Header Ads

EXCLUSIVE : असाधारण वीरता, शूरता और बलिदान के लिए मशहूर चार गोरखा सैनिकों के नाम है अशोक चक्र


वीर गोरखा न्यूज पोर्टल
दीपक राई

भारतीय सेना में गोरखा सैनिक अपने अदम्य शौर्य के लिए मशहूर है। इन्हीं शौर्यता के कारण उन्हें भारतीय सरकार ने कई सम्मान से अलंकृत किया है। उन्हीं में से एक वीरता अवार्ड अशोक चक्र भी है। साल 1952 में शुरू हुए इस वीरता अवार्ड को पहले साल ही जीतने वालों में गोरखा सैनिक शामिल रहे। उस साल यह अवार्ड जीतने वाले पृथक भारतीय होने का गौरव नर बहादुर थापा को मिला।  उसके बाद साल 1962 में अपने साहस का परिचय देते हुए दो गोरखा सैनिको ने यह सम्मान अपने नाम किया। खड़क बहादुर लिम्बु और राम बहादुर राई ने यह वीरता पुरुस्कार जीता। इसके बाद एक लम्बे अंतराल के बाद करीबन 42 साल के बाद संजोग छेत्री के रूप में किसी गोरखा सैनिक ने यह सम्मान अपने नाम किया।

असाधारण वीरता, शूरता या बलिदान के लिए दिया जाता है अशोक चक्र
अशोक चक्र भारत का शांति के समय का सबसे ऊँचा वीरता का पदक है। यह सम्मान सैनिकों और असैनिकों को असाधारण वीरता, शूरता या बलिदान के लिए दिया जाता है। यह मरणोपरान्त भी दिया जा सकता है। अशोक चक्र (पदक) भारत का शांति के समय का सबसे ऊँचा वीरता सम्मान है। यह सम्मान सैनिकों और असैनिकों को असाधारण वीरता, शूरता या बलिदान के लिए दिया जाता है। यह मरणोपरान्त भी दिया जा सकता है। अशोक चक्र गैर युद्ध प्रसंग में वीरता के लिए सैनिकों और आम नागरिकों, सबके लिए है। इस पुरस्कार को श्रेष्ठता के तीन स्तरों पर दिया जाता है। वर्ष 1952 से, सेना पदक देने का क्रम शुरू किया गया। यह पदक थलसेना, वायुसेना, नौसेना तीनों के लिए अलग अलग देना सुनिश्चित किया गया।

अशोक चक्र का महत्त्व
भारत में युद्ध की स्थिति में सर्वोच्च सैन्य वीरता अवार्ड "परम वीर चक्र" होता है। वहीं उसके समकक्ष शान्ति के समय में सर्वोच्च शौर्य के प्रदर्शन के पश्चात "अशोक चक्र" प्रदान किया जाता है। अगर वरीयता की सूची देखी जाए तो "अशोक चक्र" नागरिक सम्मान पदम् विभूषण से अधिक सम्मानीय अवार्ड है। "अशोक चक्र" से सर्वोच्च अवार्ड भारत रत्न और "परम वीर चक्र" ही है। अर्थात भारत के सर्वोच्च सम्मान में यह तीसरे पायदान का अवार्ड माना जाता है।

 

1952  - नर बहादुर थापा
नाइक के रूप में नर बहादुर थापा ने साल 1948 ऑपरेशन पोलोजिसे हैदराबाद पुलिस एक्शन के नाम से भी जाना जाता है, में अपनी वीरता के कारण अशोक चक्र सम्मान मिला था। पांचवीं गोरखा राइफल्स के थापा ने 15 सितंबर 1948 के दिन हैदराबाद के रजाकारों के खिलाफ अदम्य शौर्य का परिचय देते हुए भारतीय सेना के लिए अपना योगदान दिया। उन्हें साल 1952 में यह प्रथम श्रेणी का सम्मान दिया गया। साथ ही वह अशोक चक्र जीतने वाले प्रथम भारतीय के रूप में भी इतिहास में दर्ज है। 

1962 - खड़क बहादुर लिम्बु 
पूर्वोत्तर भारत में साठ के दशक में जारी इंसर्जेन्सी के दौर में 8 असं राइफल्स के सूबेदार खड़क बहादुर लिम्बु ने अपने शौर्य से नई गाथा लिखी। नागालैंड राज्य में उस दौर में विरोधियों ने जमकर लूटपाट और हत्याएं करनी शुरू कर दी थी। कोहिमा और इम्फाल को लगातार निशाना बनाया जाता है। असम राइफल्स ने साल 1960-61 में कई सफल ऑपरेशन को अंजाम दिया। अप्रैल 1962 में यादगार ऑपरेशन को अंजाम देते हुए सूबेदार लिम्बु ने जंगलों में विरोधियों के खिलाफ आमने-सामने के मुठभेड़ में अदम्य शौर्य का प्रदर्शन किया।  

1962 -  मन बहादुर राई
आर्मी में लेफ्टिनेंट कर्नल के रैंक से रिटायर हुए मन बहादुर राई ने भी पूर्वोत्तर भारत में चल रहे इंसर्जेन्सी के दौर में 5/11 गोरखा राइफल्स में बतौर मेजर के रैंक पर सेवा करते हुए साल 1961 में नागालैंड के खिलाफ चलाए एक ऑपरेशन के दौरान करीब से लड़ाई करते हुए दो विरोधियों को अपने हाथों से मौत के घात उतारकर अपने कई सैनिकों की समय रहते जान से बचा लिया। असम के जोरहाट के रहने वाले कर्नल राई ने 2011 में अपने गृहनगर ने 95 साल की उम्र में अंतिम सांस ली।  

2004 -  संजोग छेत्री
1982 के गणतंत्र दिवस के दिन सिक्किम राज्य में पैदा हुए संजोग छेत्री को अशोक चक्र पुरूस्कार महज 21 साल की उम्र में साल 2004  में मृत्युपरांत दिया गया। छेत्री 5/11 गोरखा राइफल्स की तरफ से से 9 पैरा (स्पेशल फाॅर्स) में बतौर पैराट्रूपर विशेष सेवा में थे। 22 अप्रैल 2003 में 20 कमांडो साथियों के साथ छेत्री ने जम्मू-कश्मीर के आतंकी क्षेत्र काका पहाड़ में आतंकियों को मार गिराने के लिए एक ऑपरेशन में भाग लिया। अपने साथियों को खतरे में घिरा देखकर छेत्री ने पहाड़ में साथियों को कवर देते हुए महज 100 गज दूर से एक आतंकी को अपने ऑटोमेटिक गैन से मार गिराया।  इसके बाद कई आतंकियों ने भारतीय कमांडो दल पर हमले करना शुरू कर दिया।  इसको देख छेत्री ने सामने आकर अपने गैन से आतंकियों पर धुआंदार फायरिंग शुरू कर दी। इसी के दौरान छेत्री को गोलियां लगी. गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद छेत्री ने अपने साथियों को सुरक्षित किया। बेहद जख्मी हालत में  होने के बाद भी उन्होंने अकेले सभी आतंकियों को मार गिराया। इस अदम्य साहस के लिए उन्हें मृत्यपरान्त अशोक चक्र से सम्मान दिया गया। इसके अलावा लखनऊ कैंट में छेत्री के वीरता को सलाम करते हुए उनकी यादगार में सैनिओ के परिवार के रहने की एक आवासीय परिसर को 'संजोग छेत्री परिसर' नाम दिया गया है।

नोट : 1952 से 2016 के बीच केवल 68 लोगों को मिला है यह सम्मान 


Powered by Blogger.