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विशेष आलेख : क्या अब चीन और पाकिस्तान गोर्खालैंड़ पर बोलेंगे? - स्वामी कनकधारा स्वदेशानंद



- स्वामी कनकधारा

जहाँ बेदर्द हाकिम हो, वहाँ फरियाद क्या करना.....
मोदी विदेश में व्यस्त, ममता से जनता त्रस्त...
दार्जीलिङ, सिलिगुड़ी डुवार्स का मालिक बंगाल नहीं है..
मालिकाना हक उनको मिलना चाहिए जो इस माटी के हैं
अलग राज्य गोर्खालैंड़ गोर्खालैंड़ गोर्खालैंड़ गोर्खालैंड़...

मेरे देश की सरकार बलुचिस्तान पर हो रहे दमन और अत्याचार को देखती है, उसका विरोध करती है, चीन द्वारा तिब्बत पर किए अत्याचार को देखती है, विरोध करती है। नेपाल के मधेश पर हो रहे विभेद और दमन को देखती है,उसका विरोध करती है लेकिन अपने ही देश भारत में गोर्खाओं पर हो रहे अत्याचार, दमन, विभेद और हत्या को क्यों नहीं देखती?

110 मीटर लम्बा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा माथे चढ़ाकर 9 जुलाई 2017 के दिन गोर्खालैंड़ समर्थकों ने देश की राजधानी दिल्ली में प्रदर्शन किया। यह भारतीय इतिहास का गौरवपूर्ण शर्मनाक क्षण है। जिनको हम विदेशी समझते हैं, उनके माथे, हाथों देश का तिरंगा है। अलग राज्य की मांग में देश का झण्डा हाथों लेकर प्रदर्शन करने का मतलब तो राष्ट्रद्रोह नहीं है लेकिन देश में व्याप्त नश्लभेद के कारण हमेशा गोर्खा और उपेक्षित जातियों का विनाश हो रहा है भारत में। पिछले सरकार की एक सर्वे अनुसार भारत में बोली जानेवाली 200 प्रजाति की भाषा खत्म हई स्वाधीनता के बाद। हमारे देखते देखते बहुतेरे राज्य बने लेकिन हमेशा गोर्खाओं को ठेंगा दिखाया गया। 110 मीटर लम्बा ध्वज 110 साल से लम्वित मुद्दा से सम्बन्धित है।

सिलीगुड़ी -तराई किसकी है? कौन है  यहाँ के मूल निवासी ?

(सिलगढ़ी तराई  फाइनल सेटलमेन्ट रिपोर्ट 1898 शशिभूषण दत्तद्वारा )
आज से 119 वर्ष पहले का सिलीगड़ी । इस रिपोर्ट की हार्ड़ कापी आर.मोक्तान,कालेबुङ  के पास उपलब्ध है।  आज की तारिख में यहाँ उल्लिखित जातियाँ शायद दुर्लभ सी होगई हैं।.. जो जाति उस समय नहीं थी, आज वह स्वदेशी और भूमिपुत्र है। जो जाति 1898 के पहले से यहाँ थी, आज के तारीख में लगभग वह विदेशी है। वाह रे गणतन्त्र.......!

जाति। ....संख्या। पुरुष।स्त्री। प्रथम संख्या पुरुष की द्वितीय संख्या स्त्री की है।

01)भुइमानी र मेतर । पुरुषः 539 स्त्रीः540
02) भुटिया । पुरुषः 292स्त्रीः130
03)ब्राह्मण। पुरुषः 500स्त्रीः130
04) दमाई। पुरुषः 75स्त्रीः33
05) घर्ती। 126-103
06) गुरुङ। 981-935
07) काईवार्ता। 184-135
08)कामी। 373-257
09) खम्बू(राई) 1314-1459
10) कोच।  6119-5014
11)लेप्चा।  529-532
12)लिम्बू। 416-109
13) मगर। 832-514
14)मुण्डा। 129-126
15) मुर्मी(तामङ)।  500-502
16) नेवार। 318-189
17) उराउँ। 2360- 2272
18) राजपूत। 366-143
19)सार्की। 109-42
20) सुनुवार। 67-34
21) याक्खा(राई)। 33-21
22) बोन। 644-526
23) साइक। 4000-2299

भारतीय गोर्खाओं को समझने के लिए यह भी पढ़ें....


नेपाल का इतिहास
भारतीय साम्राज्यों से प्रभावित हुआ पर यह दक्षिण एशिया का एकमात्र देश था जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद से बचा रहा । हँलांकि अंग्रेजों से हुई लड़ाई (1814-16) और उसके परिणामस्वरूप हुई संधि में तत्कालीन नेपाली साम्राज्य के अर्धाधिक भूभाग ब्रिटिश इंडिया के तहत आ गए और आज भी ये भारतीय राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के अंश हैं ।

अंग्रेज़ों से संघर्ष
तिब्बत से हिमाली (हिमालयी) मार्ग के नियन्त्रण के लिए हुवा विवाद और उसके पश्चात युद्ध में नेपाली सैनिक मानसरोवर से आगे तक बढचुका था लेकिन तिब्बत की सहायता के लिए चीन के आने के बाद नेपाल पीछे हट गया । आधुनिक नेपाल की नींव नेपाल राष्ट्र के एकीकरण से और साम्राज्यवाद के विरोध से निर्मित हुई है। पृथ्वी नारायण शाह के निधन के पश्चात्‌ ही ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों ने नेपाल पर फिर दाँत गड़ाये और नेपाल के विरुद्ध सैनिक अभियान किया। सिगौली संधि के द्वारा राज्य की सीमा छोटी कर दी गई और नेपाल में रेजिडेंट रहने लगा। पृथ्वीनारायण शाह के चौथे वैधानिक उत्तराधिकारी श्री 5 राजेंद्र विक्रम शाह ने भारत के सिख, मराठे और मुगलों तथा वर्मा, चीन और अफगानिस्तान में अपने राजदूतों को गुप्त रूप से भेजकर यूरोपीय साम्राज्यवादियों के विरुद्ध एक होकर युद्ध करने के लिए आह्वान किया था।

नेपाल की सीमा के नजदीक का छोटे-छोटे राज्यों को हड़पने के कारण से शुरु हुवा विवाद ब्रिटिश इस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ दुश्मनी का कारण बना । इसी वजह से १८१४–१६ रक्तरंजित एङ्गलो-नेपाल युद्ध हो गया। इस युद्ध मे नेपाल ने नालापानी गढी तथा अलमोडा मे विलायती सैनिकों की बड़ी क्षति पहुँचाया था ।


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