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गोरखा पात्र और बॉलीवुड - ज्वलंत प्रश्न

दीपक राई
पूरी दुनिया में विख्यात गोरखा समाज आज भी रुपहले परदे परदे पर अपने वजूद की जंग लड़ता नज़र आता है । राष्ट्रगीत की धुन बनाने से लेकर शोले के टाईटल गीत को सुर से सजाने वाले वीर गोरखाओ को आपने सिनेमाई परदे पर कई बार देखा होगा , परन्तु कभी चौकीदार बांटे या कभी घरेलू नौकर क्या कभी बेहतर भूमिका में आपने इनको देखा ? यकीनन नाहे क्यूंकि पता नहीं क्यूँ हिंदी सिनेमा की मानसिकता कभी गोरखा समाज को उन्नत नहीं देख पाई । कुछ एक सन्दर्भ को छोड़ दिया जाए तो गोरखा पात्र हमेशा जागते रहो के नारे लगाता फिल्म में यदा कदा नज़र आ ही जाता है , हां बेशक चाइनाटाउन फिल्म में एक गोरखा पात्र को वीर सैनिक की भूमिका में दिखाया परन्तु हाय रे किस्मत यहाँ भी अभिनेता डैनी के शक्लो सूरत के कारण यह पात्र इतना उन्नत हो पाया । भारतवर्ष के एक करोड़ आबादी के कई गोरखाओ ने हिंदी फिल्मो में अपना बहुमूल्य योगदान दिया चाहे वह माला सिन्हा, उदित नारायण, मनोहारी सिंह हो या विनोद प्रधान हो ।
इस पोस्ट में यहाँ पर दो अलग वीडियो दिखाकर मेरा यह प्रयास है कि चुटकला बनना या बनाया जाना बुरा नहीं लेकिन उसके मायनों पर ऐतराज़ ज़रूर जताया जा सकता । पहले वीडियो में कोका कोला पेय के कमर्शियल में आमिर खान ने एक पहाडिये गोरखा का किरदार निभाया है , जिसे सहर्ष मनोरंजन के तौर पर लिया जा सकता है । वही दूसरी और एक मराठी फिल्म के एक हास्य दृश्य में जानी लीवर और अभिनेता सचिन गोरखा समुदाय पर हास्य ना करके उपहास उड़ाता ज़्यादा नज़र आता है। आप ही देखकर तय करे कि हास्य और उपहास में क्या फर्क है ।

आमिर खान पहाडिये गोरखा की भूमिका में


जानी लीवर गोरखा बने बस में सफ़र करते हुए

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