वक्त निकालकर समाज से जुड़ी हुई मुद्दों पर वीर गोरखा से बात की आपका शुक्रिया।
थापा - बात करके अच्छा लगा। आप का भी धन्यवाद।
दीपक राई
देहरादून शहर की गोरखा शख्सियतों में शुमार बॉर्डर सिक्यूरिटी फोर्स (बीएसएफ) में पदस्थ डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (डीआईजी) राज किरण थापा से वीर गोरखा के संपादक दीपक राई ने गोरखा समाज और उनसे जुड़ी हुई मुद्दों पर बातचीत की। चर्चा में पंजाब के फिरोजपुर में समाज के गौरव प्रेरणास्रोत डीआईजी आॅफिस के मुखिया ने गोरखा समाज से जुड़े कई पहलूओं पर खुलकर बात की।
सवाल - आपकी पैदाईश कहां की हैं ?
थापा - मेरा जन्म देहरादून में हुआ हैं। मैं मूलत: देहरादून के कुटालवाली का ही रहने वाला हूं। प्रारंभिक शिक्षा के बाद यहां के ही डीएवी कॉलेज से मैंने मास्टर्स की डिग्री ली।
सवाल - आप ने अपने बीएसएफ करियर की शुरूआत कैसे की?
थापा- कॉलेज करने के तुरंत बाद मैंने आर्मी में करियर बनाने के लिए अपने आप को तैयार किया। मैं शॉर्ट सर्विस कमीशन में बतौर ओटीएस ट्रैनिंग के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में अफसर चुना गया। लगभग सात साल सेना में रहने और आवश्यक अनिवार्य सेवा करने के बाद मैंने आर्मी से बीएसएफ में बदली ले ली।
सवाल - मतलब आप भी सेना के प्रति जुनूनी रहे हो? आजकल की पीढ़ी भी खासकर देहरादून की यंग जेनरेशन आज भी सेना को ही अपना करियर क्यों चुनती है ?
थापा - देखिए इसकी वजह स्पष्ट रूप से देहरादून में एक समय कई आर्मी केंटोनमेंट का होना रहा हैं। हमारे समय में 58 गोरखा ट्रेनिंग सेंटर के साथ-साथ कई गोरखा बिग्रेडों और गोरखा रेजीमेंटों का मुख्यालय देहरादून ही हुआ करता था। इसके कारण यहां के युवाओं में हमेशा से आर्मी में भर्ती होने की चाह जगती रही हैं। मैंने भी यही विकल्प का ही चुनाव किया था।
सवाल - गोरखा समाज के युवाओं में आजकल अपने संस्कृति के प्रति रुझान में आप कमी देखते हो?
थापा - निसंदेह आज का गोरखा समाज समृद्ध हैं इसलिए आधुनिक रहन-सहन और विचारो को अपनाने की होड़ में हमारे समाज के युवा अपनी संस्कृति से कट रहे हैं। देखिए समाज से ही हम हैं और हम से ही समाज, इसलिए युवाओं पर विशेष ध्यान देने और उनको जागरूक बनाने की आवश्यकता हैं।
सवाल - गोरखा समाज ने देश को कई बड़े सैन्य और सिविल अधिकारी दिए हैं। लेकिन देखने में आता हें कि जो गोरखा व्यक्ति अफसर बन जाता हैं, तो वह समाज में एलीट वर्ग को जन्म देता हैं। जिससे छोटे रैंक के सैनिक एवं अन्य कर्मचारी अपने को अलग-थलग पाते हैं। ऐसा क्यों होता हैं?
थापा - ऐसा कुछ भी नहीं है। बड़े सैन्य व डिफेंस के अधिकारी भी रिटायरमेंट के बाद समाज के लिए योगदान देने आगे आते हैं। सेवा में रहने के दौरान अपने समाज या अन्य किसी को भी फेवर करने का प्रश्न ही नहीं हैं। हम यहां अपने कर्तव्य से बंधे हुए होते हैं। हमारे समाज में जो आप वर्ग विशेष या एलीट की बात कर रहे हो, वह सेवा में रहने के दौरान रहन-सहन का असर हो सकता हैं। लेकिन बड़े गोरखा अधिकारी भी हमेशा से अपने योगदान को निभाते आए हैं।
सवाल - क्या आप भी ऐसा ही करेंगे ?
थापा - निश्चित रूप से,जो मेरे से संभव होगा उसका प्रयास करूंगा।
सवाल - आप अपने परिवार के बारे में भी बताए ?
थापा - मेरी एक बेटी और एक बेटा हैं। बेटी भारत में बीटेक की पढ़ाई करने के बाद अमेरिका के बोस्टन शहर से एमटेक कर रही हैं। बेटा भी पंजाब से ही बीटेक कर रहा हैं। मेरी पत्नी हाउसवाइफ हैं।
सवाल - आपने अपने बच्चों को डिफेंस में जाने के लिए नही कहा?
थापा - मैंने कभी करियर के चुनाव के लिए जोर नहीं डाला। उन्होंने स्वयं अपने लिए करियर आॅप्शन चुना हैं। आज की गोरखा यूथ में काफी बदलाव देखने को मिल रहा हैं। आज की जनरेशन डिफेंस से ज्यादा संभावना प्राइवेट सेक्टर में देखती हैं, शायद यह वजह हो।
सवाल - आप अभी तक बीएसएफ में सेवा के दौरान कहां-कहां पदस्थ रहे हैं?
थापा - मैंने अपना अधिक समय पूर्वोत्तर भारत में बिताया हैं। मणिपुर, सिलचर (असम) में मैंने बतौर कमांडेंट और डीआईजी कार्य किया हैं। मुझे साल 2001 के दौरान मणिपुर में ही 5 उग्रवादी को मार गिराने के लिए राष्ट्रपति के हाथों विशेष गैलेंट्री अवार्ड भी प्राप्त हुआ। मेरी पिछली नियुक्ति जोधपुर में थी और वर्तमान पदस्थापना फिरोजपुर में डीआईजी पद पर हैं।
सवाल - आपके रिटायरमेंट में अब एक साल का समय रह गया हैं। पूरे भारत में घूमने के बाद अब आप कहां स्थायी सेटल होंगे?
थापा - फिलहाल एक साल की सर्विस बाकी है, यह भी लंबा समय हैं। मैं देहरादून का हूं तो जाहिर बात हैं कि वहीं रहूंगा। इस बारे में मैंने अभी कोई निर्णय नही लिया हैं।
सवाल - रिटायरमेंट के बाद क्या दूसरी नौकरी करने के लिए प्लान बनाया हैं?
थापा - उसके लिए बाद में विचार करुंगा, अभी बात करना जल्दबाजी होगी। डिफेंस में काम करने के कारण मुझे जो अनुशासन मिला हैं, उसके कारण घर में बैठे रहना भी मुश्किल काम होगा। देखते हैं आगे क्या होता हैं।
सवाल - आप जैसे गोरखा लोग हमारे समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने अपना कीमती वक्त निकालकर समाज से जुड़ी हुई मुद्दों पर वीर गोरखा से बात की आपका शुक्रिया।
थापा - बात करके अच्छा लगा। आप का भी धन्यवाद।
Post a Comment