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पी चिदंबरम का कॉलम : इंडो-नेपाल - एक दोस्त को इस तरह खोना

 पी चिदंबरम
सरकार ने 26 मई, 2014 से एक लंबा सफर तय किया है। कम से कम तीन पड़ोसी देश, जो नए प्रधानमंत्री के शपथग्रहण समारोह में शरीक हुए थे और वाहवाही की थी, भारत से दूरी बना चुके हैं। अन्य पहले से अधिक सतर्क हैं। यह बात सबसे ज्यादा भारत और नेपाल के रिश्तों में दिखती है। नेपाल का भारत से खास रिश्ता है। दोनों देश धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को साझा करते हैं। उनकी आपस की सीमा खुली हुई है। नेपाली लोग कई लड़ाइयों में भारतीय सैनिकों के साथ मिल कर लड़े हैं, और यह पहलू आज भी कायम है। गोरखा रेजीमेंट अपने शौर्य के लिए जाना जाता है। अनुमान है कि साठ लाख नेपाली नागरिक भारत में रहते और काम करते हैं।

चूंकि नेपाल के किसी भी तरफ समुद्र नहीं है, इसकी सीमाएं तीन तरफ भारत से लगती हैं, बाकी दुनिया तक इसके पहुंचने का रास्ता भारत होकर है। नेपाल का अधिकांश व्यापार भारत से है। नेपाल को अधिकांश आपूर्ति भारत से या वाया भारत होती है। भारत एक भला और उदार पड़ोसी रहा है। इसने नेपाल को विशेष व्यापारिक रियायतें दी हुई हैं। यह नेपाल की काफी मदद करता आया है। भारत ने अपने लोगों को नेपाल की यात्रा के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया है। दोनों देशों में बहुतेरे परिवार हैं जो विवाह के सूत्र से बंधे हैं।

एक जैसे राजनीतिक मूल्यों में विश्वास रखने के कारण नेपाली कांग्रेस को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बिरादराना संगठन के तौर पर देखा जाता था। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी का भारत की कम्युनिस्ट पार्टी से बहुत घनिष्ठ संबंध रहा है, बाद में माकपा और भाकपा से।

प्रसव पीड़ा:
जब नेपाल में राजशाही विदा हुई और एक लोकतांत्रिक ढांचे ने उसकी जगह ली, तब से यह देश संक्रमण के एक मुश्किल दौर से गुजरा है। कई सरकारें बनीं, कई प्रधानमंत्री आए, पर थोड़े-थोड़े वक्त के लिए। संविधान सभा ने कई साल तक संविधान का मसविदा बनाने की जद्दोजहद की। संवैधानिक गणराज्य बनने के नेपाल के प्रयास का भारत ने दृढ़ता से समर्थन किया।

अस्थिरता और अनिश्चितता के इस दौर में भारत कभी अपने समर्थन को लेकर दुविधा में नहीं रहा। व्यापार और लेन-देन पहले की तरह जारी रहे। सीमाएं खुली रहीं। यह सब नेपालियों के हर्षातिरेक में प्रतिबिंबित हुआ, जब प्रधानमंत्री मोदी अपनी पहली सरकारी यात्रा पर वहां गए। मोदी ने वहां की संसद में बेहतरीन भाषण दिया। उस वक्त लगता था कि भारत और नेपाल के रिश्ते एक नई ऊंचाई पर पहुंच गए हैं। लेकिन वह ‘बुलंदी’ क्यों हवा हो गई, क्यों सारे राजनीतिक पर्यवेक्षक इस बात पर एकमत हैं कि भारत और नेपाल के रिश्ते रसातल में जा पहुंचे हैं?

