पार्टी की उम्मीदों के खेवनहार नहीं हो सके निशंक
लिहाजा सामूहिक प्रयासों से सरकार को खेने और जनता में पार्टी की उजली छवि बनाने की कोशिशें अलग-थलग होती चली गई। नौकरशाही पर अंकुश लगाने की जो उम्मीदें संजोई गई, उन पर भी वह खरा नहीं उतर सके। जन कल्याणकारी योजनाओं के नतीजे हों या पार्टी की जन जुड़ाव की नीतियों पर नौकरशाही हावी रही। उनके इर्द-गिर्द ऐसे लोगों का जमावड़ा होता चला गया, जिन्होंने पार्टी और सरकार के हितों को जरूरत के मुताबिक तवज्जो नहीं दी। यही नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी रहे निशंक ने नीतिगत निर्णयों में भी संघ को विश्वास में नहीं लिया। इसके कारण चाहे जो भी रहे, सूबे और भाजपा की अंदरूनी सियासत में इसे निरंकुश प्रशासक के तौर पर आंका गया। गद्दी छिनने के ये कारण उनकी उपलब्धियों पर भारी पड़ गए। हालांकि मुख्यमंत्री के तौर पर अब तक सबसे ज्यादा जनता के बीच जाने और संवाद कायम करने की उपलब्धि निशंक के खाते में है। शहरों से लेकर दूरदराज और दुर्गम स्थानों तक पहुंचकर जनता की पीड़ा सुनने में उन्होंने ज्यादा वक्त बिताया तो पार्टी कार्यकर्ताओं को खुश रखने के गुर का उन्होंने बखूबी इस्तेमाल किया। यह दीगर बात है कि पार्टी की अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई और उनकी उपलब्धियां भी नेपथ्य में चली गई।
(साभार-जागरण)
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