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उत्तराखंड में भाजपाई सियासत की अवसरवादी तस्वीर

देहरादून। उत्तराखंड भाजपा अवसरवादी सियासत की जीती जागती तस्वीर है। अगर आप यकीन करें तो हम आपको बताते हैं कैसे, जब-जब पार्टी ने अपनी राज्य सरकार में नेतृत्व परिवर्तन किया, तब-तब दिग्गजों ने अपनी सुविधा के अनुसार मिले मौकों को भुनाया। यही नहीं, इसके अलावा भी नेताओं के रिश्ते आश्चर्यजनक रूप से अकसर तल्ख से मधुर और मीठे से छत्तीस के आंकड़े वाले होते रहे हैं। यह बात दीगर है कि इस सबमें सूबे के भविष्य की ओर किसी की तवज्जो नहीं गई। उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में वजूद में आने के बाद से ही प्रदेश भाजपा की तस्वीर खासी दिलचस्प रही है। गुजरे दस सालों में ऐसे कई मौके आए जब गलबहियां करने वाले दिग्गज कुछ अरसा बाद एक-दूसरे पर तलवार ताने नजर आए और एक-दूसरे से छत्तीस के आंकड़े का रिश्ता रखने वाले 'दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है', कहावत की तर्ज पर दोस्ती के तराने छेड़ते दिखाई दिए। राज्य गठन के वक्त भुवन चंद्र खंडूड़ी, भगत सिंह कोश्यारी और केदार सिंह फोनिया में अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी, जबकि निशंक दूसरे ध्रुव की भूमिका में थे। कुछ समय बाद जब तत्कालीन सीएम नित्यानंद स्वामी का विरोध होने लगा तो निशंक और कोश्यारी साथ-साथ खड़े हो गए।

वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता से बेदखली हुई तो फोनिया ने निशंक पर स्वयं को हरवाने का आरोप मढ़ दिया और फोनिया के साथ खड़े थे खंडूड़ी और कोश्यारी। वर्ष 2007 में जब आलाकमान ने सांसद खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया तो कोश्यारी उनके खिलाफ ताल ठोकते नजर आए लेकिन निशंक अबकी दफा खंडूड़ी के सपोर्ट में खड़े हो गए। इस बीच खंडूड़ी के बाल सखा फोनिया ने भी उनसे दूरी बना ली। विवाद जब सवा दो साल बाद भी खत्म नहीं हुआ तो खंडूड़ी की मुख्यमंत्री पद से विदाई हुई लेकिन तब खंडूड़ी ने दांव खेला निशंक के नाम पर और कोश्यारी अकेले पड़ गए। निशंक सीएम तो बन गए लेकिन कुछ ही वक्त गुजरा कि खंडूड़ी से रिश्तों में तल्खी नजर आने लगी। नतीजतन कोश्यारी और खंडूड़ी एक पाले में और निशंक दूसरे। उधर, मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए बिशन सिंह चुफाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने में खंडूड़ी की अहम भूमिका रही लेकिन जब खंडूड़ी निशंक के रिश्तों में दरार आई तो चुफाल ने दामन थामा मुख्यमंत्री निशंक का। कोश्यारी और खंडूड़ी की जुगलबंदी का ही कमाल रहा कि निशंक को ऐन विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। अब जबकि खंडूड़ी मुख्यमंत्री के रूप में अपनी दूसरी ईनिंग शुरू करने जा रहे हैं, देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में भाजपाई दिग्गजों के आपसी रिश्ते क्या रंग दिखाते हैं।

(साभार - जागरण)


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