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भूकंप के बाद अब जिंदगी की जद्दोजहद

दार्जिलिंग। दहशत और त्रासदी के बीच जिंदगी को फिर से संवारने की जद्दोजहद। सात दिन बीत चुके हैं, जब 18 सितंबर को भूकंप के झटके ने जिंदगी की दिशा ही बदल दी। चीन से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय सीमा के कारण यह इलाका और भी महत्वपूर्ण है। नाथुला बोर्डर मार्ग सामरिक और पर्यटन दोनों ही नजरिए से महत्वपूर्ण है। तबाही इधर भी हुई। उत्तर सिक्किम सबसे ज्यादा प्रभावित रहा। बीच में 22 तारीख को फिर हल्का झटका आने से लोगों का दहशत और बढ़ गया। संचार संपर्क टूट चुके थे। प्रशासन प्रभावित इलाकों में पहुंच नहीं पा रहा था। थोड़ी-बहुत जो भी मदद मिली वह सेना से। लोग गुस्से में भी थे कि पूर्वोत्तर राज्य के साथ यह उपेक्षा क्यों? इस बीच सेना ने बहुत ही बहादुरी के साथ कमान संभाल ली थी। आर्मी और एयरफोर्स के जवान प्रभावित इलाकों में पहुंच गए। सो, कई जिंदगी बच गई। अब गुस्सा भी शांत हो रहा।

पहाड़ों की हालत यह कि लगातार बारिश के कारण मिट्टी गीली हो गई है। भू-स्खलन हो रहा है। 'वहां के हालात का जायजा लिया तो जगह-जगह मलबे के ढेर थे। लोगों की शिकायत कि उन्हें प्रभावित इलाकों में हेलीकाप्टर से नहीं ले जाया जा रहा। वे अपने परिवार से मिलना चाहते हैं। रविवार को सिक्किम के स्थानीय नागरिक जियेप्सो ने बताया कि अब हेलीकाप्टर से लोगों को ले जाया जा रहा है। ल्हाचुंग में जान की तो बहुत क्षति नहीं हुई है, घर-बार ध्वस्त हो गए हैं। नदी के बायीं ओर का इलाका ज्यादा प्रभावित हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ. पवन कुमार चामलिंग ने पूर्वी और दक्षिणी सिक्किम का भी जायजा लिया। पीड़ितों के बीच चेक बांटे गए हैं। प्रधानमंत्री के आने का इंतजार हो रहा है। सिक्किम की राजधानी गंगटोक में भी मकान ध्वस्त हुए। पर्यटन के इस सीजन पर ग्रहण तो लग ही गया। अब सबसे बड़ी चुनौती लोगों के मन से भय को निकालने की है। इस प्रदेश को फिर से व्यवस्थित करने की, ताकि लोग यहां फिर से आ सकें। यह राज्य पर्यटकों से गुलजार हो सके।

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