रक्तरंजित इतिहास रहा है गोरखालैंड का आंदोलन
दार्जिलिंग की सुरम्य पहाड़ी में गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर एक बहुत ही स्याह पक्ष रहा है जिसकी परिणिती स्वरुप कई बड़े और लोकप्रिय नेता इस काले अध्याय में समा गए। पहाड़ियों और हरीभरी वादियों से घिरा पश्चिम बंगाल का दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र लगभग दो दशक से चल रहे ‘गोरखालैंड आंदोलन’ के दौरान करीब 300 राजनीतिक हत्याओं का गवाह रह चुका है। आंदोलन के शुरुआती दौर से अब तक विभिन्न राजनीतिक दलों के करीब 12 बड़े नेता भी मारे जा चुके हैं। इस आंदोलन के जनक सुभाष घीसिंग द्वारा दार्जीलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद (डीजीएचसी) के गठन संबंधी केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार के मसौदे को स्वीकार करने के कुछ महीने बाद ही 1989 में वरिष्ठ वामपंथी नेता और राज्य विधानसभा के पूर्व सदस्य टी. एस. गुरंग की उनके घर के समीप ही हत्या कर दी गई। गुरंग वामपंथी होने के बावजूद गोरखा आंदोलन के कट्टर समर्थक थे।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के ही कार्यकर्ता एवं कालिम्पोंग नगर निगम समिति के सचिव संतोष कार्की की 1992 में हत्या कर दी गई। इस घटना के 2 महीने के भीतर समर्थक और स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया की सदस्य रेखा तमांग का अपहरण कर बलात्कार किया गया और बाद में उनकी हत्या कर दी गई। इस घटना को अभी दो महीने भी नहीं बीते थे कि गोरखा लीग के महासचिव और नेपाली भाषा आंदोलन के नेता सुदर्शन शर्मा की गोलियों से हत्या कर दी गई थी। साल 1989 में ही गोरखालैंड आंदोलन के चार समर्थकों की भी हत्या हुई थी। दार्जीलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद के सदस्य रुद्र जुमार को मार्च 1999 में दार्जिलिंग में सरेबाजार अज्ञात हमलावरों ने धारदार हथियार से हमला कर मार ड़ाला था। इस घटना के एक हफ्ते पूर्व ही जुमार को चुनाव में विजय हासिल हुई थी। वहीं ग्राम पंचायत के उपप्रमुख नरेन राय की मार्च 2001 में तकवार चाय बागान में हत्या कर दी गई थी। जीएनएलएफ और डीजीएचसी के मुखिया सुभाष घीसिंग भी सुरक्षित नहीं हैं। घीसिंग पर दो साल पहले कुर्सियांग में बमों से हमला हुआ था। लेकिन वह इस हमले में बालबाल बच गए थे। इस घटना में उनका ड्राइवर और अंगरक्षक मारा गया था। इसके अलावा अभी एक महीने पहले डीजीएचसी के ही प्रकाश थिंग को उनके आवास के समीप गोलियों से मार ड़ाला गया था।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हत्या के इन मामलों में न कोई जांच और न ही कोई जवाबदेही होने से किसी साजिश की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। कुछ लोगों का मानना है कि ये हत्याएं गोरखालैंड आंदोलन से जुड़ी हैं। जबकि अन्य लोगों का आरोप है कि यह गोरखा मुक्ति आंदोलन को दबाने की माकपा की साजिश है। लेकिन राज्य की सत्तारुढ़ पार्टी के नेताओं के मुताबिक ये हत्याएं निजी दुश्मनी की वजह से हुई हैं। इस आंदोलन से जुडे जीएनएलएफ नेता सी.के. प्रधान की तीन अक्टूबर 2003 को दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद घीसिंग की पार्टी में काफी कोहराम मचा था। प्रधान के हजारों समर्थक उनके अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने पहुंचे थे। लेकिन घीसिंग वहां मौजूद नहीं थे और न ही उन्होंने सी के प्रधान के प्रति शोक संवेदना व्यक्त की थी। इस घटना के परिणामस्वरुप प्रधान की विधवा शीला प्रधान समेत कई कार्यकर्ताओं ने घीसिंग से अलग होकर गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट ‘सी’ का गठन किया।
यह पार्टी दार्जिलिंग, कलिंपोंग, कुर्सियांग और सिलिगुडी में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है। पार्टी ने प्रधान की हत्या का आरोप यह कहते हुए पश्चिम बंगाल सरकार और घीसिंग के मत्थे मढ़ा क्योंकि वह गोरखालैंड के कट्टर समर्थक थे। श्रीमती प्रधान का कहना था कि गोरखालैंड आंदोलन को सफल बनाना उनके पति का सपना था। वहपार जानलेवा घीसिंग को अपने पिता की तरह मानते थे। लेकिन घीसिंग पर हमले के तार उनसे जोड़े गए जो काफी दुर्भाग्यपूर्ण रहा। जीएनएलएफ ‘सी’ के युवा नेता मैक्सिमस केलिकोट ने पश्चिम बंगाल सरकार पर प्रधान की हत्या की साजिश करने का आरोप लगाते हुए कहा कि निरे गुरंग ने इस वारदात को अंजाम दिया। उन्होंने कहा कि पुलिस ने उससे पूछताछ करने की जहमत भी नहीं उठाई, हत्यारे खुलेआम घूमते रहे। पिछले हफ्ते डीजीएचसी सदस्य नेत्र कुमार ठाकुरी के भतीजे किरण ठाकुरी की चौक बाजार में चाकू मारकर हत्या कर दी गई। पुलिस ने इस सिलसिले में जीएनएलएफ के छह कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है। पुलिस का मानना है कि वारदात को अंजाम देने वाले भाड़े के हत्यारे थे।
2010 में अखिल भारतीय गोरखा लीग के अध्यक्ष मदन तमांग की 21 मई को दार्जिलिंग में हत्या कर दी गई थी। तमांग अखिल भारतीय गोरखा लीग के 68वें स्थापना दिवस के लिए आयोजित कार्यक्रम की तैयारियों में लगे हुए थे और दार्जिलिंग में एक जनसभा को संबोधित करने वाले थे। हत्या के कुछ दिनों पहले ही तमांग ने अलग राज्यके मुद्दे में हुए विवाद के बाद गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) से अपनी राह अलग कर ली थी। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक हमलावर तलवार और खुखरी जैसे हथियारों से लैस थे। तमांग पर पर उस समय प्लांटर्स क्लब के नजदीक हमला किया गया जब वह आज होने वाली बैठक के इंतजामों का निरीक्षण कर रहे थे। राजनैतिक हत्याओं का सिलसिला प्रारम्भ हो गया जिसकी परिणिति में कई राजनितिक दलों के सदस्यों को जाने गई । कुछ साल इस मामले में फरवरी 2001 को पहाड़ के ही गोरखालैंड आन्दोलन के कट्टर समर्थक छत्रे सुब्बा को आरोपी बनाकर गिरफ्तार किया गया था ।
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