संवाद का सार:
पिछले दिनों मुझे नेपाल के कुछ दिग्गजों से मिलने का मौका मिला। उपप्रधानमंत्री और विदेशमंत्री कमल थापा, बंगलुरु से दिल्ली की उस उड़ान में, मेरी बगल में बैठे थे। इस मौके पर मेरा जो संवाद हुआ उसे सार-रूप में इस तरह रखा जा सकता है:

1. मधेसियों से ताल्लुक रखने वाले कुछ मसले हैं, पर भारत को चाहिए कि वह नेपाल को इन्हें बातचीत के जरिए सुलझाने का मौका दे। मधेसियों की शिकायत के प्रति अपना समर्थन जताते हुए उन्हें बाकी नेपाली जनता के विरुद्ध खड़ा कर देना भारत के लिए उचित नहीं होगा।
2. नेपाल की संसद ने एक नया संविधान अंगीकार किया है। अगर उसमें संशोधनों की दरकार है, तो वे बातचीत के बाद उचित प्रक्रिया से ही किए जा सकते हैं (जैसे कि भारतीय संविधान में सौ बार संशोधन हुए हैं)।
3. ऐसे एक सौ बारह संसदीय क्षेत्र हैं, जहां मधेसी लोग प्रभावी हैं या उनकी बहुत अहम मौजूदगी है। उनमें से केवल ग्यारह सांसद नए संविधान के खिलाफ हैं।
4. केवल एक प्रांत है जिसके तहत आने वाले जिले पूरी तरह मधेसी बहुल हैं। मधेसी इसी तरह के एक और प्रांत का गठन चाहते हैं। यह ऐसा मसला है जिसे बातचीत से ही सुलझाया जा सकता है। यह नाकेबंदी का कारण नहीं हो सकता।
5. भारत ने संविधान की मंजूरी रुकवाने की खातिर बहुत देर से हस्तक्षेप किया, अंतिम क्षण भी निकल चुके थे। संविधान की मंजूरी के बाद भारत मायूस हुआ, पर इस मायूसी की कोई तुक नहीं थी।
6. नेपाल की जनता या इसके अधिकतर लोग मानते हैं कि नाकेबंदी भारत ने थोप रखी है और भारत सरकार ने इंडियन आॅयल समेत सप्लायरों को आपूर्ति रोकने का निर्देश दिया हुआ है। हकीकत जो हो, आम धारणा यही है तथा दिनोंदिन यह धारणा और बलवती होती जा रही है।
7. नेपाल में राष्ट्रवादी भावनाएं उफान पर हैं, और अधिकतर लोगों का मिजाज भारत के खिलाफ हो गया है। यहां तक कि मधेसी बहुल क्षेत्रों से निर्वाचित सांसद भी नाकेबंदी के लिए भारत पर दोष मढ़ रहे हैं। यही कारण है कि चार महीनों से काफी तकलीफें झेलने के बावजूद नेपाल सरकार के खिलाफ वहां की जनता का विरोध-प्रदर्शन नहीं दिखता। वे बहादुरी से हालात का सामना करने का निश्चय कर चुके हैं।
8. विदेशमंत्री के तौर पर एक परिपक्व राजनेता, विदेश सचिव के रूप में एक अति दक्ष और अनुभवी कूटनीतिज्ञ तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में एक होशियार सुरक्षा विशेषज्ञ- इनके होते हुए भारत ने नेपाल के संबंध में गंभीर रणनीतिक गलतियां कैसे कीं?
9. भारत ने एकदम आखिर में संविधान की स्वीकृति रुकवाने की कोशिश करके गलती की। भारत ने केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री चुने जाने का (चुपचाप) विरोध करके गलती की। भारत ने प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर सुशील कुमार कोइराला का नाम आगे बढ़ा कर गलती की, ओली जबकि कोइराला को राष्ट्रपति पद दिए जाने को रजामंद थे। 
10. नेपाल चाहता है कि भारत की संसद और यहां की राजनीतिक पार्टियां अपनी बात मजबूती से रखें, ताकि गलतियों को दुरुस्त किया जा सके, वरना हो सकता है कि एक समय के बाद सुधार की गुंजाइश न बचे।

एक भला पड़ोसी
संसद का सत्र चल रहा है। कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के पास एक अंतरराष्ट्रीय नजरिया रहा है, इसलिए उनकी विशेष जिम्मेदारी बनती है कि वे भारत-नेपाल रिश्तों पर बहस की पहल करें। यह संदेश जरूर जाना चाहिए कि भारत एक अच्छा पड़ोसी और भरोसेमंद दोस्त है, जो पड़ोसी देशों के बीच आपसदारी के कायदों को निभाता है।

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