Header Ads

पार्टी की उम्मीदों के खेवनहार नहीं हो सके निशंक

देहरादूनसूबे की सियासत में ऊंचा मुकाम पाने और सरकार की कमान थामने के बाद से ही मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का विवादों से चोली-दामन का नाता रहा। कदम-कदम पर कभी बने तो कभी बनाए गए विवाद उनकी राह में आड़े आए। दिग्गजों को तरजीह न देकर अति आत्म विश्वास में बढ़ाए गए कदमों ने उनकी कुर्सी को तो खतरे में डाला ही, बतौर मुख्यमंत्री हासिल की गई उपलब्धियों को भी हाशिए पर धकेल दिया। पार्टी की उम्मीदों के खेवनहार भी नहीं बन सके निशंक। भाजपा ने सूबे में निशंक को मुख्यमंत्री पदभार ऐसे दौर में सौंपा, जब उसे जनता दरबार में सामूहिक नेतृत्व और एकजुट दिखने की जरूरत थी। आम जनता से संवाद कायम करने और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए उनसे मेलजोल की रणनीति में माहिर निशंक आखिरकार खुद पर ज्यादा विश्वास का शिकार हो गए। वर्ष 2009 में जून माह में सूबे की सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री निशंक पूर्व मुख्यमंत्रियों भुवनचंद्र खंडूड़ी और भगत सिंह कोश्यारी समेत तमाम पार्टी दिग्गजों को साथ लेकर नहीं चल सके। साथ ही दिग्गजों को कमतर आंकने की भूल भी कर बैठे। यही वजह बाद में मुख्यमंत्री और दिग्गजों के बीच आपसी विश्वास में खटाई बन गई।

लिहाजा सामूहिक प्रयासों से सरकार को खेने और जनता में पार्टी की उजली छवि बनाने की कोशिशें अलग-थलग होती चली गई। नौकरशाही पर अंकुश लगाने की जो उम्मीदें संजोई गई, उन पर भी वह खरा नहीं उतर सके। जन कल्याणकारी योजनाओं के नतीजे हों या पार्टी की जन जुड़ाव की नीतियों पर नौकरशाही हावी रही। उनके इर्द-गिर्द ऐसे लोगों का जमावड़ा होता चला गया, जिन्होंने पार्टी और सरकार के हितों को जरूरत के मुताबिक तवज्जो नहीं दी। यही नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी रहे निशंक ने नीतिगत निर्णयों में भी संघ को विश्वास में नहीं लिया। इसके कारण चाहे जो भी रहे, सूबे और भाजपा की अंदरूनी सियासत में इसे निरंकुश प्रशासक के तौर पर आंका गया। गद्दी छिनने के ये कारण उनकी उपलब्धियों पर भारी पड़ गए। हालांकि मुख्यमंत्री के तौर पर अब तक सबसे ज्यादा जनता के बीच जाने और संवाद कायम करने की उपलब्धि निशंक के खाते में है। शहरों से लेकर दूरदराज और दुर्गम स्थानों तक पहुंचकर जनता की पीड़ा सुनने में उन्होंने ज्यादा वक्त बिताया तो पार्टी कार्यकर्ताओं को खुश रखने के गुर का उन्होंने बखूबी इस्तेमाल किया। यह दीगर बात है कि पार्टी की अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई और उनकी उपलब्धियां भी नेपथ्य में चली गई।
(साभार-जागरण)

No comments

Powered by Blogger.