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घरेलू मुर्गी पालन से पूर्व सिक्किम में आजीवीका सुधार

नन्दोक पूर्व सिक्किम जिले का एक छोटा सा गांव है। यह गांव नेशनल इनीशिएटिव ऑन क्लाइमेट रेजिलिएण्ट एग्रीकल्चर यानि एनआईसीआरए के अंतर्गत चुना गया है। पूरी जांच करने के बाद पता चला कि नन्दोक और उसके आस पास के गांव में जीवन-यापन के हालात बेहद खराब हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र, ने पूर्व सिक्किम के ऐसे गांवों की मदद के लिए एक नया प्रोजेक्ट बनाया है जिससे ग्रामीणों की सहायता की जा सके। इसके लिए उन्होंने ऐसी मुर्गियों का इस्तेमाल किया जो कि गांव के हर तरह के माहौल में जीवित रह सकें और जिनमें अण्डे देने की क्षमता बाकी मुर्गियों से ज्यादा हो। प्रोजेक्ट के अनुसार मुर्गियों की दो नस्लों को लाया गया। पहली वनराजा और दूसरी ग्रामप्रिया। जिन लोगों ने मुर्गी पालन के कार्य में अपनी रुचि दिखाई उन्हें एनआईसीआरए ने मदद करने की जिम्मेदारी ली। बाकी समूह को प्रोजेक्ट शुरु होने के बाद उनकी मदद करने की बात कही गई।

प्रोजेक्ट के अंतर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र ने नन्दोक गांव के लोगों को मुर्गी पालन का प्रशिक्षण देने के लिए कार्यक्रम का संचालन किया। कार्यक्रम में उन्हें ग्रामप्रिया और वनराजा मुर्गियों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दी गई। केवीके ने चालीस ग्रामीणों को वनराजा और ग्रामप्रिया नस्ल की 400 मुर्गियां दीं। केवीके ने ग्रामीणों से निरन्तर सम्पर्क बनाए रखा जिससे जरुरत पड़ने पर ग्रामीणों की सहायता की जा सके। मुर्गियों को समय-समय पर टीकाकरण व अन्य सुविधाएं भी दी गईं। केवीके के इस सहयोग को देखते हुए कुछ अन्य किसानों ने भी मुर्गी पालन में अपनी रुचि दिखाई और इसे ही अपने जीवन-यापन का जरिया बनाने की ठान ली। श्रीमती पवित्रा शर्मा ऐसे किसानों में से हैं जिन्होंने अपना पहला कदम वीसीएमआरसी के सुझाव के साथ शुरु किया। श्रीमती शर्मा ने कृषि विज्ञान केन्द्र से 40 मुर्गियां लीं। कुछ समय बाद वह 60 ग्रामप्रिया मुर्गियों को खुद ही सम्भालने लगीं। उन्होंने इन मुर्गियों को 45 दिनों तक बांस और लकड़ी के बने एक घर में रखा जिससे मुर्गियों के शरीर का तापमान बराबर रखा जा सके। 

तापमान बराबर रखने के लिए उन्होंने 100 वाट के बल्बों का इस्तेमाल किया। काम को आगे बढ़ाने के लिए एक ऐसा घर बनाया जिसका एक भाग खुला हो। उन्होंने शुरुआत में 360 वर्ग फुट के डिब्बे बनाए जिसमें मुर्गियों के अण्डे रख सकें। इन सब कार्यों में श्रीमती शर्मा का कुल दस हजार रुपए का खर्च आया। श्रीमती शर्मा ने मुर्गियों के पालन और खर्चे का विशेष ध्यान रखा। मुर्गियों को वही भोजन दिया गया जो सही तापमान में पका हो। दूसरे चरण में मुर्गियों को खाने में सब्जियां, घास और चावल दिया गया। उन्होंने हर वक्त मुर्गियों को पीने का साफ पानी दिया। उन्हें समय पर मल्टी विटामिन भी दिया गया। जब यह मुर्गियां तीन चार महीने की हो गईं तो उन्होंने मुर्गों को 220 रु प्रति किलो के हिसाब से और अण्डों को 10 रु प्रति अण्डे के हिसाब से बाजार में बेच दिया। इन 60 मुर्गियों की मदद से श्रीमती शर्मा ने कुल 11,500 रु का मुनाफा कमाया। इस मुनाफे के बाद उन्होंने भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान के सिक्किम केन्द्र से 100 मुर्गियां और खरीदीं।


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