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नेपाली सिनेमा के पितामाह तुलसी घिमिरे भी गोरखालैंड राज्य के समर्थन में, EXCLUSIVE INTERVIEW


दीपक राई
वीर गोरखा न्यूज पोर्टल

हरिद्वार में पतंजलि पीठ में आयोजित हाम्रो स्वाभिमान ट्रस्ट के चौथे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में सम्मानित किए गए कालिम्पोंग ब्यॉय के नाम से मशहूर नेपाली सिनेमा के महान फिल्मकार तुलसी घिमिरे से वीर गोरखा न्यूज पोर्टल ले संपादक दीपक राई ने गोरखालैंड के ज्वलंत मुद्दे समेत कई विषयों में विशेष बातचीत की। नेपाली सिनेमा की यादगार फ़िल्में - बांसुरी, समझना, कुसुमे रुमाल, लाहूरे, दक्षिणा, दर्पण छाया के निर्माता-निर्देशक-अभिनेता घिमिरे को ही नेपाली सिनेमा को रिवाइवल करने का श्रेय जाता है।

वीर गोरखा : आप कालिम्पोंग से हो। गोरखालैंड राज्य आंदोलन में आपका नजरिया क्या है ?
घिमिरे : मैं स्वयं दार्जीलिंग के पहाड़ की माटी से हूँ। गोरखालैंड प्रत्येक गोरखा लोगों के लिए बेहद भावनात्मक मुद्दा है। यह हमारे लोगों की पहचान से भी जुड़ा हुआ है। गोरखालैंड राज्य का मैं पूर्ण समर्थन करता हूँ।

वीर गोरखा : बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दमनपूर्वक एक्शन बंगाली-गोरखा के रिश्तों पर जहर घोल तो नहीं रहे ?
घिमिरे : मुख्यमंत्री का स्वयं महिला होने के बावजूद ऐसा घिनौना अत्याचार बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। पहाड़ और कोलकाता के बीच दूरी को बढ़ाना बेहद दुखद है। राजनीति लोगों के बीच खाई पैदा करें तो उसके गंभीर नतीजे होते है। इससे बचना चाहिए।

वीर गोरखा : पहाड़ के लोग ममता की नीति के बेहद क्षुब्द है। आखिर वह इतनी निर्दयी कैसे हो गयी ?
घिमिरे : बंगाली ममता बनर्जी ने बंगाल की महान मिट्टी के वीर सपूत सुभाष चंद्र बोस को शायद नहीं पढ़ा। अगर उन्होंने बोस को पढ़ा है, तो उन्हें बोस के जांबाज गोरखा शहीद मेजर दुर्गा मल्ल और दल बहादुर थापा को भी पढ़ना चाहिए। अगर ममता ने इन्हें पढ़ा होता, तो वह कभी गोरखा समाज पर अत्याचार का सोच भी नहीं सकती थी। अगर महिला होने के नाते ममता ने अगर गोरखा महिला सिस्टर निर्मला को पढ़ा होता तो भी वह पुलिस फायरिंग के आदेश नहीं देती। गोरखालैंड समय की मांग है।

वीर गोरखा : भारतीय गोरखा समाज के लिए आप अपने सिनेमाई अनुभव क्या नया देने जा रहे है ?
घिमिरे : 1814 में नालापानी में हुए आंग्ल-गोरखा युद्ध के ऊपर एक शोधपरक डॉक्यूमेंट्री बनाने के दिशा में काम कर रहा हूँ। देहरादून से शुरू हुए और तकरीबन भूला दिए गए इस ऐतिहासिक घटना को दुनियाभर में विजुअल आर्ट के जरिए दिखाना बेहद शानदार रहेगा।

वीर गोरखा : इसके अलावा नेपाली सिनेमा के वर्तमान दौर पर क्या कहना चाहेंगे ?
घिमिरे : नेपाली सिनेमा में तकनीकी रूप से बेहद सुधार हुआ है। नए प्रकार के आर्ट जैसे सिनेमा का भी उद्भव हुआ है, जिसके कारण अब हमारे यहां एक नई बहस शुरू हो चुकी है कि नेपाली सिनेमा को किस दिशा में लेना चाहिए। क्या आर्ट सिनेमा या कमर्शियल सिनेमा।

वीर गोरखा : नेपाली सिनेमा के लिए क्या बेहतर रहेगा ?
घिमिरे : भारत में भी 80 के दशक में यही स्थिति पैदा हुई थी। आर्ट और कमर्शियल सिनेमा को मिलाकर पैरेलल सिनेमा की शुरुआत हुई। जो सफल रही। आज भी भारतीय सिनेमा इसी थीम पर बन रही है। नेपाली सिनेमा का भी भविष्य यह रहने की उम्मीद है, क्योंकि नेपाली जनता मनोरंजन को प्राथमिकता देते है।

हरिद्वार में गोरखालैंड आंदोलन शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए घिमिरे
अपने गुरु भाई और वेटरन नेपाली एक्टर राज शर्मा के साथ घिमिरे।

वीर गोरखा से बातचीत के कुछ हलके-फुल्के क्षण।

देहरादून के गोरखा बिजनेसमैन मेजर बीपी थापा के साथ चर्चारत घिमिरे।

उत्तराखंड के गोरखा समाज के लोगों के बीच।

हाम्रो स्वाभिमान ट्रस्ट के साथ देहरादून के समाजसेवी सूर्यबिक्रम शाही के साथ घिमिरे।

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