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सुप्रीम कोर्ट ने दिया मतदाताओं को "राईट टू रिजेक्ट" का अधिकार

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसले में देश के मतदाताओं को यह अधिकार दे दिया है कि वे अब मतदान के दौरान सभी प्रत्याशियों को खारिज कर सकेंगे। यह मामला चुनावों में वोटरों को मिलने वाले विकल्प में किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देने को जोड़े जाने का है। इसके मुताबिक ईवीएम मशीन में एक बटन इस बात के लिए होगा कि वोटर को मौजूदा उम्मीदवारों में से अगर कोई भी पसंद नहीं हो तो, किसी को भी अपना वोट नहीं देकर विरोध दर्ज करने का अधिकार होगा। इसका कोई असर चुनाव के नतीजों पर नहीं होगा। मुख्य न्यायाधीश पी. सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल की ओर से दाखिल लोकहित याचिका पर यह फैसला सुनाया गया। यह याचिका पिछले नौ सालों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और गत 29 अगस्त को कोर्ट ने सभी पक्षों की बहस सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

याचिका में मांग की गई थी कि वोटिंग मशीन ईवीएम में एक बटन उपलब्ध कराया जाए, जिसमें कि मतदाता के पास 'उपरोक्त में कोई नहीं' पर मुहर लगाने का अधिकार हो। अगर मतदाता को चुनाव में खड़े उम्मीदवारों में कोई भी पसंद नहीं आता, तो उसके पास उन्हें नकारने और उपरोक्त में कोई नहीं चुनने का अधिकार होना चाहिए। चुनाव आयोग ने याचिका का समर्थन किया था, जबकि सरकार ने विरोध किया था। अभी मौजूदा व्यवस्था में ऐसी कोई बटन ईवीएम में नहीं है। अगर किसी मतदाता को चुनाव में खड़ा कोई भी उम्मीवार पसंद नहीं आता है और वह बिना वोट डाले वापस जाना चाहता है, तो उसे यह बात निर्वाचन अधिकारी के पास रखे रजिस्टर में दर्ज करानी पड़ती है। याचिकाकर्ता का कहना है कि रजिस्टर में दर्ज करने से बात गोपनीय नहीं रहती। मतदान को गोपनीय रखने का नियम है। ईवीएम में बटन उपलब्ध कराने से मतदाता द्वारा अभिव्यक्त की गई राय गोपनीय रहेगी।


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