Header Ads

भारतीय गोरखाओं को नक्सली घोषित करवाने के एजेंडे में सक्रिय सत्ता के नशे में चूर CM ममता बनर्जी


वीर गोरखा न्यूज नेटवर्क
दीपक राई

भारत के लिए अपने जान की बाजी लगाकर हिफाजत करने के साथ देश के विकास में हर कदम साथ-साथ चलने वाला गोरखा समाज का एक बड़ा तबका आज खून के आंसू बहाकर रोने को अभिशप्त हो गया है।  बात दार्जिलिंग पहाड़ की है। 1907 से सतत चल रहे इस 110 वर्ष पूर्व पृथक राज्य के आंदोलन को अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दूसरे विकल्पों से दबाने में लगी हुई है। 80 के दशक में जो काम वामपंथी सरकार ने किया, ठीक उसके उलट अब यह काम ममता बनर्जी अपने सत्ता की शक्ति में चूर होकर कर रही है। ममता की राइटर्स बिल्डिंग के ब्यूरोक्रेट्स देश की मीडिया को गफलत में रखकर राष्ट्र के सामने गोरखा समाज की छवि एक उपद्रवी/अलगाववादी तबके के तौर पर पेश करने में काफी हद तक सफल रहा है। यहीं नहीं CM ने तो बाकायदा आर्मी लगाते हुए गोरखाओं को देश का गद्दार तक बताने की कोशिश कर दी है। देश के लिए इतना कुछ करने के बाद भी आज संपूर्ण गोरखा समाज एक दोराहे में आकर ठिठक सा गया है। वक्त वापस पीछे की तर्क लौटाने का प्रयास राज्य सरकार पुरजोर तरीके से कर रही है।

देश को बार-बार पैगाम दिया जा रहा है कि गोरखा समाज पश्चिम बंगाल के लिए एक ख़तरा बन रहा है। आखिर ऐसा कैसे हो सकता है ? एक दिन पहले की देश की सरहदों की रक्षा करते हुए वीर गोरखा तारा बहादुर रोका ने कश्मीर के नौगाम में अपने जान न्योछवार कर दिए। अजीब इत्तेफाक है कि ठीक उसी समय दार्जिलिंग में उसी गोरखा समाज की आवाज को दबाने के लिए उसी आर्मी को तैनात किया गया। उससे बड़ी हैरानी कि बात तो यह है कि यह वहीं मुख्यमंत्री ममता है, जिसने भारतीय सेना के ऊपर तख्तापलट की साजिश का आरोप लगाया था। अब बात करते है कि क्या वाकई देश का गोरखा समाज विखंडनकारी है ? सच तो यह है कि देश में केवल कोलकाता स्थित राइटर्स बिल्डिंग ही इसे झूठ को सही मानता है। बंगाल का ही एक बहुत बड़ा तबका गोरखालैंड आंदोलन का सपोर्ट करता आया है। जिस दिन राइटर्स बिल्डिंग अपनी हठ को त्यागकर जमीनी हकीकत देखने की कोशिश करेगा, उस दिन गोरखालैंड राज्य का सपना साकार होने में देर नहीं लगेगी।

देश के गोरखा समाज को एक छतरी के नीचे आने की जरुरत
गोरखा समाज को अब एकजुट होकर संगठन के रूप में राइटर्स बिल्डिंग स्थित CM के ऑफिस की तानाशाही के खिलाफ शांतिपूर्ण तरह से सामना करने के लिए तैयार होना चाहिए। तुगलकी फरमान की आड़ में दार्जीलिंग पहाड़ से गोरखा संस्कृति को मिटाने की कुटिल साजिश को नकारने के लिए एक शांतिपूर्ण सत्याग्रह की आवश्यकता है।

देश के अन्य हिस्सों के गोरखा समाज को भी जनजागरण मी आवश्यकता
यह मुद्दा केवल गोरखालैंड और बांग्ला भाषा का नहीं वरन समूचे गोरखा जाति की अस्मिता के ऊपर एक कुठाराघात की साजिश है। इस सत्याग्रह में देश के सभी गोरखा समाज के संगठन को पहाड़ के बिमल गुरुंग का सहयोग करने के लिए आगे ही आना होगा। आज गोरखा समाज की तरफ से केवल बिमल गुरुंग ही CM ममता बनर्जी से लोहा लेते हुए दिखाई दे रहे है। पहाड़ की बाकी राजनैतिक दल को भी इस सत्याग्रह में बिमल गुरुंग का साथ पुराने कटुता को भुलाते हुए देना चाहिए। वरना पहाड़ की जनता के बीच वह अपना नैतिक स्तर बचा नहीं पाएंगे।

मीडिया कर रही है गोरखाओं को बदनाम
CM ममता बनर्जी के इशारों में देश की मीडिया भी एक सूर में गोरखा समाज को विघटनकारी समूह के तौर पर दुनिया को दिखा रही है। इसके विरोध में गोरखा समाज के लोगों को लामबंद सोशल मीडिया में गोरखा समाज के शुभचिंतक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखकर पहाड़ की वस्तुस्थिति से रूबरू कराने चाहिए। सोशल मीडिया के माध्यम से पश्चिम बंगाल सरकार के दमन के खिलाफ उठ खड़ा होना चाहिए। साथ ही देश के अन्य क्षेत्रों के गोरखा समाज के लोगों को भी सोशल मीडिया में आकर दार्जिलिंग के दमन के खिलाफ झंडा बुलंद करना चाहिए।


Powered by Blogger.