उत्तराखंड में भाजपाई सियासत की अवसरवादी तस्वीर
वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता से बेदखली हुई तो फोनिया ने निशंक पर स्वयं को हरवाने का आरोप मढ़ दिया और फोनिया के साथ खड़े थे खंडूड़ी और कोश्यारी। वर्ष 2007 में जब आलाकमान ने सांसद खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया तो कोश्यारी उनके खिलाफ ताल ठोकते नजर आए लेकिन निशंक अबकी दफा खंडूड़ी के सपोर्ट में खड़े हो गए। इस बीच खंडूड़ी के बाल सखा फोनिया ने भी उनसे दूरी बना ली। विवाद जब सवा दो साल बाद भी खत्म नहीं हुआ तो खंडूड़ी की मुख्यमंत्री पद से विदाई हुई लेकिन तब खंडूड़ी ने दांव खेला निशंक के नाम पर और कोश्यारी अकेले पड़ गए। निशंक सीएम तो बन गए लेकिन कुछ ही वक्त गुजरा कि खंडूड़ी से रिश्तों में तल्खी नजर आने लगी। नतीजतन कोश्यारी और खंडूड़ी एक पाले में और निशंक दूसरे। उधर, मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए बिशन सिंह चुफाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने में खंडूड़ी की अहम भूमिका रही लेकिन जब खंडूड़ी व निशंक के रिश्तों में दरार आई तो चुफाल ने दामन थामा मुख्यमंत्री निशंक का। कोश्यारी और खंडूड़ी की जुगलबंदी का ही कमाल रहा कि निशंक को ऐन विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। अब जबकि खंडूड़ी मुख्यमंत्री के रूप में अपनी दूसरी ईनिंग शुरू करने जा रहे हैं, देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में भाजपाई दिग्गजों के आपसी रिश्ते क्या रंग दिखाते हैं।
(साभार - जागरण)
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