राक्षस और सात लड़कियां - हिमालय की लोककथा
एक गांव में एक आदमी रहता था। उसकी सात लड़कियां थीं। वह और उसकी पत्नी अपनी लड़कियों से परेशान था। एक दिन वे दोनों अपनी लड़कियों को घर में अकेला छोड़ कर कहीं भाग गए। मां-बाप के बिना सातों लड़कियां बेचारी अकेली रह गईं। उन्हें दुख तो बहुत हुआ, लेकिन करती क्या? बहुत दिनों तक वे अपने माता-पिता के लौटने की प्रतीक्षा करती रहीं। इधर-उधर जंगल में उन्हें ढूंढ़ती रहीं। लेकिन उनके मां-बाप वापस नहीं लौटे। एक दिन वे सातों बहनें खेत में होकर जा रही थीं, तो उन्होंने सरसों का पौधा उखाड़ लिया। उस पौधे के नीचे एक नन्हा-सा बच्चा था। लड़कियों को वह बच्चा अच्छा लगा और वे उस बच्चे को अपने घर ले आईं। घर पहुंच कर छह बहनें तो लकड़ी बीनने जंगल में चली गईं, एक घर में ही उस बच्चे के पास रुक गई। बच्चे ने देखा कि यह लड़की अकेली है, तो वह अपने असली रूप में आ गया। वह एक राक्षस था। उसने उस लड़की को खा लिया। वह फिर बच्चा बन गया। घर पहुंचकर जब छह बहनों ने देखा कि हमारी सातवीं बहन घर में नहीं है, तो वे चिन्ता में पड़ गईं। इधर-उधर देखा वह नहीं मिली।
दूसरे दिन पांच बहनें लकड़ी लेने गईं और एक बहन बच्चे के पास रह गईं। राक्षस ने उसे भी खा लिया। अब रह गईं पांच। होते-होते उस राक्षस ने पांच बहनों को खा लिया। दो बहनें बचीं। एक दिन वे दोनों बहनें जंगल में जा रही थीं। उन्होंने लकड़ियां इकट्ठी कीं, लेकिन उन्हें धान के टोकरे भी मिल गए। वे लकड़ियों के गट्ठर न लाकर धान के टोकरे लेकर घर लौटने लगीं। इतने में एक चिड़िया आईं और वह धान के टोकरों पर मंडराने लगी। वह चिड़िया उन लड़कियों से बोली-मुझे धान दे दो। लड़कियों ने टोकरी से एक मुट्ठी धान निकाल कर चिड़िया को दे दिया। चिड़िया उन लड़कियों से खुश हो गई। वह बोली- तुम्हारी बहनों को उस राक्षस ने खा लिया है, जो बच्चा बनकर तुम्हारे घर में रहता है। उनकी हड्डियां दरवाजे के पीछे रखी हैं।लड़कियों ने चिड़िया की यह बात सुनी, तो वे बहुत डर गई।
घर के दरवाजे से वे उल्टे पांव जंगल की ओर भागने लगीं। उन्हें घर से भागते हुए देख कर राक्षस समझ गया कि इन्हें मेरी असलियत का पता चल गया है। वह भी उनके पीछे दौड़ने लगा। लड़कियां भागते-भागते एक नदी के किनारे पहुंच गईं। लड़कियां नदी से बोलीं-ह्यनदी-नदी तुम सूख जाओ, नहीं तो यह राक्षस हमें खा जाएगा । नदी को दया आ गईं। वह सूख गईं। लड़कियां जल्दी-जल्दी दौड़कर नदी के दूसरी पार तक पहुंच गईं। राक्षस ने भी दौड़कर नदी पार कर ली। संयोगवश उधर से दो राजकुमार जा रहे थे। उन्होंने उस राक्षस को देखा, तो अपनी तलवार से उसका सिर काट दिया। राक्षस को मार कर उन्होंने उन लड़कियों की पूरी कहानी सुनी। राजकुमारों ने उन दोनों लड़कियों को अपने साथ लिया और अपने महल में आकर राजा की आज्ञा से उनसे अपना विवाह कर लिया। अब वे दोनों लड़कियां सुखपूर्वक रहने लगीं।
दूसरे दिन पांच बहनें लकड़ी लेने गईं और एक बहन बच्चे के पास रह गईं। राक्षस ने उसे भी खा लिया। अब रह गईं पांच। होते-होते उस राक्षस ने पांच बहनों को खा लिया। दो बहनें बचीं। एक दिन वे दोनों बहनें जंगल में जा रही थीं। उन्होंने लकड़ियां इकट्ठी कीं, लेकिन उन्हें धान के टोकरे भी मिल गए। वे लकड़ियों के गट्ठर न लाकर धान के टोकरे लेकर घर लौटने लगीं। इतने में एक चिड़िया आईं और वह धान के टोकरों पर मंडराने लगी। वह चिड़िया उन लड़कियों से बोली-मुझे धान दे दो। लड़कियों ने टोकरी से एक मुट्ठी धान निकाल कर चिड़िया को दे दिया। चिड़िया उन लड़कियों से खुश हो गई। वह बोली- तुम्हारी बहनों को उस राक्षस ने खा लिया है, जो बच्चा बनकर तुम्हारे घर में रहता है। उनकी हड्डियां दरवाजे के पीछे रखी हैं।लड़कियों ने चिड़िया की यह बात सुनी, तो वे बहुत डर गई।
घर के दरवाजे से वे उल्टे पांव जंगल की ओर भागने लगीं। उन्हें घर से भागते हुए देख कर राक्षस समझ गया कि इन्हें मेरी असलियत का पता चल गया है। वह भी उनके पीछे दौड़ने लगा। लड़कियां भागते-भागते एक नदी के किनारे पहुंच गईं। लड़कियां नदी से बोलीं-ह्यनदी-नदी तुम सूख जाओ, नहीं तो यह राक्षस हमें खा जाएगा । नदी को दया आ गईं। वह सूख गईं। लड़कियां जल्दी-जल्दी दौड़कर नदी के दूसरी पार तक पहुंच गईं। राक्षस ने भी दौड़कर नदी पार कर ली। संयोगवश उधर से दो राजकुमार जा रहे थे। उन्होंने उस राक्षस को देखा, तो अपनी तलवार से उसका सिर काट दिया। राक्षस को मार कर उन्होंने उन लड़कियों की पूरी कहानी सुनी। राजकुमारों ने उन दोनों लड़कियों को अपने साथ लिया और अपने महल में आकर राजा की आज्ञा से उनसे अपना विवाह कर लिया। अब वे दोनों लड़कियां सुखपूर्वक रहने लगीं।
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